शुक्रवार 16 मई 2025 - 18:00
हर गलती पर मलामत क्यों नही? – इमाम अली (अ) का हिकमत भरा मार्गदर्शन

हौज़ा / अमीरुल मोमेनीन हज़रत अली (अ) ने हिकमत संख्या 15 में मानवीय परीक्षणों, गलतियों और उन पर प्रतिक्रियाओं के बारे में बहुत सटीक बात कही है।

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी की एक रिपोर्ट के अनुसार, अमीरूल मोमेनीन हज़रत अली (अ) ने हिकमत संख्या 15 में मानवीय परीक्षणों, गलतियों और उन पर प्रतिक्रियाओं के बारे में बहुत सटीक बात कही है। आप (अ) फ़रमाते हैं:

مَا كُلُّ مَفْتُونٍ يُعَاتَبُ मा कुल्लो मफ़तूनिन योआतबो

अनुवाद: पीड़ित और फँसे हुए हर व्यक्ति को दोषी नहीं ठहराया जा सकता।

यह कहावत एक सुनहरे नियम की ओर ले जाती है: हर व्यक्ति जो किसी विपत्ति, परीक्षण या प्रलोभन में फँस जाता है, ज़रूरी नहीं कि वह खुद ही दोषी हो। इमाम (अ) के इस कथन से यह स्पष्ट होता है कि:

कुछ परीक्षाएँ व्यक्ति की अपनी लापरवाही, आलस्य या लापरवाही का परिणाम होती हैं, और ऐसे लोग दोष के पात्र हो सकते हैं।

लेकिन कभी-कभी ये कठिनाइयाँ ईश्वरीय परीक्षाएँ या पापों का प्रायश्चित होती हैं, जिसके पीछे अल्लाह तआला की प्रशिक्षण बुद्धि काम करती है। ऐसे लोग सज़ा के नहीं बल्कि दया के पात्र हैं।

कभी-कभी कोई व्यक्ति अज्ञानता, मजबूरी या परिस्थितियों के दबाव के कारण किसी समस्या से ग्रस्त हो जाता है, इसलिए ऐसे मामले में भी दोष देना अनुचित है।

यह भी ध्यान देने योग्य है कि "मुफ़्तून" का अर्थ केवल प्रलोभन में पड़ना नहीं है, बल्कि इसका अर्थ धोखा या गुमराह होना भी हो सकता है। गुमराह होने का कारण हमेशा दोष नहीं होता है, कभी-कभी अज्ञानता या परिस्थितियों की जटिलता व्यक्ति को इस रास्ते पर ले जाती है। इसलिए, इमाम अली (अ) की शिक्षाओं के अनुसार, हमें किसी भी पीड़ित और गुमराह व्यक्ति को दोष देने से पहले उसकी स्थिति और कारण को देखना चाहिए।

ऐतिहासिक पृष्ठभूमि:

इस बुद्धिमान वाक्यांश का एक ऐतिहासिक संदर्भ भी है। अल्लामा इब्न अबी अल-हदीद के कथन के अनुसार, इमाम अली (अ) ने यह वाक्य तब कहा जब साद इब्न अबी वक्कास, मुहम्मद इब्न मसलामा, उसामा इब्न जैद और अब्दुल्ला इब्न उमर ने उनके साथ जमाल की लड़ाई में जाने से इनकार कर दिया, इस तथ्य के बावजूद कि उन्होंने उनके प्रति निष्ठा की प्रतिज्ञा की थी। इमाम (अ.स.) ने उनके इनकार पर अपनी निराशा व्यक्त की और कहा:

"ليس كلُّ مَفْتُونٍ يُعاتَبُ लैसा कुल्लो मफ़तूनिन योआतबो"

अर्थात, हर व्यक्ति जो प्रलोभन में पड़ जाता है, वह दोष के योग्य नहीं होता।

उसने उनसे कहा: "तुम वापस चले जाओ, अल्लाह मुझे तुम्हारे जैसे लोगों से मुक्त कर देगा।"

निष्कर्ष:

यह अलवी कहावत हमें न्याय, दया और अंतर्दृष्टि पर आधारित दृष्टिकोण की ओर आमंत्रित करती है। प्रलोभन में फंसे लोगों को डांटने के बजाय हमें उनकी स्थिति और इरादों पर विचार करना चाहिए। इमाम अली (अ) की यह सीख आज के समाज में भी पूरी तरह लागू होती है, जहाँ ज़्यादातर लोग दूसरों की असफलताओं और मुश्किलों पर बिना उनकी वास्तविकता को समझे ही जल्दी से फ़ैसला सुना देते हैं।

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