۱۳ تیر ۱۴۰۳ |۲۶ ذیحجهٔ ۱۴۴۵ | Jul 3, 2024
رہبر انقلاب اسلامی

हौज़ा/इस्लामी क्रांति के सुप्रीम लीडर आयतुल्लाहिल उज़मा सैय्यद अली ख़ामेनेई ने ईदुल फ़ित्र की नमाज़ के बारे में ज़रूरी फ़िक़ही मसाइल बयान किए हैं।

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार ,इस्लामी क्रांति के सुप्रीम लीडर आयतुल्लाहिल उज़मा सैय्यद अली ख़ामेनेई ने ईदुल फ़ित्र की नमाज़ के बारे में ज़रूरी फ़िक़ही मसाइल बयान किए हैं।

1)ईदुल फ़ित्र की नमाज़ें 12 इमामों की ज़िन्दगी में उनकी मौजूदगी की स्थिति में वाजिब हैं और ज़रूरी है कि जमाअत के साथ पढ़ी जाएं। आज के ज़माने में (बारहवें इमाम की ग़ैबते कुबरा में) मुस्तहब हैं।
2)ईदुल फ़ित्र की नमाज़ का वक़्त ईद के दिन सूरज निकलने से लेकर ज़ोहर तक है।
3) ईदुल फ़ित्र में मुस्तहब है कि सूरज चढ़ आने के बाद पहले इफ़्तार करे और ज़काते फ़ितरा अदा करे, उसके बाद ईद की नमाज़ पढ़े।
4) ईदुल फ़ित्र की नमाज़ दो रकत है। पहली रकत में अलहम्द और सूरे के बाद ज़रूरी है कि पाँच बार तकबीर कहे और हर तकबीर के बाद एक क़ुनूत पढ़े और पाँचवें क़ुनूत के बाद एक तकबीर कहे और रूकू में जाए और दो सजदों के बाद खड़ा हो जाए और दूसरी रकत में अलहम्द और सूरे के बाद चार तकबीरें कहे और हर तकबीर के बाद क़ुनूत पढ़े और पांचवीं तकबीर के बाद रूकू में जाए और नमाज़ को मुकम्मल करे।
5)ईदुल फ़ित्र की नमाज़ में सूरों को ऊंची आवाज़ में पढ़ना मुस्तहब है।
6)ईदुल फ़ित्र की नमाज़ के लिए कोई सूरा मख़सूस नहीं है लेकिन बेहतर है कि पहली रकत में सूरए शम्स और दूसरी रकत में सूरए ग़ाशिया या पहली रकत में सूरए आला और दूसरी रकत में सूरए शम्स पढ़ा जाए।
7)ईदुल फ़ित्र की नमाज़ के क़ुनूत में जो भी दुआ और ज़िक्र पढ़ा जाए काफ़ी है लेकिन बेहतर है कि सवाब पाने की नियत से यह दुआ पढ़ेः अल्लाहुम्मा अहलल किबरियाए वल अज़मते व अहलल जूदे वल जबरूत व अहलल अफ़्वे वर्रहमह व अहलत तक़वा वलमग़फ़िरह। असअलुका बेहक़्क़े हाज़ल यौमिल लज़ी जअलतहू लिल मुस्लेमीना ईदा वले मोहम्मदिन सल्लल लाहो अलैहि व आलेही ज़ुख़रन व शरफ़न व करामतन व मज़ीदा। अन तुसल्लेया अला मोहम्मदिन व आले मोहम्मद। व अन तुदख़िलनी फ़ी कुल्ले ख़ैरिन अदख़ल्ता फ़ीहे मोहम्मदन व आला मोहम्मद। व अन तुख़रेजनी मिन कुल्ले सूईन अख़रज्ता मिनहो मोहम्मदन व आला मोहम्मद। सलवातुका अलैहे व अलैहिम। अल्लाहुम्मा इन्नी असअलुका ख़ैरा मा सअलका बेहि इबादोकस्सालेहून व अऊज़ों बिका मिम्मस तआज़ा मिन्हो इबादोकल मुख़्लेसून।
8)ईदुल फ़ित्र की नमाज़ में छोटा या लंबा क़ुनूत पढ़ने में कोई हरज नहीं है, लेकिन उनकी तादाद को कम करना या बढ़ाना जायज़ नहीं है।

9)अगर ईदुल फ़ित्र की नमाज़ पढ़ने वाले को नमाज़ की तकबीरों या क़ुनूत में शक हो जाए, अगर उसका मक़ाम न गुज़रा हो तो यूं समझे कि कम बजा लाया है और बाद में मालूम हो जाए कि पढ़ चुका था, तो कोई हरज नहीं है।
10)अगर कोई शख़्स क़िरआत, तकबीर या क़ुनूत को पढ़ना भूल जाए तो नमाज़ सही है, लेकिन रुकू या दो सजदे या तकबीरतुल एहराम को भूल जाए तो नमाज़ बातिल है।
11)ईदुल फ़ित्र और ईदे क़ुरबान की क़ज़ा नहीं है।

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