۱۵ تیر ۱۴۰۳ |۲۸ ذیحجهٔ ۱۴۴۵ | Jul 5, 2024
جامعہ امامیہ میں جلسہ سیرت کا انعقاد

हौज़ा / इमाम अली रज़ा (अ.स.) की शहादत के मौक़े पर जामिया इमामिया तनज़ीमुल मकातिब में जलसे सीरत मुनअक़िद किया गया। जिसमे बल्लिग जामिया इमामिया  मौलाना सैयद तनवीर अब्बास साहब ने कहा कि मोमिन में अल्लाह,नबियों और इमामों की सिफत होनी चाहिए, अल्लाह की सिफत राज़दारी है, नबियों की सिफत मुरव्वत है और  इमामों की सिफत मुश्किलों में सब्र है।

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी की रिपोर्ट के अनुसार, लखनऊ/ इमाम अली रज़ा (अ.स.) की शहादत के मौक़े पर जामिया इमामिया तनज़ीमुल मकातिब में जलसे सीरत मुनअक़िद किया गया। जिसमे बल्लिग जामिया इमामिया  मौलाना सैयद तनवीर अब्बास साहब ने कहा कि मोमिन में अल्लाह,नबियों और इमामों की सिफत होनी चाहिए, अल्लाह की सिफत राज़दारी है, नबियों की सिफत मुरव्वत है और  इमामों की सिफत मुश्किलों में सब्र है। 

मुबल्लिग जामिया इमामिया  मौलाना सैयद सफदर अब्बास ने कुरान करीम की तेलावत से जलसे का आग़ाज़ किया,  मुबल्लिग जामिया इमामिया मौलाना मोहम्मद फहीम रिज़वी,  मुतअल्लिम जामिया इमामिया मौलवी सुहैल मिर्ज़ा और जनाब सैफ अब्बास ने इमाम रज़ा (अ) की बारगाह में नज़राने अकीदत पेश किया।मुबल्लिग जामिया इमामिया मौलाना मोहम्मद रज़ा ने ज़ियारते इमाम अली रज़ा (अ) की तर्जूमे के साथ तिलावत की। मुबल्लिग़ जामिया इमामिया मौलाना सैयद अली मोहज़्ज़ब खेरद नकवी ने जलसे मे नेज़ामत की।

मुबल्लिग जामिया इमामिया मौलाना सैयद सिराज अहमद साहब ने सूरह तौबा की आयत नंबर 119 “ऐ ईमान वालों!तक़वा इख्तेयार करो और सच्चों के साथ हो जाओ" को सरनामाए कलाम क़रार देते हुए बयान किया कि कुछ लोग इमाम अली रज़ा अ०स० के बैत-उल-शरफ़ आए और खादिम से कहा, "हम मौला के शिया हैं। हमें मौला से मिलना है।" खादिम ने उनका पैग़ाम इमाम को दिया लेकिन इमाम ने मुलाक़ात की इजाज़त नहीं दी।कई दिन बीत गए और उन्होंने कहा कि हम आपके चाहने वाले हैं तो मुलाक़ात की इजाज़त मिली। इमाम अली रज़ा अ०स० ने कहा: अमीरुलमोमिनीन अ०स० के लिए शिया होना एक बड़ा मरतबा है। उनके शिया सलमान,अबूज़र,मिकदाद थे।यह सुनना था कि उन लोगों को अपनी ग़लती का एहसास हुआ और उन्होंने तौबा की।जैसे इमाम हुसैन अ०स० ने जनाबे हुर की तौबा को क़ुबूल किया और गले लगाया,वैसे ही इमाम अली रज़ा अ०स० का लुत्फ व करम उनके शामिल हाल हुआ।

