रविवार 16 नवंबर 2025 - 19:43
तेहरान में हज़रत फ़ातेमा ज़हरा (स) की शहादत के मौके पर मजलिस का आयोजन / शेख़ जकज़ाकी की पत्नी का अहम खिताब

हौज़ा / हज़रत फ़ातेमा ज़हरा सल्लल्लाहु अलैहा की शहादत के अवसर पर तेहरान की शाहिद यूनिवर्सिटी में एक मातमी जुलुस व मजलिस का आयोजन किया गया जिसमें शेख़ इब्राहिम जकज़ाकी की पत्नी ने खिताब करते हुए कहा कि उम्मते मुस्लिम की वर्तमान समस्याएं पैगंबर मुहम्मद स.अ.व. की रिहलत के बाद घटित घटनाओं का नतीजा हैं।

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार , हज़रत फ़ातेमा ज़हरा सल्लल्लाहु अलैहा की शहादत के अवसर पर तेहरान की शाहिद यूनिवर्सिटी में एक मातमी जुलुस व मजलिस का आयोजन किया गया जिसमें शेख़ इब्राहिम जकज़ाकी की पत्नी ने खिताब करते हुए कहा कि उम्मते मुस्लिम की वर्तमान समस्याएं पैगंबर मुहम्मद (सल्लल्लाहो अलैहे वा आलेहि व सल्लम) की रिहलत के बाद घटित घटनाओं का नतीजा हैं।

अल-बसीराह संस्था, नाइजीरिया और शेख जकज़ाकी के शागिर्द तालिबे इल्म के सहयोग से शाहिद यूनिवर्सिटी में आयोजित इस मजलिस में हौज़ा के तालिबे इल्म, छात्रों और विभिन्न धार्मिक केंद्रों से जुड़े लोगों ने हिस्सा लिया। कार्यक्रम की शुरुआत कुरान की तिलावत से हुई, जिसके बाद ज़ियारत-ए-आशूरा, दुआ-ए-तवस्सुल और ज़ियारत-ए-हज़रत ज़हेरा स.अ. पढ़ी गई, जबकि मद्दाहों ने दिल दहलाने वाले मर्सिए पेश किए।

इस मौके पर शेख़ इब्राहिम जकज़ाकी की पत्नी ने संबोधन करते हुए कहा कि हज़रत ज़हरा (स.अ.) की मज़लूमियत को याद करने का मकसद सिर्फ दुखी होना नहीं बल्कि उनके रास्ते की अमली पैरवी करना है। उन्होंने कहा कि अगर कोई शख्स मजलिस में शामिल न हो सके लेकिन ज़ुल्म के खिलाफ खड़ा हो जाए तो उसका अमल ज़्यादा क़ीमती है।

उन्होंने कहा कि सारे मौजूदा बोहरान उस वक़्त की नाइंसाफियों का नतीजा हैं। अगर पैगंबर (सल्लल्लाहो अलैहे वा आलेहि वसल्लम) की वसीयत पर अमल किया जाता तो उम्मात इस अंजाम से दोचार न होती। उन्होंने इस असर को खारिज किया कि हज़रत ज़हरा (सल्ला मुल्ला अलैहा) या अमीरुल मोमिनीन (अलैहिस सलाम) ने दुनियावी इख़्तियार के लिए जद्दोजहद की उनके मुताबिक अहलेबैत (अलैहेमुस्सलाम) की जद्दोजहद ख़ालिस तौर पर दीन और वसीयत-ए-नबवी के तहफ़्फ़ुज़ के लिए थी।

ज़ैनुद्दीन ने तालिबे इल्म को नसीहत की है वह शेख जकज़ाकी की तालीमात के मुताबिक खिदमते दीन की नीयत से तालीम हासिल करें। उन्होंने कहा,तशय्यो का मतलब ज़ुल्म के खिलाफ क़याम और अहकाम-ए-इलाही की पाबंदी है।

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