हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार ,इस्लाम अमन और सुकून का दीन है और हम में से हर एक पर लाज़िम है कि एक-दूसरे का एहतेराम करें, एक-दूसरे की कद्र करें और अपने आमाल और र'वय्यों से किसी को अज़ीयत न पहुँचाएँ। इस्लाम में जिस्म का हर हिस्सा ख़ुदा-ए-मुतआल के सामने जवाबदेह है, और ज़बान उन अंगों में से एक है, जिसे अच्छाई और बुराई दोनों के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है।
ज़बान से इंसान अच्छी और नेक बातें भी कह सकता है और इसी ज़बान से दूसरों को तकलीफ़ भी पहुँचा सकता है।
ज़ैल में ज़बान के कुछ गुनाहों का बयान मकसूद है।
1. तौहीन और तहक़ीर
इस्लामी तालीमात में बड़े गुनाहों में से एक है दूसरों की तौहीन (बेइज़्ज़ती) और तज़लील करना। जो शख़्स किसी को ज़लील करता है, दरअस्ल ख़ुद ज़लील और रुसवा होता है।
हदीस में आया है:किसी फ़क़ीर (तंगदस्त) मोमिन को हक़ीर न जानो, क्योंकि जो किसी मोमिन मुहताज को हक़ीर समझता है और उसे कम समझता है, अल्लाह तआला उसे ज़लील करता है और वह हमेशा अल्लाह के ग़ज़ब में रहता है, यहाँ तक कि वह इस तौहीन से रुक जाए या तौबा कर ले।
(बिहारुल अनवार, जिल्द 75, सफ़हा 146)
2. ग़ुरूर और ख़ुद-पसंदी
उन गुनाहों में से एक जो बदक़िस्मती से समाज में बहुत आम हो गया है, वह है ग़ुरूर और ख़ुदपसंदी। ऐसे लोग जो अपनी बड़ाई जताते हैं, दरअसल कमज़ोर और हक़ीर होते हैं।
क़ुरआन ए करीम में इरशाद हुआ,बेशक अल्लाह किसी मग़रूर और ख़ुद-पसंद इंसान को पसंद नहीं करता।" (लुक़मान: 18)
दूसरों को धमकाना और डराना इंसान की शान के ख़िलाफ़ है, और किसी मोमिन को नाहक़ धमकी देना जायेज़ नहीं।
रसूल-ए-ख़ुदा (स.अ.व.) ने फ़रमाया: "जो शख़्स किसी मोमिन को डराने की नीयत से उसकी तरफ़ नज़र करे, अल्लाह तआला क़यामत के दिन उसे ख़ौफ़ज़दा और डराएगा उस दिन जब अल्लाह के साए के सिवा कोई साया न होगा।
3. गुनाह का इज़हार
दूसरों के सामने अपने गुनाह का इज़हार करना बहुत बड़ा गुनाह है। अगर किसी इंसान से कोई गुनाह अंजाम पा जाए तो उसे चाहिए कि वह उसे सिर्फ़ अपने ख़ुदा के सामने बयान करे और उसी से तौबा करे।
हज़रत इमाम अली रज़ा (अ.स.) ने फ़रमाया: "जो शख़्स गुनाह को छिपाता है, उसका अमल सत्तर हज़ार नेक आमाल के बराबर है, और जो अपने गुनाह को ज़ाहिर करे, वह ज़लील व रुसवा होता है, और गुनाह छिपाने वाला बख़्शा जाता है।"
(उयून अख़बार-र-रज़ा, जिल्द 12, सफ़हा 412)
4. राज़दारी
इंसान को चाहिए कि अपने ज़ाती राज़ों को महफ़ूज़ रखे और उन्हें किसी के सामने ज़ाहिर न करे।हदीस में है,तुम्हारा राज़ जब तक फाश न हो, ख़ुशी का बाइस है, और जब ज़ाहिर हो जाए तो ग़म व अंदोह का सबब बनता है।" (ग़ुररुल-हिकम /436)
