मंगलवार 12 अगस्त 2025 - 12:38
ग़ैबत ए क़ुबरा मे उम्मत का मार्गदर्शन

हौज़ा / बारहवें इमाम (अ) के ग़ायब होने के बाद, उम्मत के मार्गदर्शन और इमामत की ज़िम्मेदारी किसकी है? क्या कोई व्यक्ति या एक से अधिक व्यक्ति उम्मत पर विलायत रखता है? अगर विलायत रखता है, तो उसका दायरा क्या है?

हौज़ा न्यूज एजेंसी के अनुसार | एक बहुत ही महत्वपूर्ण और बुनियादी विषय जिस पर ग़ैबत के दौर में ध्यान देना चाहिए, वह है इस्लामी समुदाय के मार्गदर्शन और नेतृत्व का मसला।

यह बात साफ़ है कि इस्लाम के ज़ूहूर से ही, इमामत और मार्गदर्शन का सवाल बना हुआ है। पैग़म्बर मुहम्मद (स) और उनके बाद मासूम इमामों ने न केवल इस्लाम धर्म और अहकाम और उसकी शिक्षाओं को समझाया, बल्कि वे अपने समुदाय के इमाम, सुधारक और नेता भी रहे। इसका मतलब यह है कि सभी मुसलमानों पर यह ज़िम्मेदारी है कि वे उनके आदेशों का पालन करें, व्यक्तिगत और सामाजिक दोनों मामलों में, और किसी भी शिया मुसलमान को इस बात पर कोई शक नहीं होना चाहिए।"

प्रश्न यह है: बारहवें इमाम (अ) के ग़ैबत ए क़ुबरा मे जाने के बाद उम्मत के मार्गदर्शन और इमामत के लिए कौन ज़िम्मेदार है? क्या कोई एक व्यक्ति या एक से अधिक व्यक्ति उम्मत पर विलायत रखता है? अगर विलायत रखता है तो उसका दायरा क्या है?

इस मूलभूत प्रश्न के उत्तर में, "विलायत ए फ़क़ीह" की चर्चा लंबे समय से होती रही है।

विलायत ए फ़क़ीह की अवधारणा

विलायत शब्द का मूल «वली» है, जिसका मतलब है किसी चीज़ के साथ कुछ और जुड़ना। 1, जहां उनके बीच एक रिश्ता होता है। इसलिए इसे दोस्ती, मदद और पालन-पोषण के अर्थों में भी इस्तेमाल किया जाता है।

इसका सबसे महत्वपूर्ण मतलब होता है किसी चीज़ या व्यक्ति की देखरेख और कामकाज संभालना। इसी अर्थ में «वली» वह होता है जो दूसरों के कामों की ज़िम्मेदारी लेता है और उनका प्रबंधन करता है। यही बात जब «विलायत ए फ़क़ीह» की होती है, तो इसका मतलब होता है कि फ़क़ीह इस ज़िम्मेदारी को निभाता है।

फ़क़ीह शब्द का मूल «फ़िक़्ह» है, जिसका मतलब होता है समझ और ज्ञान, खासकर धार्मिक ज्ञान। 2 «फ़क़ीह» वह व्यक्ति होता है जिसे इस्लामी नियमों और शिक्षा की पूरी जानकारी होती है और जो इन विषयों का विशेषज्ञ होता है। इस ज्ञान के आधार पर वह कुरआन और इस्लामी रिवायतों से व्यक्तिगत और सामाजिक मामलों में अल्लाह का हुक्म निकाल सकता है।

विलायत ए फ़क़ीह का इतिहास

कुछ लोग सोचते हैं कि «विलायत ए फ़क़ीह» एक नया विचार है और इसका इस्लामी फ़िक़्ह या धार्मिक विद्वानों की परंपरा में कोई पुराना आधार नहीं है, और यह सिर्फ़ इमाम ख़ुमैनी (रا) की राजनीतिक सोच से शुरू हुआ है। लेकिन यह एक बड़ी भूल है, जो फ़िक़्ह और मासूम इमामों की शिक्षाओं की अनजाने में न समझने की वजह से पैदा होती है।

विलायत ए फ़क़ीह की जड़ें मासूम इमामों के बयान में मिलती हैं। उन महान शख्सियतों ने धार्मिक और सामाजिक ज़रूरतों की वजह से, फ़ुक़्हा को कुछ विशेष अधिकार और नेतृत्व की अनुमति दी है। और उनके बाद से, इस्लाम मतो में भी विलायत ए फ़क़ीह का विचार लगातार बना रहा है। हम इसके कुछ उदाहरण प्रस्तुत कर रहे है।

