हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार ,माहें शाबान की पन्द्रहवीं शब के आमाल की फ़ज़ीलत बहुत है इस शब गुस्ल करें और इस शब की बरकतों में एक यह भी है कि इस रात हज़रत इमाम मेंहदी अलैहिस्सलाम की विलादत हुई है।
इस रात में कुछ नमाज़े और दुआएं है जो हमें अदा करनी चाहिए। इन को अदा करने के दो तरीक़े हैं।
पहला तरीक़ा है कि दो दो कर के (दस रकत नमाज़) पढ़ें हर रकत में (सूरए फ़ातिहा यानी सूरए हम्द) के बाद दस बार (सूरए क़ुल हु वल्लाह) पढ़ें।
दूसरा तरीक़ा है कि दो दो कर के चार रकत नमाज़ पढ़ें हर रकत में (सूरए फ़ातिहा) के बाद सौ बार (सूरए क़ुलहु वल्लाह) पढ़ें।
इस नमाज़ की नीयत: दो रकत नमाज़ पढ़ता / पढ़ती हूँ निमे शाबान की "क़ुर बतन इलल्लाह" और इस तरह इस नमाज़ को अदा करें फिर तस्बीह ए फ़ातिमा (स.अ) पढ़ें।
अब इस के बाद में कुछ तस्बीह है जो हम को अदा करनी है:
सुब्हान अल्लाह (100)
अलहम्दु लिल्लाह (100)
अल्लाहु अकबर (100 बार)
ला इलाहा इल्लल्लाह (सौ बार)
हज़रत इमाम मुहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम फ़रमाते हैं: इस रात सौ बार सुब्हान अल्लाह, सौ बार अल हम्दु लिल्लाह, सौ बार अल्लाहु अकबर और सौ बार 'ला इलाहा इल्लल्लाह' कहने का बहुत सवाब है।
फिर इस के बाद में एक तस्बीह सलवात की अदा करनी है और फिर अल्लाह से हाजत तलब करें।
फिर इस के बाद एक तस्बीह: "अस्तग़फ़िरूल्लाहल्लज़ी ला इलाहा इल्ला हुवर्रहमानुर्रहीमुल हय्युल क़य्यूम व अतूबु इलैह" या फिर "अस्तग़फ़िरुल्लाह रब्बी व अतूबो इलैह" की पढ़ें।
फिर इस के बाद में एक तस्बीह: सूरए क़द्र यानी सूरए 'इन्ना अन ज़लना' की पढ़ें।
फिर इस के बाद सुबह की नमाज़ की तरह 'दो रकत' नमाज़े हाजत पढ़ें।
फिर इस के बाद में दो रकत नमाज़ ज़ियारत-ए-इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम पढ़ें।
फिर इस के बाद में दो रकत नमाज़ ज़ियारते इमाम मेंहदी अलैहिस्सलाम पढ़ें।
फिर तस्बीहे फ़ातिमा (स.अ) पढ़ें और हाजत तलब करें और आख़िर में इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम की ज़ियारते वारेसा पढ़ें इसकी बहुत फ़ज़ीलत है।
विलादते हज़रत इमामें ज़माना अ.स. मुबारक हों