हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार ,हज़रत आयतुल्लाहिल उज़्मा सैय्यद अली ख़ामनेई ने कहां,शादी के रिश्ते का एक पाकीज़ा पहलू है, इस पाकीज़ा पहलू को उससे छीनना नहीं चाहिए। उसके पाकीज़ा पहलू को छीनना, उन्हीं नापंसदीदा कामों के ज़रिए होता है जो अफ़सोस कि हमारे समाज में आम हो गए हैं।
ये मेहर की बड़ी बड़ी रक़में, जो इस ख़याल के साथ रखी जाती हैं कि ये शादीशुदा ज़िंदगी की रक्षा और दांपत्य जीवन की हिफ़ाज़त का सहारा बन सकती हैं, जबकि ऐसा नहीं है। ज़्यादा से ज़्यादा ये है कि शौहर मेहर देने से इन्कार करेगा और उसे जेल में डाल देंगे, एक आध साल वो जेल में रहेगा।
इससे बीवी को कुछ हासिल नहीं होता, उसे कोई फ़ायदा नहीं मिलता सिवाय इसके कि उसका परिवार टूट जाता है। ये जो इस्लाम में इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम का कथन मिलता है कि उन्होंने फ़रमायाः “हमने अपनी बेटियों का, अपनी बहनों का और अपनी बीवियों का निकाह मेहरुस्सुन्नत के अलावा नहीं किया है” वो इसी वजह से है वरना वो इससे ज़्यादा पर भी कर सकते थे।
इमाम ख़ामेनेई,