मुबल्लिग जामिया इमामिया मौलाना सैयद तनवीर अब्बास साहब ने इमाम अली रज़ा अ०स० की हदीस "अल्लाह उस बंदे पर रहमत नाज़िल करे जो हमारे अम्र को ज़िंदा करे, हमारे उलूम को सीखे और दूसरों को सिखाए क्यूँ कि जब लोग हमारे कलाम की अच्छाइयों को देखेंगे तो हमारी पैरवी करेंगे।"को सरनामाए कलाम क़रार देते हुए बयान किया कि इमाम अली रज़ा अ०स० ने एक बार देखा कि उनके एक ख़ादिम ने आधा फल खाया और आधा फेंक दिया।इमाम ने उससे पूछा कि उसने ऐसा क्यों किया। उसने कहा कि मुझे उसकी ज़रूरत नहीं थी तो आप ने फरमाया तुम्हें उसकी ज़रूरत नहीं लेकिन कुछ लोग हैं जिन्हें इसकी ज़रूरत है और उन्हें इसे देना चाहिए था।इसी तरह आज हमारे समाज में नज़र करें कि हमारे बच्चों ने जो किताबें पढ़ ली हैं या यूनिफॉर्म जो छोटा हो गया है या घर में ऐसी चीज़े जिनकी हमें ज़रूरत नहीं है, उन्हें उन लोगों तक पहुंचना चाहिए जिन्हें उनकी ज़रूरत है। इमाम अली रज़ा (अ) की हदीस हमारे सामने है कि उन्होंने कहा कि मोमिन में अल्लाह,नबियों और इमामों की सिफत होनी चाहिए, अल्लाह की सिफत राज़दारी है, नबियों की सिफत मुरव्वत है और  इमामों की सिफत मुश्किलों में सब्र है।

उस्ताद जामिया इमामिया मौलाना सैयद अली हाशिम आबिदी साहब ने इमाम अली रज़ा अ०स० की हदीस "ऐ अब्दुल अज़ीम! मेरे चाहने वालों को मेरा सलाम कहना और उनसे कहना कि वह अपने दिलों में शैतान को रास्ता न दें।  उन्हें हुक्म दो कि सच बोलें, ईमानदार रहें, खामोश रहें, बेकार की बातों पर आपस में बहस न करें।  एक दूसरे से सिला ए रहम करें, एक दुसरे से मुलाक़ात करें क्यूंकि यही बात हमारी नज़दीकियों की वजह है। आपस में दुश्मनी में अपनी ज़िंदगी बर्बाद न करें।  क्योंकि मैं ने अहेद किया है कि जो कोई भी ऐसा करेगा, हमारे किसी चाहने वाले को नाराज़ करेगा या नुकसान पहुंचाएगा तो मैं अल्लाह से दुआ करूंगा कि उसे इस दुनिया में कड़ी सज़ा दे और आख़ेरत में वह नुक़्सान उठाने वालों मे होगा।" को सरनामे कलाम क़रार देते हुए बयान किया  कि इमाम अली रज़ा (अ) ने जिस बात पर सबसे ज़्यादा ज़ोर दिया है, वह है ईमान वालों का आपस में मेलजोल और एकता।  जब आप मदीना से ख़ुरासान जाते हुए इस्फ़हान के पास एक गाँव से गुज़रे तो आपको एक हदीस बतौरे यादगार लिखने के लिए कहा गया तो आप ने लिखा: "आले मुहम्मद अ०स० से मुहब्बत करो भले ही तुम गुनहगार क्यूँ न हो और उनसे मुहब्बत करने वालों से मुहब्बत करो भले ही वह गुनहगार क्यूँ न हों! इससे पता चलता है कि ईमान वालों की एकता कितनी अहेम है और एख़तेलाफ कितना बुरा है। जो कोई ईमान वालों के बीच एख्तेलाफ पैदा करता है और उन्हें अलग-अलग ग्रुप में तक़सीम करता है, इमाम अली रज़ा अ०स० उसे न केवल नापसंद करेंगे बल्कि बद दुआ भी करें गे कि उसकी दुनिया भी बरबाद और आख़िरत भी बरबाद हो जाएगी।

जलसे की तस्वीरी रिपोर्ट 

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