हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार, हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लिमीन मोहम्मद सईदी आरिया ने हरम-ए-मुत्तहर हज़रत फातिमा मासूमा (स.अ) में आयोजित एक मआरिफ़ी (ज्ञानवर्धक) बैठक को संबोधित करते हुए कहा,अल्लाह की हिदायत (मार्गदर्शन) के बारे में बंदगाने खुदा के बीच दो तरह के रवैये पाए जाते हैं कुछ लोग शुक्रगुज़ार होते हैं और कुछ इस हिदायत के मुंकर जैसा कि सूरह इसरा की आयत नंबर 3 में इसका इशारा किया गया है।
उन्होंने कहा, इमाम सज्जाद अ.स के कथन के अनुसार, जो व्यक्ति अल्लाह की रज़ा (प्रसन्नता) का तालिब हो भले ही लोग उससे नाराज़ क्यों न हों, अल्लाह खुद उसके तमाम कामों में काफ़ी हो जाता है और लोगों की तरफ से होने वाले नुक़सान से उसकी हिफ़ाज़त करता है। लेकिन जो व्यक्ति लोगों की रज़ामंदी को अल्लाह की नाराज़गी पर तरजीह दे, अल्लाह भी उसे उन्हीं लोगों के हवाले कर देता है।
हुज्जतुल इस्लाम सईदी आरिया ने कहा, अमीरुल मोमिनीन हज़रत अली अ.स फ़रमाते हैं कि जो व्यक्ति अल्लाह से डरता है और तक़वा (धर्मपरायणता) अपनाता है, वह अल्लाह का महबूब बन जाता है।
उन्होंने कहा,ख़ुत्बा हमाम में बेहद बारीकी और जामय अंदाज़ में हज़रत अली (अ.स) की ज़बान मुबारक से मुत्तक़ीन की विशेषताएं बयान हुई हैं।
हरम-ए-मुतहर के इस धार्मिक शोधकर्ता ने कहा, रिवायतों के अनुसार दूसरों पर नेक व्यवहार और एहसान करना इंसान को महबूब बनाता है, और यह एहसान सिर्फ़ माली (धन संबंधी) नहीं होता, बल्कि कभी यह बातों से, कभी अच्छे मशवरे और विचारात्मक मदद से, और कभी माली मदद के रूप में अंजाम पाता है।
उन्होंने आगे कहा, इमाम सज्जाद (अ.स) के कथन के अनुसार इंसान की महबूबियत का एक अहम ज़रिया यह है कि वह दूसरों के माल पर नज़र न रखे और उनसे बेनियाज़ी (चश्मपोशी) इख़्तियार करे।
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