हौज़ा न्यूज़ एजेंसी की रिपोर्ट अनुसार, रहबरे कबीरे इंक़ेलाब हज़रत अयतुल्लाहिलउज़मा सैय्यद रूहुल्लाह मूसवी खुमैनी कुद्देसा सिर्रुह की 32 वीं बर्सी के अवसर पर जामिया इमामिया तन्ज़ीमुमकातिब में ऑनलाइन जलसा मुनअक़िद हुआ।
जलसा का आग़ाज़ जामिया इमामिया के उस्ताद क़ारी मोईनुद्दीन साहब ने किया। जिस के बाद मौलाना मुहम्मद रजा मुबल्लिग़ ने सिट्रेरी तन्ज़ीमुल मकातिब मौलाना सैयद सफी हैदर जैदी साहब का बयान पढ़ा, मौलाना रिज़वान जाफर इंस्पेक्टर तंज़ीमुल मकातिब और मौलाना सैयद कैफ़ी सज्जाद इंस्पेक्टर तंज़ीमुल मकतिब ने मंज़ूम ख़ेराजे अक़ीदत पेश किया!
मौलाना सैयद अली मुहज़्ज़ब खिरद नकवी ने कहा कि इमाम खुमैनी कोई व्यक्ति या व्यक्तित्व नहीं बल्कि एक युग का नाम है। उनका जन्म 1902 में हुआ था और 1989 में उनका इंतेक़ाल हो गया था। यह वह समय था जब धर्मशास्त्र से जुड़े लोगों को पिछड़ा माना जाता था, उनसे किसी बड़े आंदोलन या क्रांति की उम्मीद नहीं की जाती थी। ऐसे समय में इमाम खुमैनी की क्रान्ति ने न केवल उत्पीड़क को पराजित कर शोषितों को विजय दिलाई, बल्कि विद्वानों की सच्ची तस्वीर पेश की।
मौलाना सैयद हैदर अली जैदी ने कहा कि पवित्र कुरान ने एक सफल शासक की दो विशेषताओं का वर्णन किया है, एक ज्ञान है और दूसरा साहस है। इमाम खुमैनी में ये दो गुण इतने परिपूर्ण थे कि विद्वान जहां उनके ज्ञान की सराहना करते हैं, वहीं दुनिया की बड़ी ताकंतें उनके साहस और बहादुरी से डरती हैं।
मौलाना सैयद अली हाशिम आबिदी ने कहा कि इमाम खुमैनी अल्लाह के एक नेक बंदे, सच्चे शिया और इमामों के पैरोकार थे। क़ुम से गिरफ्तार कर के जब आपको ले जाया जा रहा था, एक व्यथित प्रेमी आपके पास आया तो आप ने उस से कहा चिंता मत करो लोग हमारे साथ हैं मैं जल्द ही आऊंगा लेकिन आप को ईरान से बाहर भेज दिया गया जब 13 साल बाद वापस आए तो उस आदमी से कहा तुम निर्वासित थे जब मैं जा रहा था, मैंने तुमसे कहा था कि चिंता मत करो, लोग हमारे साथ हैं, मुझे जल्द ही रिहा कर दिया जाएगा, लेकिन मुझे तेरह साल लग गए, कल मैंने इरादा किया कि अल्लाह मेरे साथ है और आज मैं वापस आ गया हूं।
मौलाना सैयद नकी अस्करी ने कहा कि अल्लाह पर भरोसा, पूर्ण विश्वास और संतोष इमाम खुमैनी की पहचान थी। ये वे गुण थे जिन्होंने न केवल ईरान में बल्कि पूरे विश्व में उत्पीड़ितों को प्रेरित किया।
मौलाना सैयद नकी अस्करी रिज़वी ने वाक़ेया सुनाया कि एक दिन नजफ इराक़ में इमाम खुमैनी ने अपने एक क़रीबी से एक साहब का हालचाल पूछा तो पता चला कि वह बहुत परेशान है। उसने कहा, "कल आओ, मैं आपको कुछ पैसे दूंगा जिसे उन्हें दे देना लेकिन संयोग से अगले दिन आपके जवान बेटे अयातुल्लाह मुस्तफा खुमैनी शहीद हो गए। ऐसे मौके पर किसी के लिए मदद मांगने का सवाल ही नहीं था, लेकिन जवान बेटे की शहादत के बावजूद जैसे ही आपकी नज़र उस आदमी पर पड़ी तुरंत उसे बुलाया और अपना वादा पूरा किया।