5. फ़ुज़ूल और बेफ़ायदा बातों से परहेज़
लोगों के सामने फ़ुज़ूल गुफ़्तगू करना या बेकार पैग़ामात और ईमेल्स भेजना भी इसी में शामिल है।अमीरुल मोमिनीन इमाम अली (अ.स.) ने फ़रमाया: "ऐ लोगो! तक़वा अख़्तियार करो, क्योंकि इंसान बेकार पैदा नहीं किया गया कि खेल-कूद में मशग़ूल रहे, और न ही उसे आज़ाद छोड़ा गया है कि बे-माना (ग़ैर-मुफ़ीद) बातें करे।" (नहजुल बलाग़ा, हिकमत 37)
6. बेजा सवालात
बे-बुनियाद और फ़ुज़ूल सवालात करना भी ज़बान के गुनाहों में से है। इंसान को चाहिए कि ऐसे फ़ुज़ूल सवाल करने के बजाए ग़ौर व फ़िक्र करे और इल्म हासिल करे। क़ुरआन करीम (सूरा मायदा, आयत 101–102) में इरशाद हुआ:
"ऐ ईमान वालो! उन चीज़ों के बारे में सवाल न करो जो अगर तुम पर ज़ाहिर कर दिये जाएँ तो तुम्हें नागवार गुज़रें, और अगर कुरआन के नुज़ूल के वक्त पूछोगे तो वह भी ज़ाहिर कर दी जाएँगी। अब तक की बातों को अल्लाह ने माफ़ कर दिया है, वह बड़ा बख़शने वाला और बर्दाश्त करने वाला है। तुमसे पहले की क़ौमें भी ऐसे ही सवाल करती थीं और फिर काफ़िर हो गईं।
7. बिला-वजह माज़रत-ख़्वाही
बिला-वजह और बे-दलील माज़रत-ख़्वाही गुनाहों में इज़ाफ़ा करती है और इसका कोई फ़ायदा नहीं होता।हज़रत अमीरुल मोमिनीन इमाम अली (अ.स.) ने फ़रमाया: "ज़्यादा माज़ेरत करना गुनाहों को बढ़ा देता है।"(ग़ुररुल-हिकम, हदीस 241)
8. ऐब-जूई (दूसरों में ऐब निकालना)
बड़े गुनाहों में से एक यह है कि इंसान दूसरों के ऐब तलाश करे।जो लोग बार-बार दूसरों में ऐब निकालते हैं, वे कामयाब नहीं होते और अपनी इज़्ज़त व हुरमत को ख़ुद ही ज़ाया कर देते हैं।
इमाम जाफ़र सादिक़ (अ.स.) से र'वायत है: "जो शख़्स किसी मोमिन को उसके गुनाह पर मलामत करे, ख़ुदा-ए-मुतआल उसे दुनिया और आख़िरत दोनों में उसी तरह रुसवा करेगा।
(उसूल-ए-काफ़ी, जिल्द 2, सफ़हा 356)
9. दूसरों को धमकाना
दूसरों को धमकाना इंसान की शान के खिलाफ है और इंसान को यह हक़ हासिल नहीं की किसी को धमकियां दे चाहे जबानी हो या अमली हो! रसूल-ए-ख़ुदा (स.अ.व.) ने फ़रमाया: "जो शख़्स किसी मोमिन को डराने की नीयत से उसकी तरफ़ नज़र करे, अल्लाह तआला क़यामत के दिन उसे ख़ौफ़ज़दा और डराएगा उस दिन जब अल्लाह के साए के सिवा कोई साया न होगा।
10- चापलूसी (खुशामद)
अफ़सोस कि आज की दुनिया में बहुत से लोग चापलूसी और झूठ में मुब्तला हो गए हैं। वो झूठ बोलते हैं ताकि मंसब, दौलत या बेहतर मक़ाम हासिल कर सकें। इस्लाम में चापलूसी मोमिन की सिफ़त नहीं बल्कि निहायत नापसंदीदा अमल है।
किसी को गुमराह करना और ग़लत मशवरा देना भी इसी ज़ुमरे में आता है।
