हौज़ा न्यूज़ एजेंसी की रिपोर्ट के अनुसार, हौज़ा ए इल्मिया क़ुम के दफ़्तर तबलीग़ाते इस्लामी के सांस्कृतिक व तबलीगी सहायक हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन सईद रूस्ता आज़ाद ने कहा है कि उलमा और तलबा को सामाजिक पूंजी की हिफाज़त और उसे मज़बूत करने के लिए अमली मैदान में आगे आना चाहिए, जैसा कि अतीत में वे हमेशा क़ौम के लिए रहनुमा और अमल का नमूना रहे हैं।
यह बात उन्होंने क़ुम स्थित मदरसा ए इल्मिया इमाम काज़िम (अ.स.) में आयोजित हौज़ा ए इल्मिया क़ुम की पुनः स्थापना की सौवीं वर्षगांठ" के अंतर्गत “इल्मी व तबलीगी कमीशन” की बैठक को संबोधित करते हुए कही।
हुज्जतुल इस्लाम रूस्ता आज़ाद ने कहा,हम अतीत में इस महान सामाजिक पूंजी के मालिक रहे हैं और आज भी हमें इसकी सख्त ज़रूरत है। अगर हम चाहते हैं कि भविष्य में भी यह एतिमाद, मोहब्बत और सामाजिक असर बाक़ी रहे, तो ज़रूरी है कि उलमा एक बार फिर समाजी मैदान में आगे बढ़ें।
उन्होंने इस बात पर भी ज़ोर दिया कि आज के दौर में हमें अपने संबोधितों की सही पहचान और उनसे प्रभावी संवाद में कठिनाइयों का सामना है। इस समस्या की अहमियत की तरफ रहबर ए इनक़लाब ने भी अपने पैग़ाम में इशारा किया है।
दफ़्तर तबलीग़ात के सहायक ने कहा,इतिहास गवाह है कि रुहानियत ने हमेशा मुख़्तलिफ़ मैदानों में फ़आल और असरदार किरदार अदा किया है, और यह कामयाबी तब ही मुमकिन हुई जब उलमा खुद आगे बढ़े। इसलिए अगर हम चाहते हैं कि इस समाजी एतिमाद को फिर से ज़िंदा करें, तो हमें हौज़ा ए इल्मिया की तारीख़ का बारिकी से मुताला करना होगा और उससे सबक लेते हुए हाल व मुस्तकबिल के लिए मंसूबाबंदी करनी होगी।
उन्होंने यह भी याद दिलाया कि सिर्फ़ बयानात से काम नहीं चलेगा बल्कि अमली इक़दामात की ज़रूरत है ताकि अवाम के बीच एतिमाद, मोहब्बत और दीनी उसूलों की जड़ें मज़बूत हों।
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