हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार, इमाम महदी (अलैहिस्सलाम) से जुड़ी दुआओं का अध्ययन और उनका पढ़ना, उनके ऊँचे मकाम और दर्जे को उजागर करता है और उनके मानने वालों के लिए माअरफत़ का रास्ता खोलता है। हम यहाँ उनके कुछ खास दर्जों का ज़िक्र कर रहे हैं:
खलीफ़तुल्लाह, हुज्जतुल्लाह
ज़ियारते आले यासीन में आया है:
السَّلَامُ عَلَیکَ یا خَلِیفَةَ اللَّهِ وَ نَاصِرَ حَقِّهِ، السَّلَامُ عَلَیکَ یا حُجَّةَ اللَّهِ وَ دَلِیلَ إِرَادَتِه अस्सलामो अलैका या ख़लीफ़तल्लाहे व नासेरा हक़्क़ेह, अस्सलामो अलैका या हुज्जतल्लाहे व दलीला इरादतेह
तुम पर सलाम हो, ऐ अल्लाह के खलीफा और उसके हक के मददगार तुम पर सलाम हो, ऐ अल्लाह की हुज्जत और उसकी मर्जी के रहबर तुम पर सलाम हो।
यह साफ है कि "खुदा का खलीफा" और "खुदा की हुज्जत" का मकाम, सबसे ऊँचे दर्जों में से है, जो अल्लाह ने इमाम महदी (अलैहिस्सलाम) के लिए तय किया है। इस दर्जे में वे अपने ज़माने में बेमिसाल और अकेले हैं।
बाबुल्लाह, सबीलुल्लाह
जियारते आले यासीन में पढ़ते हैं:
السَّلَامُ عَلَیکَ یا باب الله अस्सलामो अलैका या बाबल्लाह
तुम पर सलाम हो, ऐ बाबल्ललाह
जियारते साहिबुल अम्र (अ) में पढ़ते हैं:
السَّلَامُ عَلَیکَ یا سَبِیلَ اللَّهِ الَّذِی مَنْ سَلَکَ غَیرَهُ هَلَک अस्सलामो अलैका या सबील्लाहिल लज़ी मन सलका ग़ैरहू हलका
तुम पर सलाम हो, ऐ अल्लाह की सबील, कि जो कोई इसके अलावा किसी और रास्ते पर चला, वह गुमराह हो गया।
"बाबल्लाह" का मतलब यह है कि जो भी अल्लाह तक पहुँचना चाहता है, उसकी आज्ञा मानना और उसकी खुशी पाना चाहता है, उसे इमाम महदी (अलैहिस्सलाम) पर ईमान लाना, उनकी इमामत को मानना और पूरी तरह उनकी बात मानना जरूरी है। "सबीलुल्लाह" भी यही बताता है कि अल्लाह तक पहुँचने और उसके करीब होने का एकमात्र रास्ता, उसके वली यानी इमाम-ए-अस्र (अलैहिस्सलाम) पर ईमान लाना और उनकी आज्ञा का पालन करना है।
मीसाक़ल्लाह, वअदल्लाह
जियारते आले यासीन में पढ़ते हैं:
السَّلَامُ عَلَیکَ یا مِیثَاقَ اللَّهِ الَّذِی أَخَذَهُ وَ وَکَّدَهُ، السَّلَامُ عَلَیکَ یا وَعْدَ اللَّهِ الَّذِی ضَمِنَه अस्सलामो अलैका या मीसाक़ल्लाहिल लज़ी अख़ज़हू व वक्कदह, अस्सलामो अलैका या वअदल्लाहिल लज़ी ज़मेनह
तुम पर सलाम हो, ऐ अल्लाह का वह अहद (वादा/संकल्प), जिसे अल्लाह ने अपनी मखलूक से लिया है और मजबूत किया है। तुम पर सलाम हो, ऐ अल्लाह का वह वादा, जिसकी खुद अल्लाह ने गारंटी दी है।
"मीसाक़ल्लाह" का मतलब है कि इमाम महदी (अलैहिस्सलाम) पूरी तरह उस वादे और समझौते का प्रतीक हैं, जो अल्लाह ने अपने बंदों से लिया है। लोगों का इमाम महदी (अलैहिस्सलाम) से वफादार रहना, असल में पूरे दीन (धर्म) और अल्लाह के कानून (शरीअत) से वफादार रहना है। और अगर कोई उनसे जुदा हो जाए या उनका साथ छोड़ दे, तो यह ऐसा है जैसे उसने अल्लाह के सारे वादों और समझौतों को तोड़ दिया हो।
"वअदल्लाह" का मतलब है कि इमाम महदी (अलैहिस्सलाम) वही साफ-साफ वादा हैं, जिसका जिक्र कुरआन में हुआ है—कि एक दिन नेक लोग हुकूमत करेंगे और पूरी ज़मीन पर अच्छाई और इंसाफ फैलेगा। वे वही बड़े वादा किए गए इमाम हैं, जिनका आना तमाम नबियों और औलिया का सपना था, और जिनका ज़ुहूर अल्लाह की किताबों में तय और पक्का है। उनकी आमद को कोई चीज़ रोक नहीं सकती।
ऐैनुल्लाहिन नाज़ेरा
इमाम रज़ा (अलैहिस्सलाम) से वर्णित एक दुआ में है:
وَ عَینِکَ النَّاظِرَةِ عَلَی بَرِیتِکَ وَ شَاهِدِکَ عَلَی عِبَادِک व ऐेयनेकन नाज़ेरते अला बरीयतेका व शाहेदेका अला एबादेका
और (इमाम महदी अलैहिस्सलाम) तेरी वह देखती हुई आँख हैं, जो तेरी मखलूक पर निगाह रखती है, और तेरे बंदों पर गवाह है।
ये बातें बताती हैं कि इमाम महदी (अलैहिस्सलाम) अल्लाह की हुज्जत (दलील) और नुमाइंदे (प्रतिनिधि) होने के साथ-साथ, अल्लाह के निगरान (दिखने वाले) भी हैं। लोगों के छुपे और खुले सारे काम उन पर छुपे नहीं हैं, बल्कि वे हर काम के गवाह और नज़र रखने वाले हैं। इस हकीकत पर यकीन रखना, इंसान की आत्मा की तर्बियत और उसकी सफाई में बहुत मदद करता है।
इमाम महदी (अलैहिस्सलाम) का एक बयान है:
فَإِنَّا نُحِیطُ عِلْماً بِأَنْبَائِکُمْ وَ لَا یعْزُبُ عَنَّا شَیءٌ مِنْ أَخْبَارِکُم फ़इन्ना नोहीतो इल्मन बेअम्बाएकुम वला यअज़ोबो अन्ना शैउन मिन अख़बारेकुम
हमारा इल्म तुम्हारे हालात को पूरी तरह घेरे हुए है और तुम्हारी कोई भी खबर हमसे छुपी नहीं है। (अल-एह्तेजाज, भाग 2, पेज 495)
और...
श्रृंखला जारी है.....
इक़्तेबास: किताब "नगीन आफरिनिश" से (मामूली परिवर्तन के साथ)
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