अगर कोई शख़्स हमसे मशवरा लेने आए तो हमें अपनी पूरी कोशिश करनी चाहिए कि सच बोलें, उसे सही रहनुमाई करें और उसके अमीन बनें।
अमीरुल मोमिनीन इमाम अली अलैहिस्सलाम ने फ़रमाया: "मशवेरा लेने वाले के साथ ख़ियानत करना और उसे धोखा देना सबसे सख़्त गुनाहों में से है, ये बड़ा शर है और रोज़े क़यामत अज़ाब और सख़्ती का बाइस बनेगा।(ग़ुररुल हिकम, हदीस 397)
11- झूठ
झूठ बोलने वाला ख़ुदा का दुश्मन है। इंसान की पूरी ज़िंदगी में यही झूठ है जिसने उसे गुमराही की राह पर डाल दिया है, और झूठ बोलने वाले दरहक़ीक़त ख़ुदा के दुश्मन हैं।
रसूल-ए-अकरम सल्लल्लाहु अलैहि व आलिहि वसल्लम ने फ़रमाया:तुम झूठ से दूर रहो, क्योंकि झूठ बुराइयों की तरफ़ ले जाता है, और बुराइयाँ आग (दोज़ख़) की तरफ़ ले जाती हैं।
(जामेउल अख़बार, 149)
12- झूठा वादा करना
झूठा वादा करना इंसानों के दरमियान एतबार को खत्म कर देता है और समाज के अख़लाक़ी निज़ाम को तबाह कर देता है। झूठा वादा ख़ुदा के ग़ज़ब को भड़काता है।
अमीरुल मोमिनीन इमाम अली अलैहिस्सलाम ने जनाब मालिक अश्तर के नाम अपने एक ख़त में फ़रमाया: "उस वादे की ख़िलाफ़वर्ज़ी से बचो जो तुमने लोगों से किया है।"
13- फ़ह्हाशी
जो लोग गंदी और बेहूदा बातें करते हैं और दूसरों को गालियाँ देते हैं, वो झगड़ों और फ़साद का सबब बनते हैं और ये बुरी बात इंसान को पस्ती में गिरा देती है।
अमीरुल मोमिनीन इमाम अली अलैहिस्सलाम ने फ़रमाया: “जो शख़्स किसी को गाली देता है, वो अपने हसद करने वाले को ख़ुश और मुतमइन कर देता है।
अगर मज़ाक (बतौर मेज़ाह) ख़ुशी के लिए किया जाए तो ठीक है, लेकिन अगर बेमौक़ा और बेजा हो तो इस्लाम इसे नापसंद करता है।मज़ाक में हद से तजावुज़ करना दुश्मनी और बदबख्ती का बाइस बनता है और मज़ाक में ज़्यादती से इंसान एक-दूसरे से दूर हो जाते हैं।
14- सरज़निश
अमीरुल मोमिनीन इमाम अली अलैहिस्सलाम अपने साबिक़ ईमानी भाई के बारे में फ़रमाते हैं:
"वो उन चीज़ों में कि जिनमें उज़्र की गुजारिश होती थी, किसी को सरज़निश न करता था जब तक कि उसके उज़्र और माज़रत को सुन न ले।"
(नहजुल बलाग़ा, हिकमत 289)
15- हज्व (तनज़ व तमस्ख़ुर)
हज्व यानी किसी जमाअत या गिरोह के ऐब और कमज़ोरियाँ बयान करना है। इस्लाम में हज्व को इस क़दर नापसंद किया गया है कि अमीरुल मोमिनीन इमाम अली अलैहिस्सलाम ने हज्व करने वालों को सज़ा दी।
(वसाइलुश शिया, जिल्द 3, सफ़हा 443)
16- ज़िना की इल्ज़ाम देना
ज़िना की नस्बत देना इस्लाम और मज़हब-ए-तशय्यु में बड़े गुनाहों में शुमार होता है। क़ुरआन और अहादीस में इसकी सख़्त मज़म्मत की गई है।क़ुरआन-ए-मजीद के सूरह नूर आयत 4 में इरशाद हुआ:और जो लोग पाक दामन औरतों पर ज़िना की तोहमत लगाते हैं और चार गवाह पेश नहीं करते, उन्हें अस्सी (80) कोड़े लगाओ और फिर कभी उनकी गवाही क़बूल न करो कि ये लोग सरासर फ़ासिक़ हैं।"
