भारतीय धार्मिक विद्वानों का परिचय | मौलाना सय्यद मुहम्मद महदी ज़ैदपुरी

हौज़ा /पेशकश: दनिश नामा ए इस्लाम, इन्टरनेशनल नूर माइक्रो फ़िल्म सेंटर दिल्ली

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार, उस्तादुल वाएज़ीन सय्यदुल मोहक़्क़ेक़ीन मौलाना सय्यद मुहम्मद महदी रिजवी 5 फरवरी सन 1897 ईसवी को जैदपुर ज़िला बाराबंकी प्रदेश उत्तर प्रदेश में पैदा हुए। आपके वालिद मौलाना अता मुहम्मद जैदपुरी का शुमार अपने वक्त जय्यद औलमा में होता था। मौलाना अता मुहम्मद ने अपना तबलीग़ी मरकज़ हैदराबाद को क़रार दिया और निज़ाम हैदराबादी के यहाँ उस्ताद की हैसियत से मसरूफ़े अमल थे।

आपने इबतिदाई तालीम जैदपुर के मकतब-ए-नासिरुल इमान से और अरबी, फ़ारसी की तालीम मौलवी मूनिस हुसैन और मौलवी युनुस हुसैन से हासिल की।

सैयदुल मुहक्किकीन ने अपने वालिद की वफ़ात के बाद अपने नाना मौलाना शमशाद हुसैन आसिम जैदपुरी के हमराह हैदराबाद दकन का सफ़र किया और वहाँ रहकर अपने नाना के अलावा मौलाना महदी हसन और मौलाना अहमद हुसैन से क़स्ब-ए-फ़ैज़ किया।

उस्तादुल वाएज़ीन ने हैदराबाद छोड़ने के बाद लखनऊ का रुख़ किया और वहाँ की मशहूर दर्सगाह "सुलतानुल मदरस" में दाख़िला ले कर जय्यद उस्तादों से क़स्ब-ए-फ़ैज़ किया जिनमें मौलाना मुहम्मद रज़ा फ़लसफ़ी, मौलाना मुहम्मद हादी, बाक़रुल-उलूम आयतुल्लाह मुहम्मद बाक़िरर, ख़तीब-ए-आज़म मौलाना सिब्ते हसन वग़ैरा के नाम सरे फ़ेहरिस्त हैं। सुलतानुल मदारिस से तालीम मुकम्मल करने के बाद आपने "मदरसा-ए-वाएज़ीन" में दाख़िला लिया मोसूफ़ वहाँ के पहले तुल्लाब में से थे जिन्होंने वाइज़ बनने का शर्फ़ हासिल हुआ।

आपने बर्मा रंगून और दुसरे मक़ामात का सफ़र किया। इसी दौरान मौलाना सिब्ते  हसन  ने आपको रंगून में अशरा ए मोहर्रम की मजालिस को ख़िताब करने के लिए भेजा। दो साल तक आपने कराची में अशरा ए मोहर्रम को खिताब किया , और फिर 45 साल तक मुसलसल चक इलाहाबाद में अशरा ए मोहर्रम को खिताब किया । आप हर साल एक नए मोज़ु के साथ तक़रीर करते थे।

आपने पूरे मुल्क में तकरीरें कीं, जिनमें इलाहाबाद, रदौली, नानपारा, फैज़ाबाद, सुलतानपुर, रियासत हसनपुर, मंझनपुर, लखनऊ, मिततुपुर, अकबरपुर, सीतापुर आपकी ज़ाकिरी के खास मक़ामात थे।

सैयदुल मुहक्किकीन उस्ताद, ज़ाकिर और मबल्लिग़ होने के साथ साथ शेरो-शायरी से भी गहरा लगाव रखते थे। आपके अशआर का मजमुआ कलाम-ए-नाशाद आपकी पाकीज़ा शायरी की दलील है, जिसमें मद्हिया ग़ज़लें और कसीदे देखने को मिलते हैं।

सन 1965 ईसवी में बाबाए मंतिक मौलाना शाह अब्दुल हस्सीन की रिहलत के बाद सुलतानुल मदरस में मंतिक के उस्ताद मुअयिन हुए और उमर के आख़िरी हिस्से तक तालीमी फराइज़ अंजाम देते रहे। आपको शरह मुअल्सदरा पर कामिल अदार था और उसकी मुशकिल इबारत को आसानी से हल कर देते थे। मगर फ़ितरत में सादगी और इंक्सारी पाई जाती थी। तलबा से इनतिहाई मुहब्बत और सुलूक से पेश आते थे। आपके वुजूद से सुलतानुल मदरस का इल्मी इज्जत बढ़ी थी। तलबा आपको अपने दर्स में शिरकत करने पर फख्र महसूस करते थे।

आपके शागिर्दों की फेहरिस्त काफ़ी लंबी है, जिनमें ख़तीब अकबर मौलाना मिर्ज़ा मुहम्मद अतर और डॉ. मौलाना क़लब सादिक़ के नाम सर फेहरिस्त हैं। आप मदरसा-ए-वादेहीन के ताहियात मुंहतिहन रहे।

अल्लाह ने आपको 2 फरज़ंद अता किए जो मौलाना अखलाक महदी और मुहम्मद वसी जैदपुरी के नाम से पहचाने गए।

यह इल्म और अमल का आफ़ताब 9 मोहर्रम अल-हराम 1401 हिजरी मुताबिक 1980 ईसवी को हसीना सरकार हुसैनी में तकरीर करते हुए घ़रूब हो गया। चाहने वालों का जमघट शरीअत क़दा पर उमड़ पड़ा। नमाज-ए-जनाज़ा मौलाना हकीम मुहम्मद अकबर की इमामत में अदा की गई। नमाज़-ए-जनाज़ा के बाद हज़ार आह और बका के साथ करबला जैदपुर में सुपर्द-ए-ख़ाक कर दिया गया।

माखूज़ अज़: मौलाना सैयद रज़ी ज़ैदी फंदेड़वी जिल्द-10 पेज-396 दानिशनामा ए इस्लाम इंटरनेशनल नूर माइक्रो फ़िल्म सेंटर, दिल्ली, 2024ईस्वी।  

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