۲ آذر ۱۴۰۳ |۲۰ جمادی‌الاول ۱۴۴۶ | Nov 22, 2024
Quran

हौज़ा/अल्लाह तआला इंसान को कोई नेमत देता है, लेकिन इंसान, नेमत देने वाले को भूल जाता है और ख़्याल करता है कि उसने ख़ुद अपने बल पर यह नेमत, यह पोज़ीशन और यह मौक़ा हासिल किया हैं।

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार ,सुप्रीम लीडर आयतुल्लाहिल उज़मा सैय्यद अली ख़ामेनई ने कहां,क़ुरआन मजीद में यह इबारत दो जगह है: फिर जब हम उसे अपनी ओर से कोई नेमत अता करते हैं तो वह कहता है यह तो मुझे अपने इल्म व हुनर की बिना पर दी गयी है (सूरए ज़ुमर आयत-49) सूरए ज़ुमर में भी है और शायद सूरए लुक़मान में भी है।

अल्लाह इंसान को कोई नेमत देता है, लेकिन इंसान, नेमत देने वाले को भूल जाता है और ख़्याल करता है कि उसने ख़ुद अपने बल पर यह नेमत, यह पोज़ीशन और यह मौक़ा हासिल किया है। ऐसी ही इबारत क़ारून के बारे में है जब उससे एतेराज़ में कहा गया कि इन नेमतों को अल्लाह की तरफ़ से समझो, अपना हिस्सा भी ले लो, लेकिन उसे अल्लाह के रास्ते में ख़र्च करो, उसने जबाव दियाः मुझे जो कुछ मिला है वह उस इल्म की बदौलत मिला है जो मेरे पास है।

मैंने ख़ुद कमाया है, मैंने अपना दिमाग़ लगाया; यह वही बड़ी ग़लती है जिसका हम सब शिकार हो सकते हैं। अपनी ओर से ग़ाफ़िल होना। ठीक ऐसा ही अल्लाह की ओर से ग़ाफ़िल होना भी है। क़ुरआन मजीद की आयतः दुनिया की ज़िन्दगी कहीं तुम्हें धोखे में न डाल दे और न ही बड़ा धोखेबाज़ (शैतान) तुम्हें अल्लाह के बारे में धोखा दे। (सूरए क़सस, आयत-78, सूरए फ़ातिर, आयत-5) यह आयत अल्लाह के बारे में धोखा खाने के बारे में है, अल्लाह के बारे में भी धोखा न खाइये।

इमाम ख़ामेनेई,

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