17- बग़ैर इल्म और बग़ैर जाने बोलना
अगर कोई शख़्स किसी बात को नहीं जानता तो उसे नहीं कहना चाहिए। इंसान को सिर्फ़ वही बात कहनी चाहिए जिसका उसे इल्म हो और जिसका जवाब देने की इस्तेताअत रखता हो। इसलिए जो बात तुम नहीं जानते वो मत कहो, क्योंकि ज़्यादा हक़ उन्हीं लोगों के साथ होता है जो तुम्हारी बात का इन्कार करते हैं।
(नहजुल बलाग़ा, ख़त 31)
18- एहसान जताना
जब कोई शख़्स किसी पर एहसान करे तो उसे एहसान नहीं जताना चाहिए, क्योंकि एहसान जताने से उस नेकी का सवाब खत्म हो जाता है।
अहादीस में आया है कि अगर कोई नेकी करे और फिर उसको जताए तो गोया उसने कुछ भी नहीं किया।
हज़रत अमीरुल मोमिनीन इमाम अली अलैहिस्सलाम ने फ़रमाया:जो शख़्स अपनी नेकी पर मिन्नत रखता (जताता) है, उसने दरहक़ीक़त कोई नेकी नहीं की।"
(ग़ुररुल हिकम, हदीस 718)
19- बढ़ा चढ़ा कर बोलना
अमीरुल मोमिनीन इमाम अली अलैहिस्सलाम ने ग़ज़ाफ़ा गोई यानी बातों को बढ़ा चढ़ा कर कहना बदतरिन अमल क़रार दिया है।
आप (अ०स०) फ़रमाते हैं:
"कितनी ही लाफ़ज़नी (बढ़ा चढ़ा कर बात करना) ऐसी हैंं जो अपने बोलने वाले के लिए हलाकत का सबब बन जाती हैं।"
(ग़ुररुल हिकम, हदीस 415)
20- बात करने से पहले सलाम न करना
अदब की एक निशानी ये है कि इंसान बात शुरू करने से पहले सलाम करे और इस तरह अपनी शाइस्तगी का इज़हार करे।
इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम ने फ़रमाया: "किसी को सलाम करने से पहले गुफ़्तगू शुरू न करो।"
(मुस्तद्रकुल वसाइल, जिल्द 2, सफ़हा 68)
21- तअ़न व तशनीअ़ (ताना मारना और मज़ाक उड़ाना)
इस्लाम में किसी को ताना देना या तनज़ व तमस्ख़ुर का निशाना बनाना जायेज़ नहीं है, बल्कि अगर किसी में कोई ऐब या ग़लती नज़र आए तो एहतिराम के साथ उसे समझाना चाहिए, न कि उसकी तौहीन की जाए।
अमीरुल मोमिनीन इमाम अली अलैहिस्सलाम ने फ़रमाया:
“मुझे पसंद नहीं कि तुम ज़बान से बदगोई और लानत करने वाले बनो।”
22- नाहक़ और झूटी क़सम खाना
आजकल दुकानों और बाज़ारों में अक्सर देखा जाता है कि लोग किसी चीज़ को बेचने के लिए झूठ बोलते हैं और ख़ुदा की क़सम खा लेते हैं।
इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम ने फ़रमाया:
"ख़ुदा की क़सम न सच्ची बात के लिए खाओ और न झूटी के लिए, क्योंकि ख़ुदावंद ने फ़रमाया है कि ख़ुदा को अपनी क़समों का ज़रिया न बनाओ।"
(मन ला यहज़ुरहु फ़क़ीह, जिल्द 4, सफ़हा 111)
23- चुग़लख़ोरी
