۱۳ تیر ۱۴۰۳ |۲۶ ذیحجهٔ ۱۴۴۵ | Jul 3, 2024
रज़ी हैदर

हौज़ा / इमाम रज़ा लोगो से बहुत ही एंकिसरी के साथ पेश आते थे जबकि आप अपनी उमर के एक हिस्सा मै वाली अहदी के मुकाम पर फायेज थे (अ) इस के बावजूद लोगों के साथ बहुत विनम्रता के साथ व्यवहार करते थे।

लेखक, मौलाना सैयद रज़ी ज़ैदी

हौजा न्यूज एजेंसी। आप का नाम अबुल हसन अली बिन मूसा रजा है। उनका जन्म मदीना में गुरुवार या शुक्रवार, 11जिलक़ादा 148 हिजरी में हुआ था। अब्बासी खलीफा मामून ने आप को मदीना से खुरासान जबरदस्ती बुलाया और अपना वली अहद काबुल करने पर मजबूर किया आप ने मदीने से खुरासान जाते हुऐ नेशापुर मैं एक हदीस इरशाद फ़रमाया जो सेल्सलातुल अज्जहब के नाम से मशहूर है। मामून ने अपने खास मकसद की खातिर मुख्तलिफ धर्म के अकाबीर के साथ मुनाजेराह करवाए जिसके नतीजे में यह सारे अकाबीर आप के ज्ञान और फजीलत से बा खबर हुए। आप ज्ञान और शराफत मै खुद बे मिसाल थे। आपका ज्ञान इतना रोशन दरखशान था कि आपको आलिमे आले-ए-मुहम्मद की उपाधि से याद किया जाता है।  मुहम्मद इब्न इसहाक अपने पिता से रिवायत करते हैं कि सातवें इमाम अपने बेटों को इस प्रकार वसीयत फरमाते थे: "तुम्हारे भाई अली इब्न मूसा, आले मुहम्मद हैं उससे अपने धार्मिक मुद्दों के बारे में पूछो और वो जो कुछ तुम से कहे उन्हें याद रखो मैंने अपने बाबा से बहुत बार कहते हुए सुना है: निश्चित रूप से मुहम्मद के परिवार के विद्वान आपके नसल से हैं, ए काश मैं उन्हें समझ पाता, क्योंकि वे अमीरुल-मोमेनीन अली (अ) के हमनाम हैं ”(बिहारुल-अनवार, मजलिसी, जिल्द 49' पेज100)

इल्मी नशिस्तो का इंऐक़ाद: आपने इल्मी नशिस्तो का इंऐकाद किया, नशिस्त की राह को हमवार और उस रास्ते मैं मुश्किल को दूर किया ताके अहले नजर आसानी और  आजादी से तहकीक करके समाज के मसाइल का हल निकल सके कुछ उदाहरण बता रहे हैं:
 विभिन्न क्षेत्रों में अकादमिक मंडल बनाए गए हैं और विभिन्न वैज्ञानिक विषयों पर चर्चा की जाएगी। इसी दौरान अनेक पुस्तकालयों की स्थापना की गई।  ज्ञान के प्यासे के लिए अनुसंधान और ज्ञान के लिए भरपूर अवसर प्रदान किए गए और इस्लामिक स्टेट में विद्वानों और दानिशमंदो को एक साथ जमा किया गया। सरकार ने तीस मदरसे स्थापित किए, जिनमें से सबसे ज़्यादा मशहूर मदरसे निजामिया हुआ। उन मदरिस सार्वजनिक लाइब्रेरी की स्थापनी की गई। जिनमे सब से मशहूर लाइब्रेरी दारुल हिक्मा नाम था।  (इमाम रज़ा की जिंदगी मैं बारीक बीनाने तहकीक, शरीफ क़रशी, जिल्द 2 पेज 283)

इमाम रज़ा के समय के सबसे महत्वपूर्ण विद्वतापूर्ण आंदोलनों (इल्मी तहरीको) में से एक विदेशी भाषाओं में पुस्तकों का अरबी में अनुवाद था, जैसे: डॉक्टरी (तिब), गणित, फलसफा, राजनीति विज्ञान, नुजूम, आदि.. इल्म तहकीकात के जज्बे को मजबूत किया।

इल्मी नक्शे जात के मूजिद: इस काल के इल्मी तहरीक में विश्व नक्शे जात का निर्माण और तैयारी। इमाम के आंदोलन का परिणाम है। 
मामून के आदेश से पूरे विश्व का नक्शा तैयार किया गया था, इस मानचित्र को मानचित्र मामून नाम दिया गया,  और यह था दुनिया का पहला एक विश्व नक्शा था जो अब्बासिद काल के दौरान अस्तित्व में आया था।

इल्मे तिब: यह ज्ञान इमाम (अ) के समय का फल है और इमाम (अ) ने इल्मे तिब को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने इल्मेतिब पर एक रिसाला लिखा जिसे ज़हबया के रूप में जाना जाता है। इमाम की जानिब से उस रिसाले की तसनीफ के बाद अब्बासी खलीफा ने भी इस सिलसिले में तहकीक और ज्ञान को सीखने का आदेश दिया और लोगों को तिब के ज्ञान को प्राप्त करने के लिए प्रोत्साहित किया। इसके अलावा, दूसरे उलूम जैसे: इल्मे कीम्या, वास्तुकला और इंजीनियरिंग अनुसंधान, जिन की बुनियाद इमाम के समय पर रखी जा चुकी थी।

