हौज़ा न्यूज़ एजेंसी
بسم الله الرحـــمن الرحــــیم बिस्मिल्लाह अल-रहमान अल-रहीम
وَإِن يُكَذِّبُوكَ فَقَدْ كُذِّبَ رُسُلٌ مِّن قَبْلِكَ جَاءُوا بِالْبَيِّنَاتِ وَالزُّبُرِ وَالْكِتَابِ الْمُنِيرِ वइन योकज़्ज़ेबा रोसोलुम मिन क़ब्लेका जाऊ बिल बय्येनाते वज़्ज़ोबोरे वल किताबिल मसीर (आले-इमरान 184)
अनुवाद: और अगर ये लोग तुम्हें झुठलाते हैं तो तुमसे पहले भी बहुत से पैगम्बरों को झुठलाया जा चुका है जो स्पष्ट प्रमाण, शास्त्र और खुली किताबें लेकर आये थे।
विषय:
यह आयत पवित्र पैगंबर (स) को सांत्वना देने और पिछले पैगंबरों की पुष्टि करने को संदर्भित करती है। इसमें कहा गया है कि सत्य के मार्ग पर चलने वाले प्रेरितों को हमेशा विरोध और इनकार का सामना करना पड़ा है।
पृष्ठभूमि:
यह आयत सूर ए आले-इमरान की आयतों के संदर्भ में सामने आई थी जब मक्का के यहूदियों, ईसाइयों और बहुदेववादियों ने अल्लाह के रसूल (स) को नकारने की कोशिश की और उनके खिलाफ विभिन्न आपत्तियां उठाईं। अल्लाह तआला ने इस आयत के माध्यम से अल्लाह के रसूल (स) को सांत्वना दी कि उनसे पहले के दूतों को भी इनकार और विरोध का सामना करना पड़ा था, लेकिन वे अपने मिशन में सफल रहे।
तफ़सीर:
इस आयत में अल्लाह अपने पैगम्बर को दिलासा देते हुए कह रहा है कि अगर ये लोग तुम्हें झुठला रहे हैं तो तुम्हें चिंता करने की जरूरत नहीं है। तुमसे पहले भी पैगम्बरों को झुठलाया गया था, परन्तु वे प्रमाण और स्पष्ट किताबें लेकर आये थे। इसका मतलब यह है कि रसूलों का मिशन अल्लाह की ओर से है और उनका इनकार कोई नई बात नहीं है, बल्कि ऐसा हमेशा से होता आया है।
इस आयत से हमें कई महत्वपूर्ण शिक्षाएँ मिलती हैं:
- दृढ़ता: सत्य के मार्ग पर चलते समय कठिनाइयों का सामना करना स्वाभाविक है, लेकिन हमें दृढ़ रहना चाहिए। पैगम्बरों का उदाहरण हमें सिखाता है कि हमें अल्लाह की राह में किसी भी विरोध से नहीं डरना चाहिए।
- आराम और प्रोत्साहन: जब भी हम कठिनाइयों का सामना करें तो हमें याद रखना चाहिए कि यह रास्ता हमें अल्लाह के करीब ले जा रहा है। अल्लाह के पैगम्बरों को भी इन्हीं कठिनाइयों का सामना करना पड़ा और अल्लाह की मदद से वे सफल हुए।
- अल्लाह पर भरोसा रखें: हमें हर स्थिति में अल्लाह पर भरोसा रखना चाहिए। अतीत के पैगंबरों की तरह, अगर हम अल्लाह की खुशी के लिए काम करते हैं, तो अल्लाह हमारी मदद करेगा और हमें सफलता प्रदान करेगा।
- इतिहास से सबक: यह श्लोक हमें इतिहास से सिखाता है कि सत्य के दूतों को हमेशा विरोध का सामना करना पड़ा है, लेकिन अंत में सत्य की ही जीत हुई है। हमें भी उसी इतिहास को सामने रखकर अपना संघर्ष जारी रखना चाहिए।
परिणाम:
इस आयत से यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि अल्लाह के दूत और उनके अनुयायियों को हमेशा विरोधियों की आपत्तियों और खंडन का सामना करना पड़ा, लेकिन अपनी दृढ़ता और अल्लाह की मदद से वे अपने मिशन में सफल हुए। यह श्लोक हमें धैर्य और दृढ़ता सिखाता है।
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तफ़सीर राहनुमा, सूर ए आले-इमरान