शुक्रवार 10 अक्तूबर 2025 - 12:09
शरई अहकाम । क्या गुस्ल-ए-जुमा के बाद वुजू के बिना नमाज़ पढ़ी जा सकती है?

हौज़ा / गुस्ल-ए-जुमा हालांकि एक मुअक्कद मस्तहब है, लेकिन वुजू का स्थान नहीं ले सकता। इसलिए फर्ज़ नमाज़ या किसी भी ऐसे काम के लिए जिसमें पाकीज़गी की शर्त हो, वुजू ज़रूरी है। केवल गुस्ल-ए-जनाबत ही एक ऐसा गुस्ल है जिसके बाद बिना वुजू के नमाज़ पढ़ी जा सकती है।

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी की रिपोर्ट के अनुसार, हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लेमीन मोहसिन फल्लाहज़ादे (वली-ए-फ़क़ीह के प्रतिनिधि) ने एक फ़िक़्ही सवाल के जवाब में "गुस्ल-ए-जुमा के साथ नमाज़ पढ़ने" के मसले पर स्पष्टीकरण दिया है।

सवाल: क्या गुस्ल-ए-जुमा के बाद वुजू किए बिना फर्ज़ नमाज़ पढ़ी जा सकती है?

जवाब: हज़रत आयतुल्लाहिल उज़्मा सय्यद अली ख़ामनेई के फ़तवे के अनुसार, केवल गुस्ल-ए-जनाबत ही एक ऐसा गुस्ल है जिसके बाद वुजू की ज़रूरत नहीं होती और इंसान बिना वुजू के नमाज़ अदा कर सकता है।

लेकिन अन्य सभी गुस्लों में — जिसमें गुस्ल-ए-जुमा भी शामिल है जो स्वयं एक मुअक्कद मस्तहब काम है — वुजू करना ज़रूरी है।

इसलिए, अगर कोई व्यक्ति नमाज़ पढ़ना चाहे या कोई ऐसा काम करना चाहे जिसके लिए तहारत शर्त हो, तो उसे वुजू करना लाज़िमी होगा।

टैग्स

आपकी टिप्पणी

You are replying to: .
captcha