۱ آذر ۱۴۰۳ |۱۹ جمادی‌الاول ۱۴۴۶ | Nov 21, 2024
डॉ. अब्बास महदी हसनी

हौज़ा / कोई भी मुसलमान पवित्र पैगंबर (स.अ.व.व.) की महिमा में अहंकार को बर्दाश्त नहीं कर सकता है। हालांकि, मुस्लमानो को नबी रहमत इतना अधिक प्यारा है कि वह अपने माल और संतान को तो कुरबान कर सकता है लेकिन नबी रहमत का अपमान कदापि सहन नही कर सकता। इस बदसूरत और घृणित कृत्य के खिलाफ कोई भी कार्रवाई शरिया के दायरे में होनी चाहिए और भारत के संविधान के खिलाफ नहीं होनी चाहिए।

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी की रिपोर्ट के अनुसार भारत के वर्तमान स्थिति के संबंध में एक बयान में भारत के प्रख्यात धार्मिक विद्वान और हौज़ा ए इल्मिया कु़म के प्रख्यात विचारक हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लेमीन मौलाना डॉ. सैयद अब्बास मेहदी हुसनी ने कहा कि केंद्रीय सरकार जिस प्रकार अल्पसंख्यकों के पवित्र स्थलो का अपमान करने की पूर्ण स्वतंत्रा दे रखी है और आए दिनो में मीडिया और धर्म संसद जैसे पक्षपाती कार्यक्रमों के जरिए अल्पसंख्यक संप्रदायों की पवित्रता का अपमान करने की प्रवृत्ति का चलन जारी है जबकि कोई भी धर्म और भारत का संविधान भी इसकी अनुमति नहीं देता है।

डॉ अब्बास मेहदी हसनी ने कहा कि साथ ही कुछ अरब और इस्लामी देशों ने अपनी इस्लामी जागरूकता दिखाई है और भाजपा के सदस्यों द्वारा पवित्र पैगंबर (स.अ.व.व.) के अपमान की कड़ी निंदा की है, जिसने अपनी अंतरराष्ट्रीय प्रतिष्ठा को नकारात्मक रूप से प्रभावित किया है। इसे बचाने के लिए और पार्टी ने अपने दोनों सदस्यों को अस्थायी रूप से बर्खास्त कर दिया, जो पर्याप्त नहीं है।

उन्होंने कहा कि पवित्र पैगंबर के प्रति उनकी गहरी भक्ति के कारण भारतीय मुसलमान भी इस अपमान को सहन नहीं कर सके और विभिन्न स्थानों पर विरोध का सिलसिला शुरू हो गया।

उन्होंने आगे कहा कि भारतीय संविधान के अनुसार विरोध प्रत्येक भारतीय नागरिक का व्यक्तिगत अधिकार है - लेकिन दुखद तथ्य यह है कि शांतिपूर्ण विरोध कुछ जगहों पर हिंसा में बदल गया है जो नहीं होना चाहिए था। इस शांतिपूर्ण विरोध के कई कारण हो सकते हैं। हिंसा का रूप ले लिया है। गंभीरता की तलाश की जानी चाहिए - जिसमें मुख्य भूमिका हिंदू चरमपंथी संगठनों द्वारा निभाई जाती है, जिनके नस्लवादी और दमनकारी कार्यों की सरकार हमेशा मूक दर्शक रही है। अगर सरकार ने समय रहते प्रभावी कदम उठाए होते तो शायद ये दिन नहीं होते।

उन्होंने कहा कि इस्लामिक पवित्रता की पवित्रता में, विशेष रूप से नबी ए रहमत की महिमा में, कोई भी मुसलमान गुंडागर्दी बर्दाश्त नहीं कर सकता। दुसाहस बर्दाश्त नहीं किया जा सकता। हालांकि, इस बदसूरत और घृणित कृत्य के खिलाफ कोई भी कार्रवाई शरिया के दायरे में होनी चाहिए और भारत के संविधान के खिलाफ नहीं होनी चाहिए।

उन्होंने आगे कहा कि ईशनिंदा और अन्य मुद्दों के खिलाफ दो महत्वपूर्ण और मौलिक बिंदुओं पर ध्यान देना महत्वपूर्ण है। अधिकांश इस्लामी संप्रदायों का प्रतिनिधित्व किया जाना चाहिए। दूसरा, मुस्लिम देशों को एक मंच पर एक साथ आने की तत्काल आवश्यकता है। ताकि इस्लामी दुनिया के सामने आने वाले मुद्दों के समाधान के लिए व्यावहारिक कदम उठाए जा सकें।

उल्लेखनीय है कि इस्लामी गणतंत्र ईरान ने हमेशा सभी मुसलमानों, विशेषकर अरब और इस्लामी देशों की एकता पर जोर दिया है, क्योंकि इसमें मुस्लिम उम्माह की समस्याओं का समाधान और उनके विकास का रहस्य निहित है। सभी मुसलमानों का पहला क़िबला बहुत जल्द सुलझा लिया जाएगा।

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