हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार, रोजमर्रा की जिंदगी में, हममें से बहुत से लोग एबादती कामों को बार-बार करने की आदत डाल लेते हैं, इतनी ज़्यादा कि ये काम हमारे अमल का एक हिस्सा बन जाते हैं। घर से बाहर निकलने से पहले वजू करना इन्हीं अच्छी आदतों में से एक है, जो कभी-कभी हमारे अंदर इतनी गहराई से उतर जाती है कि बिना किसी खास विचार के किया जाता है।
लेकिन यही अपने आप होना और आदत हमें एक मौलिक सवाल के सामने खड़ा करती है: क्या उन एबादी मसाइल में, जिनके सही होने की शर्त तहारत है, हम आदत पर भरोसा कर सकते हैं? यह सवाल सिर्फ एक साधारण शक तक सीमित नहीं है, बल्कि यह अधिक गहन फ़िक़्ही (इस्लामी कानून) चर्चाओं के लिए द्वार खोलता है।
आयतुल्लाहिल उज़्मा ख़ामेनई ने इस विषय पर एक सवाल का जवाब दिया है, जो रुचि रखने वालों के लिए प्रस्तुत किया जाता है।
सवाल: हमेशा और आदतन घर से बाहर निकलते वक्त वुज़ू करता हूँ, लेकिन कभी-कभी शक होता है कि आज वुज़ू किया था या नहीं? इसका हुक्म क्या है?
जवाब: सिर्फ़ आदत पर भरोसा नहीं किया जा सकता, जब तक खुद को यकीन न हो जाए।
आपकी टिप्पणी