हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार , इस रिवायत को " नहजुल बलाग़ा" पुस्तक से लिया गया है। इस कथन का पाठ इस प्रकार है:
:قال الامیر المومنین علیہ السلام
اخْفِضْ لِلرَّعِیَّةِ جَنَاحَکَ وَ ابْسُطْ لَهُمْ وَجْهَکَ وَ أَلِنْ لَهُمْ جَانِبَکَ وَ آسِ بَیْنَهُمْ فِی اللَّحْظَةِ وَ النَّظْرَةِ وَ الْإِشَارَةِ وَ التَّحِیَّةِ حَتَّی لَا یَطْمَعَ الْعُظَمَاءُ فِی حَیْفِکَ وَ لَا یَیْأَسَ الضُّعَفَاءُ مِنْ عَدْلِکَ وَ السَّلَامُ
हज़रत इमाम अली अलैहिस्सलाम ने फरमाया:
अपनी प्रजा के साथ नरमी और उदारता का व्यवहार करों उनसे अपना तौर तरीका नरम रखो
जो आप देखते हैं उसमें समान रहें सलाम करने में बराबरी करो, ताकि बड़े लोग तुमसे दुर्व्यवहार की अपेक्षा न करें, और कमज़ोर तुम्हारे इंसाफ से मायूस ना हो।
नहजुल बलाग़ा,मकतुब