शेख मुफीद (मृ. ४१३ हिजरी), जो शिया धर्म के बड़े फ़क़ीहों में से हैं, कहते हैं:
जब कोई न्यायप्रिय सुल्तान (जो कि इमाम मासूम (अ) है) मौजूद नहीं होता, तब न्यायप्रिय, समझदार और विद्वान फ़क़ीहों को वही जिम्मेदारी संभालनी चाहिए जो सुल्तान के कर्तव्य होते हैं। 3

शेख तूसी (मृ. ४६० हिजरी), जिन्हें शेख़ुत ताएफ़ा (शिया समुदाय के बड़े विद्वान) कहा जाता है, कहते हैं:
लोगों के बीच न्याय करना, सज़ा देना और विवाद सुलझाना केवल उसी व्यक्ति के लिए संभव है जिसे सच्चे सुल्तान (मासूम इमाम) की तरफ़ से अनुमति मिली हो। जब इमाम अपने आप ऐसा नहीं कर सकते, तो यह ज़िम्मेदारी बिना किसी संदेह के शिया फ़क़ीहों को सौंपी जाती है। 4

मुहक़्क़िक़ सानी, जो मुहक़्क़िक़ करकी के नाम से मशहूर हैं (मृ. ९४० हिजरी), कहते हैं:
इमामी फ़क़ीहों में यह सहमति है कि एक न्यायप्रिय शिया फ़क़़ीह जो फ़तवा देने के लिए सभी योग्यताएँ रखता हो, वह ग़ैबत के दौरान उन सभी मामलों में जिनमें वह इमाम के प्रतिनिधि बन सकता है, इमामों का वैध़ नायक और प्रतिनिधि होता है। 5

मुल्ला अहमद नराक़ी, जिन्हें फाज़िल नराक़ी के नाम से जाना जाता है (मृ. १२४४ हिजरी), कहते हैं:
जिस भी चीज़ पर पैग़म्बर (स) और इमाम (अ), जो इस्लाम के शासक और रक्षाकर्ता हैं, की विलायत और अधिकार होता है, उसी तरह फ़क़ीह के पास भी वही विलायत और अधिकार होता है, जब तक कि कोई ऐसा कारण न हो जो इसके उलट हो। 6

आयतुल्लाह गुलपाएगानी (र) जो आधुनिक समय के बड़े फ़क़ीह हैं, कहते हैं:
फ़क़ीहों के अधिकार का दायरा बहुत व्यापक होता है... योग्य विलायत-ए-फकीह का दायरा समाज की अध्यक्षता और संचालन से संबंधित सभी मामलों में वही होता है जो इमामों के अधिकार होते हैं, सिवाय उन मामलों के जहाँ किसी स्पष्ट दलील की वजह से यह दायरा कम या अलग हो। 7

ये केवल कुछ उदाहरण हैं शिया फ़क़ीहों के विभिन्न दौरों के विचारों के। इसके अलावा सैंकड़ों और साफ़ उदाहरण मौजूद हैं जो दिखाते हैं कि विलायत ए फ़क़ीह का मसला हमेशा से शिया उलमा के विचारों और बातों में रहा है और सभी ने इसे स्वीकार किया है।

इस्लामी क्रांति के संस्थापत हज़रत इमाम ख़ुमैनी (र) ने अपनी गहरी समझ और दूरदर्शिता से इस इस्लामी और धार्मिक सिद्धांत को खुलकर पेश किया और इस आधार पर इस्लामी नज़रिये को स्थापित किया। उन्होंने इसे मुस्लिम समाज में लागू किया और इसे ग़ैबत के समय में दीन के शासन का सबसे पूर्ण रूप बताया।

श्रृंखला जारी है ---
इक़्तेबास : आयतुल्लाह साफ़ी गुलपाएगानी द्वारा लिखित किताब "पासुख दह पुरशिसे पैरामून इमामत " से (मामूली परिवर्तन के साथ) 
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१. मुफ़रेदात-ए-राग़िब, शब्द «वली»
२. लेसान उल अरब, भाग १३, शब्द «फ़िक़्ह»
३. अल मुक़्नेआ, पेज ६७५
४. अल निहाया व नुक़्तेहा, भाग २, पेज १७
५. रसाइल, मुहक्किक करकी, भाग १, पेज १४२
६. अवाएदुल अय्याम, पेज १८७ - १८८
७. अल हिदाया एला मन लहुल विलाया, पेज ७९

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