۱۱ تیر ۱۴۰۳ |۲۴ ذیحجهٔ ۱۴۴۵ | Jul 1, 2024
Eid

हौज़ा/सुप्रीम लीडर ने फरमाया,ईद ए क़ुरबान से लेकर ईद ए ग़दीर तक का वक़्त दरअस्ल वह समय है जो इमामत के विषय से जुड़ा हुआ है। अल्लाह ने क़ुरआन मजीद में फ़रमाया हैः और जब इब्राहीम का उनके परवरदिगार ने कुछ कलेमात के ज़रिए इम्तेहान लिया और उन्होंने उस इम्तेहान को मुकम्मल कर लिया तो उनसे कहा मैं तुम्हें लोगों का इमाम बनाने वाला हूं।

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार ,सुप्रीम लीडर ने फरमाया,ईद ए क़ुरबान से लेकर ईद ए ग़दीर तक का वक़्त दरअस्ल वह समय है जो इमामत के विषय से जुड़ा हुआ है।

अल्लाह ने क़ुरआन मजीद में फ़रमाया हैः और जब इब्राहीम का उनके परवरदिगार ने कुछ कलेमात के ज़रिए इम्तेहान लिया और उन्होंने उस इम्तेहान को मुकम्मल कर लिया तो उनसे कहा मैं तुम्हें लोगों का इमाम बनाने वाला हूं।(सूरए बक़रह आयत 124)

हज़रत इब्राहीम को अल्लाह ने इमामत का मंसब दिया। क्यों? क्योंकि उन्होंने सख़्त इम्तेहान कामयाबी से दिया था। इस इम्तेहान की शुरुआत ईदुल अज़हा के दिन को क़रार दिया जा सकता हैं।

यहां तक कि ईदे ग़दीर का दिन आया जो हज़रत अली अलैहिस्सलाम की इमामत का दिन है। यह भी सख़्त इम्तेहानों में कामयाबी के बाद मुमकिन हुआ। अमीरुल मोमेनीन अलैहिस्सलाम ने अपनी पूरी ज़िंदगी इम्तेहानों में गुज़ारी और हर इम्तेहान में कामयाब रहे।

नबूव्वत की तस्दीक़ से लेकर हिजरत की रात तक जब हज़रत अली पैग़म्बरे इस्लाम की ख़ातिर अपनी जान की क़ुरबानी देने के लिए तैयार हो गए। इसके बाद बद्र, ओहद, हुनैन और दूसरे मौक़ों पर आपने बड़े बड़े मरहले सर किए।

यह अज़ीम ओहदा इन्हीं इम्तेहानों में कामयाबी का नतीजा है। यही वजह है कि ईदुल अज़हा और ईदे ग़दीर के बीच एक प्रकार का संबंध महसूस होता है। कुछ लोग इसे इमामत के दशक का नाम देते हैं और यह मुनासिब भी है।
इमाम ख़ामेनेई
 

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