हौज़ा न्यूज़ एजेंसी की एक रिपोर्ट के अनुसार, लखनऊ/इमाम बाड़ा गुफरान मआब में पहली मजलिस को संबोधित करते हुए मौलाना सैयद कल्बे जवाद नकवी ने कुरान और हदीस के साथ-साथ इतिहास से भी इमाम हुसैन (अ) की शहादत पर रोने और मातम मनाने की महानता साबित की। उन्होंने कहा कि हजरत आदम (अ) अपने शहीद बेटे की कब्र पर जाकर रोते थे और हत्यारे को कोसते थे, हम भी आदम की उसी सुन्नत पर चलते हैं। हम इमाम के अन्याय पर रोते हैं और उनके हत्यारे पर लानत करते हैं।
मौलाना ने कहा कि हजरत जिब्रील से इमाम हुसैन की शहादत की खबर सुनकर पैगम्बरे इस्लाम (स) भी रो पड़े थे, जिसका प्रमाण सभी संप्रदायों की किताबों में मिलता है। मौजूदा हालात पर टिप्पणी करते हुए उन्होंने कहा कि कर्बला के लोग कभी कायर नहीं हो सकते। वे हमेशा जुल्म और जालिम के खिलाफ खड़े होते हैं। वे कभी झूठी ताकतों के सामने झुकते नहीं। कल का यजीद इमाम हुसैन से बैअत मांग रहा था, आज का यजीद अपनी औलाद से बैअत मांग रहा है। न तो कल का यजीद अपने मकसद में कामयाब हुआ और न ही आज का यजीद कामयाब हुआ। मौलाना ने कहा कि हर दौर में यजीदियत की नियति अपमानजनक असफलता ही रही है।
मजलिस की शुरुआत में मौलाना ने इमाम बाड़ा गुफरान माआब के संस्थापक आयतुल्लाहिल उज्मा सय्यद दिलदार अली गुफरान माआब के बारे में बात की। उन्होंने कहा कि ऐसे समय में जब भारत में शियो की एक राष्ट्र के रूप में कोई पहचान नहीं थी, हजरत गुफरान माआब ने शियो को एक राष्ट्र के रूप में एक अलग पहचान दी। उन्होंने मजलिस की विशेषताओं को परिभाषित किया। उन्होंने जुमा और नमाज़ ए जमाअत की स्थापना की। उन्होंने शिया संप्रदाय के प्रचार के लिए कई किताबें लिखीं। उन्होंने ऐसे शिष्य तैयार किए जिन्होंने पूरे भारत में शिया संप्रदाय को बढ़ावा दिया और प्रचारित किया।
मौलाना ने कहा कि हजरत गुफरान माआब ने धर्म का प्रचार करने में कभी किसी सरकार या राजा से डर नहीं दिखाया। उनके बेटों ने इस परंपरा को कायम रखा। मजलिस के अंत में मौलाना ने कूफा में इमाम हुसैन के राजदूत हजरत मुस्लिम बिन अकील के उत्पीड़न और उबैदुल्लाह बिन जियाद के अत्याचार का वर्णन किया।
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