हौज़ा न्यूज़ एजेंसी की रिपोर्ट के अनुसार, तब्लीग़ ओ मुतालआत-ए-इस्लामी बाक़रुल उलूम (अलैहिस्सलाम) रिसर्च सेंटर मे आयतुल्लाह सैय्यद मुस्तफ़ा ख़ुमैनी (रहमतुल्लाह अलैह) की शहादत की बरसी के मौक़े पर मुनअक़िदा इल्मी नशिस्त "मुस्तफ़ा, रुहे ख़ुदा" मे हौज़ा ए इल्मिया के शोधकर्ता ने बताया कि आयतुल्लाह सय्यद मुस्तफा ख़ुमैनी मे पूरी तरह से इल्मी मरजेईयत की क्षमता थी। आयतुल्लाह सय्यद मुस्तफ़ा खुमैनी अपने कम उम्र में ही इज्तिहाद हासिल कर चुके थे। उन्होंने दिल से पढ़ाई-लिखाई की, बहुत सारे छात्रों को तैयार किया और कई अमूल्य शैक्षणिक कृतियाँ छोड़ीं।
शैक्षणिक शुरुआत और अध्ययन के चरण
उन्होंने 15 साल की उम्र में हौज़ा ए इल्मिया में दाखिला लिया और बड़े धर्मगुरुओं जैसे आयात ए एज़ाम बुरुजर्दी, अल्लामा तबातबाई, शेख मुर्तज़ा हाएरी और इमाम ख़ुमैनी से तालीम प्राप्त की। मात्र 27 साल की उम्र में उन्होंने इज्तिहाद की पहुंच हासिल कर ली।
असाधारण स्मरण शक्ति और शैक्षणिक प्रतिभा
वे दयार-ए-शिया के क़ुरआनी और साहीह हदीसों के साथ-साथ हाफ़िज़ व साअदी और मस्नवी माअनवी के शेरों और अध्यायों को भी याद रख पाते थे।
अध्ययन और समय का बेहतरीन उपयोग
उन्होंने अपने हर अवसर को विद्या अर्जन में पूरी तरह लगाया। क़ज़ल क़ल्ए के कारावास के दौरान उन्होंने 120 पृष्ठ फिक़्ही (इस्लामी फिक़ह) चर्चाएँ लिखीं और तुर्की में प्रवासन के वक्त भी फिलॉसफ़ी और फिक्ह के शोध जारी रखे। उनका रोज़मर्रा का अभ्यास था कि सूर्यास्त से सुबह तक वे पढ़ते रहे।
शैक्षणिक आलोचना और सवाल-जवाब का जूनून
उनके अंदर तीव्र ज्ञान की खोज नजर आती थी। वे इमाम खुमैनी के दरस-ए-ख़ारिज़ (उच्च स्तरीय धर्मशास्त्र का व्याख्यान) में किसी भी प्रश्न पर एक जवाब से संतुष्ट न होकर पूछते रहे जब तक कि संतोषजनक जवाब नहीं मिलता।
आज़ाद सोच और इज्तिहाद
वे एक स्वतंत्र विचारधारा के मालिक मौजिज़ थे। वे पुराने विद्वानों के रुतबे को मानते थे पर उनकी सोच को तक़लीद (अनुसरण) का बंधन नहीं मानते थे।
शैक्षणिक व्यापकता और सामाजिक दृष्टि
वे फिक्ह, उसूल, फ़लसफ़ा, इरफ़ान, तफ़सीर व अरबी अध्यापन में विशेषज्ञ थे और राजनीतिक-सामाजिक मुद्दों पर भी उनकी गहरी समझ थी। उन्होंने नजफ़ में इस्लामी आंदोलन के लिए संगठनात्मक सुझाव भी दिये।
शिक्षण कार्य
जैसे नजफ़ एक महान शैक्षणिक केंद्र है जहां बड़े शिक्षक पढ़ाते थे, उन्होंने 10 वर्षों में उसूले फ़िक़्ह का पूरा पाठ्यक्रम पढ़ाया और शरह मंज़ूमा तथा मकासिब के भी व्याख्यान दिये।
शोध प्रवृत्ति और शैक्षणिक प्रकाशन
वे केवल पढ़ाने तक ही सीमित नहीं थे, शोध और लेखन में भी सक्रिय थे। उनके 50 से ज्यादा लेख प्रकाशित हो चुके हैं, जिनकी पुस्तक संख्या लगभग 90 तक पहुँचती है।
वलीयत-ए-फक़ीह
हर इज्तिहाद करने वाले को वलीयत-ए-फक़ीह बनने का मौका नहीं मिलता, पर वे सभी वैज्ञानिक नेतृत्व के मापदंडों पर खरे थे। आयतुल्लाह फ़ाज़िल लंकरानी ने भी उनके इज्तिहाद की पुष्टि की और उन्हें अपने जमाने के युवा इज्तिहादियों में सबसे योग्य माना।
अंतिम शब्द
हौज़ा के शोधकर्ता ने कहा कि शहीद मुस्तफ़ा ख़ुमैनी ने अपनी युवावस्था को पूरी तरह विद्या, शिक्षण और शोध के लिए समर्पित कर एक आदर्श कायम किया। आज के विद्यार्थी उनकी ज़िंदगी से सीख लें कि ज्ञान-और-जहाद के रास्ते में आने वाली समस्याएं बाधा नहीं, बल्क़ि़ चुनौती हैं।
उन्होंने उम्मीद जताई कि उनकी शैक्षणिक और आध्यात्मिक सेवाओं को बेहतर तरीके से लोगों तक पहुँचाया जाएगा ताकि नयी पीढ़ी उनके जीवन से असली प्रेरणा ले सके।
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