शुक्रवार 14 नवंबर 2025 - 19:22
हज़रत ज़हरा का इमामत के हक़ में विरोध, बौद्धिक जागृति और ईश्वरीय अंतर्दृष्टि है: मौलाना मंज़ूर नक़वी

हौज़ाय/ मौलाना सैयद मंज़ूर अली नक़वी ने कहा कि हज़रत ज़हरा का बोलना या फ़रयाद करना केवल कोई एतिहासिक या जज़्बती वाकेआ नही बल्कि यह फ़िक्री बेदारी और इलाही बसीरत की अलामत है। बीबीؑ ने अपने उम्मत को यह सिखाया कि अगर ईमान ख़ालिस हो तो इंसान कभी बातिल के सामने कभी ख़ामूश नही रहता से ।

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार, हज़रत मासूमा (स) के हरम अबू तालिब हॉल में अय्याम ए फ़ातिमिया के मौके पर एक सभा हुई; इस सभा में मौलाना सैयद मंज़ूर अली नक़वी अमरोही ने भाषण दिया।

उन्होंने कहा कि क़ुरआन में अल्लाह का फ़रमान है:
إِنَّ الَّذِينَ آمَنُوا وَعَمِلُوا الصَّالِحَاتِ سَيَجْعَلُ لَهُمُ الرَّحْمَـٰنُ وُدًّا। यानी जिन लोगों ने ईमान लाया और अच्छे काम किए, अल्लाह उनकी मोहब्बत लोगों के दिलों में बसा देता है।

मौलाना मंज़ूर अली नक़वी ने कहा कि हज़रत ज़हरा (स) की पूरी ज़िंदगी अल्लाह से प्यार, पूरा यकीन और आध्यात्मिक महानता का आईना थी। बीबी की सिरेत हमें सिखाती है कि असली ईमान सिर्फ़ एक अकीदा नहीं, बल्कि दिल की रोशनी और रूह की ताकत है। उनकी ज़िंदगी में जो उदारता, सब्र, संकल्प और सच्चाई थीं, वे हर मोमिन के लिए उदाहरण हैं।

उन्होंने आगे कहा कि हज़रत फ़ातमा (स) का खड़ा होना सिर्फ़ कोई अस्थायी या व्यक्तिगत ज़रूरत नहीं था, बल्कि एक विलायत का ऐलान था। जब दिल ईमान से रोशन और रूह बहाल हो, तो कोई ताकत हक की आवाज़ को दबा नहीं सकती। हज़रत ज़हरा (स) का ग़म, उनकी आवाज़ और उनका खिताब सब विलायत की आवाज़ थे; वो आवाज़ जिससे बेतहज़ीबी काँप उठती है। चौदह सदी गुजर गईं लेकिन बीबी की आवाज़ आज भी ज़िंदा है और उनके क़ियाम ने हर वक्त बेतहज़ीबी के चेहरे को बेनकाब किया है।

मौलाना सैयद मंज़ूर अली नक़वी ने आय्याम ए फ़ातिमा और अय्याम आशूरा के बीच तुलना करते हुए कहा कि अय्याम ए फ़ातिमा खुद की सफाई के दिन हैं, जबकि अय्याम ए आशूरा आत्मा की तज़्किया और के दिन हैं। दोनों का मकसद इंसान को समझाना है कि जब तक कोई जाति में ईमानदारी, जागरूकता और समझदारी नहीं होगी, वह फसाद और गुमराही का शिकार हो जाती है।

उन्होंने कहा कि हज़रत ज़हरा (स) का बोलना या आवाज़ निकालना सिर्फ़ कोई ऐतिहासिक या भावुक बात नहीं, बल्कि फ़िक्री जागरूकता और ईश्वरी नजरिया है। बीबी ने अपने अमल से उम्मत को ये सिखाया कि अगर ईमान साफ़ हो तो इंसान कभी बुतपरस्ती के सामने चुप नहीं रहता।

मौलाना मंज़ूर अली नक़वी ने कहा कि एक इंसान के लिए सबसे बड़ा सम्मान और इज़्ज़त ये है कि उसे इमाम मासूम की संगति मिले; यही असली कामयाबी और अल्लाह के करीब होने का दर्जा है।

उन्होंने एक दुआ के शब्द भी सुनाए:
فَأَسْأَلُ اللَّهَ الَّذِي مَنَّ عَلَيَّ بِمَعْرِفَتِكُمْ وَمَعْرِفَةِ أَوْلِيَائِكُمْ وَرَزَقَنِي الْبَرَاءَةَ مِنْ أَعْدَائِكُمْ وَأَنْ يَجْعَلَنِي مَعَكُمْ فِي الدُّنْيَا وَالْآخِرَةِ। मैं अल्लाह से पूछता हूँ जिसने मुझे आपकी और आपके वलीयों की معرفत दी, और आपके दुश्मनों से अलग किया ताकि वह मुझे दुनियाँ और आख़िरत में आपके साथ रखे।

उन्होंने बताया कि "मैरिफ़त" सिर्फ नाम जानना नहीं है। इतिहास में कई लोग होते हैं जो हुसैन इब्ने अली (अ) या अली मुर्तज़ा (अ) या फ़ातिमा जहरा (स) के नाम से परिचित थे, लेकिन उनकी असली मारफ़त से दूर थे। असली मारफ़त तब होती है जब जुबान, दिल और अमल एक रास्ते पर हों, जब प्यार और नेक काम साथ हों, और इंसान अपने इमाम की राह पर चलता हो।

मौलाना नक़वी ने कहा कि शिया होना सिर्फ नाते या दावे का नाम नहीं, बल्कि अमल से साबित होने वाला रिश्ता है।

उन्होंने हज़रत जहरा (अ) का यह फरमाना याद दिलाया:
إِن كُنتَ تَعْمَلُ بِمَا أَمَرْنَاكَ وَتَنْتَهِي عَمَّا زَجَرْنَاكَ، فَأَنْتَ مِن شِيعَتِنَا। अगर तुम वही करते हो जो हमें हुक्म दिया है और उससे बचते हो जिसकी हमने मना किया है, तो तुम हमारे शिया हो।

मौलाना नक़वी ने कहा कि असली ईमान और शफ़ा’त पाने के लिए मोमिन को ये गुण लेने चाहिए:

  1. साफ़ सुथरा ईमान रखना

  2. अमल और अकीदा दोनों की तरफ से शिया होना

  3. शफ़ा’त पर पूरा यकीन रखना

  4. नमाज़ कायम करना

  5. क़ुरआन की त़िलावत करना

  6. धोखाधड़ी से दूर रहना

उन्होंने कहा कि ये वो गुण हैं जो इंसान को इमाम की संगति और अल्लाह के करीब पहुंचाते हैं।

अंत में मौलाना सैयद मंज़ूर अली नक़वी अमरोही ने कहा कि इमाम की मारफ़त सिर्फ जुबान से नहीं, बल्कि दिल की रोशनी और अमल की सच्चाई से मिलती है। जो व्यक्ति अपने इमाम की राह पर चलता है, वही असली शिया है और वही दुनियाँ और आख़िरत में शफ़ा’त और इमाम की संगति पाता है।

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