इमाम रज़ा के समय में विज्ञान और कला के विकास की तरक्की कें माजाहिर से जाहिर होता है कि उस दौर में इस्लामी फरहंग ने कितनी तरक्की की थी और मुस्लिम समाज में ज्ञान और प्रयोगों (विज्ञान) को कितना महत्व दिया गया था।

इमाम रज़ा (अ) के इल्म के लिए  को सम्मानित विद्वानों और अहले-सुन्नत के विद्वानों द्वारा इब्न हजर असकलानी और सिमानी कहते है: हजरत इमाम रज़ा अहले इल्म वा फजीलत मैं से थे और नस्बी शराफत के हमिल थे। (तहज़ीब अल-तहज़ीब, इब्न हजर अस्कलानी, दार अल-किताब अल-ईलमिया, जिल्द 7, पेज 328)
 जैसे आप ज्ञान के क्षेत्र में बहुत आगे हैं, वैसे ही आप व्यावहारिक दुनिया में भी अपनी मिसाल हैं आपके व्यावहारिक जीवन के कुछ उदाहरण यहां दिए गए हैं:

इमाम का कुरान से लगाओ: मामून इमाम रज़ा (अ) से हर चीज़ के बारे में सवाल पूछते थे और इमाम अली रज़ा उस सवाल के जवाबात देते थे,इमाम जो कुछ भी बयान फरमाते थे वोह सब कुरानी मातालिब वा माफहिम पर मुश्तमिल हुआ करता था। आप हर तीन दिन में एक बार पूरे कुरान की तेलाकत करते थे और फरमाते थे: यदि मैं चाहता हूं, तो मैं तीन दिनों से भी कम समय में कुरान को समाप्त कर सकता हूं, लेकिन जब भी मैं कोई आयत पढ़ता हूं, तो मैं उस पर ध्यान देता हूं। (यह आयत) किस बारे में है और कब  नाजिल हुई है। यही कारण है कि मैं तीन दिनों में कुरान को समाप्त कर देता हूं। (बिहारूल अनवार, मजलिसी, जिल्द 49, पेज 90)

इमाम को लंबे सज्दे और नमाज़ से उन्स: आप बहुत इबादत में लगे रहते थे और एक तूलानी सज्दा किया करते थे आप की एक कनीज का बयान है की उसे कूफा की कुछ कनीजो के साथ खरीद कर मामून के महल मैं लाया गया और कुछ दिन बाद, मामून ने इमाम रज़ा (अ.) को वोह कनीज हादये मैं दे दिया। कनीज कहती है कि जब आप के घर गई थी तो जिन तमाम मद्दी दुन्यवी नेमत से जो मामून के घर मैं बेहरामंद थी वो सब हाथो से खो बैठी। इस के बाद हर रोज़ नमाज़ शब के लिए बेदार होती थी। रावी कहता है:

मैंने उससे इमाम रज़ा (अ) के बारे में पूछा और उसने कहा: जब इमाम  नमाज़  सुबह अदा करते थे(और आप हमेशा नमाज अव्वल वक्त अदा करते थे), फिर आप अपना सिर सजदे में में रखते और सूरज उगने तक अपना सिर नहीं उठाते थे । बिहारूल अनवार,जिल्द 49, पेज 90- 89)
आबा सलत हर्वी कहते हैं:
 मैं उस घर में गया जहां इमाम को कैद किया गया था। मैंने जेल के दरोगा से मिलने की अनुमति मांगी और उसने कहा: आप उसके पास नहीं जा सकते, मैंने पूछा क्यों नहीं जा सकते?  उसने उत्तर दिया कि क्योंकि इमाम रात और दिन में एक हजार रकअत नमाज़ पढ़ते है और दिन की शुरुआत में केवल एक घंटा, ज़ुहर से एक घंटा पहले और सूरज के डूबने से पहले, नमाज़ से फारिग होते है। 
वोह उस वक्त भी मुसल्ले पर होते है और अपने खुदा से मुनाजात और राज़ वा नेयाज़ करते है: 
मैंने उनसे कहा उसी समय उनसे मुलाकात के लिए अनुमति ले लो। उसने मेरे कहने के अनुसार अनुमति ली और मैं इमाम (अ) की खिदमत में हाजिर हुआ, उस समय आप चिंतन और विचार में लगे हुए थे। (अयनुल अखबार अल-रिजा, शेख सादुक, जिल्द 2, पेज183-184; बिहार अल-अनवर, मजलिसी, जिल्द 49, पेज 91)

