मंगलवार 30 दिसंबर 2025 - 13:18
हुनर ए आसमानी फ़ेस्टिवल हौज़वी फ़न की आला सलाहियतों को दर्शाता है / दीऩी फ़न को दुआ और वह़ी से जुड़कर आलमी मक़तब बनना चाहिए

हौज़ा / ईरान के हौज़ा ए इल्मिया के प्रमुख आयतुल्लाह अली रज़ा अ‘राफी ने कहा कि अगर दीऩी और हौज़वी फ़न दुआ, क़ुरआन और अहले-बैत (अ.स.) की तालीमात से जुड़ा रहे, तो वह इंसान को माद्दियत और बेहूदगी से निकाल कर बुलंद रूहानी मंज़िल तक पहुँचा सकता है और एक आलमी फ़िक्री और फ़न्नी मक़तब बन सकता है।

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार , ईरान के हौज़ा ए इल्मिया के प्रमुख आयतुल्लाह अली रज़ा अ‘राफी ने दसवें “हुनर-ए-आसमानी” फ़ेस्टिवल की इख़्तितामी तक़रीब में ख़िताब किया, जो मदरसा-ए-इल्मिया इमाम काज़िम (अ.स.) के हॉल में हुई। उन्होंने उलेमा, असातिज़ा, तुलबा, फ़न्नकारों और मुल्की व ग़ैर-मुल्की मेहमानों का ख़ैर-मक़दम किया और मुनज़्ज़िमीन, जजों और शरीक हौज़वी फ़न्नकारों का शुक्रिया अदा किया।

उन्होंने कहा कि हुनर-ए-आसमानी फ़ेस्टिवल फ़न और दीऩी फ़िक्र के गहरे ताल्लुक़ की एक रोशन मिसाल है और इससे हौज़ात-ए-इल्मिया में मौजूद आला फ़न्नी सलाहियतें सामने आती हैं। उन्होंने बताया कि माह-ए-रजब जैसे बाबरकत महीने में दुआ, मुनाजात और इबादत-ए-ख़ुदा के जो रूहानी मंज़र दिखते हैं, वही सबसे आला दर्जे का फ़न हैं, जो इंसान को ख़ुदा के क़रीब ले जाते हैं।

आयतुल्लाह आराफ़ी ने वाज़ेह किया कि दुआ, ज़ियारत, क़ुरआन-ए-करीम और अहले-बैत (अ.) के मआरिफत ही असल सरचश्मे हैं, जो फ़न को गुमराही, सतहीपन और माद्दा-परस्ती से बचाते हैं। इन नुसूस में तौहीद, इंसान की इज़्ज़त और ख़ुदा से क़ुर्ब जैसे बुलंद मआनी बहुत ख़ूबसूरत और दिलनशीन अंदाज़ में बयान हुए हैं, जो दीऩी फ़न के लिए बेहतरीन नमूना हैं।

उन्होंने कहा कि दीऩी फ़न का काम यह है कि वह इन पाकीज़ा मआनी को समाज और दुनिया तक सादा, असरदार और ख़ूबसूरत ज़बान में पहुँचाए। ऐसा फ़न इंसान को सिर्फ़ ख़्वाहिशों तक महदूद नहीं रखता, बल्कि उसे मअनी, हक़ीक़त और करामत की तरफ़ ले जाता है।

हौज़ा ए इल्मिया के सरबराह ने इंक़ेलाब ए इस्लामी के बाद ईरान में फ़न के मैदान में हुई तरक़्क़ी का ज़िक्र करते हुए कहा कि आज फ़िल्म, तसवीरी फ़नून और दूसरे शो‘बों में वाबस्ता और ज़िम्मेदार फ़न्नकार अहम ख़िदमात अंजाम दे रहे हैं, और ईरानी फ़न में एक रूहानी और इंक़िलाबी रूह नज़र आती है।

लेकिन उन्होंने ज़ोर दिया कि हौज़ा और यूनिवर्सिटियाँ मिलकर आलमी सतह पर फ़न्नी मक़ातिब (Art Schools) बनाने की तरफ़ संजीदा क़दम उठाएँ।

आख़िर में उन्होंने कहा कि फ़न को छोटा या गौण समझना बड़ी ग़लती है। फ़न दिलों पर असर करता है और हर तहज़ीब और तमद्दुन की पायेदारी में बुनियादी किरदार निभाता है।

आयतुल्लाह आराफ़ी ने दुआ की कि अल्लाह तआला इस राह में तमाम दीऩी और फ़न्नी कोशिशों को क़ुबूल फ़रमाए और इस्लामी व इंसानी क़द्रों के फ़रोग़ का ज़रिया बनाए।

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