शनिवार 25 अक्तूबर 2025 - 07:09
शरई अहकाम । अगर पूरी नमाज़ के दौरान खड़े नहीं रह सकते, तो किस तरह नमाज़ अदा करनी चाहिए?

हौज़ा/ हज़रत आयतुल्लाह मकारिम शिराज़ी ने उस शख्स के शरई हुक्म के बारे में जवाब दिया है जो नमाज़ के कुछ हिस्से में खड़ा होने की ताक़त नहीं रखता।

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार, नमाज़ इस्लाम का स्तंभ और सबसे बेहतरीन अमली इबादत है, जिसके कुछ शर्तें और अरकान हैं, जिनका पालन हर मुकल्लफ़ पर वाजिब है। इन में से एक अहम शर्त “क़याम” या नमाज़ के वक्त खड़े रहना है। मगर शरई हुक्म हमेशा मुकल्लेफ़ीन की ताकत और हालत को देखकर तय होते हैं, और जहाँ कोई शख्स मुकम्मल तौर पर अमल को अंजाम देने की ताकत न रखे, वहाँ आसानी के हुक्म भी बताए गए हैं।

इसी संबंध में सवाल किया गया: जिसका जवाब आयतुल्लाह मकारिम शिराजी ने दिया है जिसे हम अपने प्रिय पाठको और शरई मसाइल मे रूचि रखने वालो के लिए सवाल और उसके जवाब का पाठ प्रस्तुत कर रहे है।

सवालः अगर कोई शख्स सिर्फ़ कुछ हिस्सा नमाज़ का खड़े होकर पढ़ सकता है, क्या उसे इतना ही खड़े होकर पढ़ना चाहिए? और अगर किसी ने पहले अपनी नमाज़ें बैठकर पढ़ीं, जबकि थोड़ा सा हिस्सा खड़े होकर पढ़ सकता था और उसे इसका शरई हुक्म मालूम नही था, तो उसकी क्या जिम्‍मेदारी है?

आयतुल्लाह मकरम शीराज़ी का जवाब:

1- जिस शख्स में जितना हिस्सा खड़े होने की ताकत हो, वाजिब है कि उतना खड़ा होकर नमाज़ पढ़े, बाकी हिस्सा बैठकर पढ़े। अगर बैठकर पढ़ने की भी ताकत न हो, तो लेटकर (सोई हुई हालत में) नमाज़ पढ़े।

2- और पहले की नमाज़ें अगर हुक्म न जानने के कारण बैठकर पढ़ीं, जबकि थोड़ा हिस्सा खड़े होकर पढ़ सकता था, तो उसकी कज़ा उसकी जिम्मेदारी नहीं है, लेकिन आगे से उसे जितना हिस्सा खड़े होकर पढ़ सकता है, उतना खड़ा होना चाहिए।

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