हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार ,हज़रत आयतुल्लाहिल उज़्मा सैय्यद अली ख़ामनेई ने कहां,उस वक़्त की ज़ालिम सरकार, पैग़म्बर के अहलेबैत की इस महान हस्ती को इससे ज़्यादा बर्दाश्त करने पर तैयार क्यों नहीं हुई? इस सवाल का जवाब हमें इमाम मुहम्मद तक़ी अलैहिस्सलाम के व्यक्तित्व और उनकी ज़िंदगी से मिलता है। वो ज़ुल्म और असत्य के ख़िलाफ़ संघर्ष का आईना थे, वो अल्लाह के शासन की स्थापना की दावत देने वाले थे, वो अल्लाह और क़ुरआन के लिए संघर्ष करते रहते थे, वो दुनिया की ताक़तों से कभी भी नहीं डरे।
इमाम मुहम्मद तक़ी अलैहिस्सलाम की ज़िंदगी, आदर्श है।
उनकी शख़्सियत में असीम महानताएं थीं लेकिन वो 25 साल की उम्र में इस दुनिया से चले गए। ये हम नहीं कहते, ग़ैर शिया इतिहासकारों ने भी लिखा है कि ये महान हस्ती, अपने बचपन और लड़कपन में ही उस समय के ख़लीफ़ा मामून और दुनिया की नज़र में ख़ास मुक़ाम हासिल कर चुकी थी। ये बड़ी अहम चीज़ें हैं। ये हमारे लिए आदर्श हैं। 27 अप्रैल 1998
इमाम मुहम्मद तक़ी अलैहिस्सलाम और इमामत
अल्लाह के इस नेक बंदे की छोटी सी उम्र कुफ़्र और ज़ुल्म से संघर्ष में गुज़र गई। आप लड़कपन में ही इमामत के पद पर आसीन हुए। बहुत कम समय में आपने अल्लाह के दुश्मन से जेहाद किया। अभी आपकी उम्र सिर्फ़ 25 साल ही थी कि अल्लाह के दुश्मनों को यक़ीन हो गया कि वो उनके वुजूद को अब और बर्दाश्त नहीं कर सकते। इस लिए ज़हर देकर उन्हें शहीद कर दिया गया। हमारे सभी इमामों ने अपने जेहाद से इस्लाम के गौरवपूर्ण इतिहास का एक अध्याय लिखा। 10 अक्तूबर 1980
इमाम मुहम्मद तक़ी अलैहिस्सलामः छोटी सी ज़िंदगी, लगातार जेहाद
इमाम मुहम्मद तक़ी अलैहिस्सलाम ने भी इस्लाम के अज़ीम जेहाद के एक अहम पहलू को अमली जामा पहनाया और हमें पाठ दिया। वह पाठ ये है कि जब मुनाफ़िक़ और दिखावा करने वाली ताक़तें सामने हों तो हमें चाहिए कि उन ताक़तों का मुक़ाबला करने क लिए लोगों की सूझ-बूझ और दूरदर्शिता बढ़ाएं। अगर दुश्मन खुल कर दुश्मनी कर रहा है, दिखावा नहीं कर रहा है तो उससे मुक़ाबला आसान होता है लेकिन जब मामून जैसा इंसान दुश्मनी पर तुला हो, जो इस्लाम के समर्थन और अपने दूध के धुले होने का दावेदार हो तो लोगों के लिए उसकी हक़ीक़त को समझ पाना मुश्किल हो जाता है।