हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार , इंटरनेशनल नूर माइक्रो फिल्म सेंटर नई दिल्ली में दो मोहर्रम 1443 हिजरी की मजलिस खिताब करते हुए,मौलाना सैय्यद ग़फिर रिज़वी साहिब क़िबला फलक चोलसी ने शोक के महत्व पर बल देते हुए कहा:
इमाम हुसैन (अ) की शहादत ने ईमान वालों के दिलों में एक गर्माहट पैदा कर दी है जो कभी खत्म नहीं होगी। हदीस में दिल को ध्यान में रखा गया है क्योंकि दिल शरीर के अंगों का सिर है और दिल के माध्यम से पूरे शरीर में गर्मी पैदा होती है।
जैसी गर्मी दिल में होगी वैसी ही गर्मी पूरे जिस्म में पैदा करेगी अगर दिल में हुसैन की मोहब्बत हो तो तमाम रग मैं हुसैनीअत की गूंज होगी, अगर दिल में शोहरत शहवत हसद वगैरा की गर्मी होगी तो पूरे जिसमें वही गर्मी गर्दिश करेगी,
मौलाना ने अपने भाषण को जारी रखते हुए कहा: हुसैन कि मुहब्बत और शहादत की गर्मजोशी आस्था की निशानी है।तार्किक रूप से इसके विपरीत का अर्थ यह होगा कि आस्था उस हृदय में नहीं है जिसमें हुसैन का प्रेम और हुसैन की शहादत की गर्माहट नहीं है।
मौलाना ग़फिर रिज़वी ने यह भी कहा इसमें कोई शक नहीं कि इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम की मज़लूमीयत पर रोना, या रुलाना या रोने जैसी शक्ल बनाना सबको सवाब मिलता है और उसके ऊपर जन्नत वाजिब है, के साथ-साथ अमल के मैदान भी में भी आगे रहना कामयाबी की दलील है।
अज़ादारी के मैदान में आगे आगे रहना लेकिन अमल के मैदान में ज़ीरू होना कोई अकल मंदी की दलील नहीं है, क्योंकि यह अज़ादार की पहचान नहीं है। एक सच्चा आज़दार वही है जो अज़ादारी के साथ-साथ एहकामे खुदा बंदी पर भी अमल करें।

हौज़ा/ अज़ादारी के मैदान में आगे आगे रहना लेकिन अमल के मैदान में ज़ीरू होना कोई अकल मंदी की दलील नहीं है, क्योंकि यह अज़ादार की पहचान नहीं है। एक सच्चा आज़दार वही है जो अज़ादारी के साथ-साथ एहकामे खुदा वंदी पर भी अमल करें
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