किसी की बात को दूसरे से बताना, यानी चुग़ली करना और किसी का कलाम दूसरों तक पहुंचाना, न सिर्फ़ इस्लाम में बल्कि किसी भी अक़्लमंद इंसान के नजदीक क़ाबिल-ए-क़ुबूल नहीं है।
सूरह हुमज़ह आयत 1 में इरशाद हुआ:"वैलुल लिकुल्लि हुमज़तिल लुमज़ह" "तबाही और बर्बादी है हर ताना ज़न और चुग़लख़ोर के लिए।"
हज़रत मुहम्मद मुस्तफ़ा सल्लल्लाहु अलैहि व आलिहि वसल्लम ने फ़रमाया: "चुग़लख़ोर कभी जन्नत में दाख़िल नहीं होगा।"
(मुस्तद्रकुल वसाइल, जिल्द 11, सफ़हा 111)
24- तोहमत (बोहतान)
अमीरुल मोमिनीन अलैहिस्सलाम फ़रमाते हैं: "कोई बेहयाई और बदी बहुतान लगाने जैसी नहीं है।
अमीरुल मोमिनीन अलैहिस्सलाम की हदीस है:
"मोमिन अपने मोमिन भाई को धोखा नहीं देता, उससे ख़ियानत नहीं करता, उसे ज़लील नहीं करता और उस पर तोहमत (बोहतान) नहीं लगाता।"
ये तो उन चंद ऐबों में से हैं जो ज़बान के सबब पैदा होते हैं, और इंसान अपनी ज़बान से बहुत से दूसरे गुनाहों का भी मुरतकिब हो सकता है। लिहाज़ा इंसान को हमेशा अपने आमाल और गुफ़्तार पर नज़र रखनी चाहिए और कोशिश करनी चाहिए कि अपनी ज़बान से दूसरों को दुख या तकलीफ़ न पहुंचाए।
दूसरे लफ़्ज़ों में — ख़ूबसूरत बोलो ताकि ख़ूबसूरत सुनो।इसलिए ज़रूरी है कि ज़बान की हिफ़ाज़त की जाए।
क़ुरआन-ए-करीम में इरशाद हुआ:
"ऐ ईमान वालो! कोई क़ौम दूसरी क़ौम का मज़ाक न उड़ाए, मुमकिन है वो लोग इनसे बेहतर हों, और न औरतें दूसरी औरतों का मज़ाक उड़ाएं, शायद वो उनसे बेहतर हों। आपस में एक-दूसरे की ऐबजुई न करो, और एक-दूसरे को बुरे अलक़ाब से मत पुकारो। ईमान लाने के बाद बुरे नाम से पुकारा जाना बहुत बुरा है। और जो तौबा नहीं करते, वही ज़ालिम हैं।"
एक र'वायत में है कि रसूल-ए-ख़ुदा सल्लल्लाहु अलैहि व आलिहि वसल्लम ने फ़रमाया:
“जो शख़्स उस चीज़ की हिफ़ाज़त का ज़िम्मा ले जो उसके दो जबड़ों के दरमियान है (यानी ज़बान) और उस चीज़ की जो उसकी दोनों टांगों के दरमियान है, मैं उसके लिए जन्नत की ज़मानत देता हूँ।
एक शख़्स ने अर्ज़ किया: “नजात का रास्ता क्या है?”
आप (स) ने फ़रमाया:अपनी ज़बान की हिफ़ाज़त करो।
दूसरे ने पूछा: “मेरे लिए सबसे ज़्यादा ख़तरा किस चीज़ का है?
आप (स) ने अपनी ज़बान पकड़ी और फ़रमाया: “ये!”
और फ़रमाया: “सबसे ज़्यादा लोग जिन चीज़ों की वजह से जहन्नम में जाते हैं, वो ज़बान और शहवत हैं।
अमीरुल मोमिनीन इमाम अली अलैहिस्सलाम फ़रमाते हैं: “ख़ुदा की क़सम! मैं यक़ीन नहीं करता कि कोई बंदा अपनी ज़बान की हिफ़ाज़त किए बग़ैर फ़ायदे मंद तक़वा हासिल कर सके।”
रसूल-ए-अकरम सल्लल्लाहु अलैहि व आलिहि वसल्लम ने फ़रमाया: “अक्सर लोग अपनी ज़बान के गुनाहों और आफ़तों की वजह से जहन्नम में जाते हैं।
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