इमाम के जीवन में नम्रता: इन सभी गुणों और कमालात के बावजूद, इमाम रज़ा लोगो से बहुत ही एंकिसरी के साथ पेश आते थे जबकि आप अपनी उमर के एक हिस्सा मै वाली अहदी के मुकाम पर फायेज थे (अ) इस के बावजूद लोगों के साथ बहुत विनम्रता के साथ व्यवहार करते थे। 
एक दिन इमाम हम्माम के एक गोशे मैं तशरीफ फरमा थे, अचानक एक शक्स आया और बे एहतारामी से कहा, मेरे सिर पर पानी डालो आप ने बहुत ही एंकेसरी से उसके सिर पर पानी डाल रहे थे।  अचानक एक आदमी जो इमाम को जानता था, अंदर आया। वह चिल्लाया और कहा:
तुम हालाक हो गए  तुम नष्ट हो जाओ गै।" (यह उस बात का केनाया था कि तुम्हारा यह काम हमारे विनाश और विनाश का कारण होगा) क्या तुम पैगंबर के बेटे और और मुसलमानों के लीडर से सेवा ले रहे हैं?
यह आदमी, जिस ने अभी अभी इमाम को पहचान लिया था उस ने खुद को हज़रत के पैरो गिरा दिया और पैरो को चूमते हुए के रहा था:  जब मैंने आप से कहा तो आप ने मेरी मुखालिफत क्यों नही किया? इमाम ने फरमाया:
इस काम मैं सवाब है और मैंने नहीं चाहा की जिसमे  मुझे सवाब मिले गा में छोर दू। (वाफी  जिल्द 22,पेज 251), इमाम का यह व्यावहारिक जीवन और गति मानव समाज के लिए सबसे अच्छा उदाहरण है।

इमाम की दरियादिली: आपने अपने जीवन में कभी भी फकीर को खाली हाथ नहीं लौटाया और जब भी कोई फकीर सवाल पूछता है, तो आप उसे उसकी हैसियत के अनुसार देते हैं।
याकूब बिन इशाक नुबख्ती कहते हैं: 
एक दिन इमाम रजा (अ) की खिदमत में आया और कहा: 
"मुझे अपनी स्थिति के अनुसार धन दे।" 
इमाम ने कहा: इतनी रकम नहीं दे सकता।
उस आदमी ने कहा:
फिर मेरी हैसियत के अनुसार मुझे दे। 
इमाम (अ) ने कहा: 
हाँ, मैं इसे इस मिकदार में दूंगा। 
फिर उसने अपने गुलाम से कहा:
उसे दो दीनार दे दो। (मनकीब अले अबी तालिब, इब्न शाहर अशोब, जिल्द 3, पेज 470)
इसी तरह, यासा इब्न हमज़ा रिवायत करते हैं:
एक आदमी इमाम रज़ा (अ) की सेवा में आया और कहा: 
ए पैगंबर के बेटे आप पर सलाम हो
मैं आप के और आप के पूर्वजों के दोस्तों में से एक हूं मैं हज से लौट रहा हूं, मेरे पास बहुत कम जादे राह
है, मैं अपने वतन तक नहीं पहुंच सकता हू, अगर यह उचित हो तो मेरी मदद करें ताकि मैं अपने शहर और वतन वापस जा सकूं, अल्लाह ने मुझे नेमत और एमकानत दी हैं अगर मैं वापस घर चला जाऊ , जो कुछ आप मुझे दोगे, मैं उन्हें ईश्वर के मार्ग में दान कर  दूंगा और मुझे सदके की आवश्यकता नहीं है।
उस समय, इमाम (अ) ने घर में दाखिल हुए और थोड़ी देर बाद आकर अपने हाथ को पोशीदा अंदाज से दरवाजे बाहर निकाला और उस आदमी से फरमाया: 
ये दो सौ दीनार हैं, उन्हें ले लो, उनका उपयोग करो और मेरी ओर से दान देने की कोई आवश्यकता नहीं है,
खुदा हाफ़िज़
जाओ, मैं तुम्हें नहीं देखूंगा और तुम भी
मुझे नहीं देखोगे।
इस वाकेया के बाद, जब हजरत घर से बाहर आए, तो आप से पूछा गया उनकी मदद छुप कर क्यों की? इमाम ने जवाब में फरमाया: 
इस डर से कि ऐसा न हो मुझे उसके चेहरे पर मांगने की शर्मिंदगी को देखन पड़े। 
फिर आप ने फरमाया:
क्या तुमने यह हदीस अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम) की ओर से नहीं सुनी है: 
जो कोई गुप्त रूप से अच्छे काम करता है वह सत्तर हज के बराबर है, और जो कोई अपने पापों को दूसरों पर जाहिर करेगा, वह बदनाम और रुसवा होगा और वह जो अपने पापों को दूसरों से छिपाए गा वोह माफ कर दिया जाएगा।
 आखिर मैं इमाम रज़ा (अ) की वेलादात की मुबारक बाद तमाम कर्यीन हजरात की खिदमत मैं पेश करता हू मैं खुदा से प्रार्थना करता हूं पलने वाले मुझे इमाम की सीरत पर अम्ल करने की तोफिक प्रदान करे। आमीन।

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टिप्पणियाँ

  • ali IN 09:18 - 2021/06/24
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    mashaallah bohut achi malomat par mushtamil maqala he hoza news ke arakeen ki zehmat hen