हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार , मौलाना सैयद अहमद अली आबिदी ने खोजा जामा मस्जिद, मुंबई में जुमआ के ख़ुत्बों में अय्याम-ए-फ़ातिमिया की मुनसीबत से कहा कि फ़ातेमा स.ल.की अज़ादारी के ये दिन एक सबक, एक इबरत और एक शिक्षा हैं।
उन्होंने अय्याम ए अज़ा-ए-फ़ातिमिया का ज़िक्र करते हुए कहा कि ये हज़रत फ़ातिमा ज़हरा (स.ल.) की शहादत के दिन हैं। जो लोग भी इस सिलसिले में मजलिसें कर रहे हैं, अज़ादारी कर रहे हैं या कोई और ख़िदमत अंजाम दे रहे हैं ख़ुदा उन सब की सेवाओं को कबूल फ़रमाए और उनकी तौफ़ीक़ में इज़ाफ़ा करे।
मौलाना ने आगे कहा कि ये दिन सिर्फ़ एक यादगार नहीं हैं, बल्कि एक सबक हैं, एक इबरत हैं, एक शिक्षा हैं, जिसे हमें हासिल करना है। ऐसा नहीं है कि हम सिर्फ़ आएं, बैठें, रोएं और चले जाएं। हालाँकि बैठने और रोने का भी सवाब है, लेकिन अगर हम अधिक सवाब चाहते हैं और अपनी ज़िंदगी को और ज़्यादा सुकूनभरी बनाना चाहते हैं, तो हमें चाहिये कि हम सिद्दीका-ए-ताहिरा हज़रत फ़ातेमा ज़हेरा (स.ल.) की ज़िंदगी का गहराई से अध्ययन करें।
हज़रत फ़ातेमा ज़हेरा स.ल. की सीरत पर अमल करने की तकीद करते हुए मौलाना आबिदी ने कहा कि हमें चाहिये कि हम उनकी सीरत पर चलें, ताकि हम भी उसी राह पर चलें जिस राह पर अहलेबैत (अ.) चले थे। और यह यक़ीन कर लें कि अहलेबैत (अ.) के रास्ते से बेहतर कोई रास्ता मौजूद नहीं। उनके रास्ते के अलावा कोई भी राह न निजात दे सकता है और न ही जन्नत तक पहुँचा सकता है।
हज़रत फ़ातेमा ज़हरा (स.ल.) की मशहूर हदीस
"औरत के लिए सबसे बेहतर यह है कि न उसे कोई नामहरम देखे और न वह किसी नामहरम को देखे का ज़िक्र करते हुए मौलाना आबिदी ने कहा कि औरत के लिए सबसे बेहतर हिजाब है। हिजाब फैशन नहीं, बल्कि एक वाजिब अमल है।
उन्होंने दौर-ए-हाज़िर की बे हिजाबी का ज़िक्र करते हुए कहा कि जैसे-जैसे इंसान की दुनियावी दौलत और शोहरत बढ़ती जाती है, वैसे-वैसे हिजाब में कमी आती जाती है, जबकि इस्लाम में हिजाब वाजिब है।
इस्लामी और ग़ैर-इस्लामी तहज़ीब और अहकाम का ज़िक्र करते हुए मौलाना ने कहा कि दुनिया में इंसान जितनी तरक़्क़ी करता है उसे उतनी ही ज़्यादा “छूट” भी मिलती जाती है, लेकिन इस्लाम में मामला उल्टा है इंसान जितनी बुलंदी हासिल करता है, उससे उम्मीदें भी बढ़ जाती हैं और उसकी ज़िम्मेदारियाँ भी बढ़ जाती हैं।
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