हौज़ा न्यूज एजेंसी की रिपोर्ट के अनुसार, महाराष्ट्र के अमरावती मे शबे शहादत मे इमाम मौहम्मद तक़ी अलैहिस्सलाम की शहादत पर मजलिसे अज़ा का आयोजन किया गया जिसको इमामे जुमा वल जमाअत हुज्जतुल इस्लाम मौलाना मीसम नक़वी साहब ने खिताब किया और मजलिस मे इमाम के फज़ाएल मसाएब बयान किये गऐ
और बयान किया कि इमाम मौहम्मद तक़ी अलैहिस्सलाम के लिए मामून ने एक मुनाज़ेरा रखा जिसमें आपका मुक़ाबला एक बहुत बड़े आलिम से था लेकिन वो एक से ज़्यादा सवाल न कर सका मौलाना ने उस से हुऐ मुनाज़रे को कुछ इस तरह बयान किया:
मामून ने एक जलसा रखा कि जिस में इमाम तक़ी अ.स. के इल्म और समझ को तौला जा सकता है। जब सब लोग हाज़िर हो गये तो याहिया ने मामून से पूछाः
क्या आपकी इजाज़त है कि मैं इस लड़के से सवाल करूं?
मामून ने कहा ख़ुद इन से इजाज़त लो, याहिया ने इमाम से इजाज़त ली तो इमाम ने फ़रमायाः जो कुछ भी पूछना चाहता है पूछ ले।
याहिया ने कहाः उस शख़्स के बारे में आप की क्या नज़र है कि जिसने अहराम की हालत में शिकार किया हो?
इमाम ने फ़रमायाः इस शख़्स ने शिकार को हिल मे मारा है या हरम में?
वो शख़्स अहराम की हालत में शिकार करने की मनाही को जानता था या नहीं जानता था??
उसने जानवर को जान के मारा है या ग़लती से??
ख़ुद वो शख़्स आज़ाद था या ग़ुलाम?
वह शख़्स छोटा था या बड़ा?
पहली बार यह काम किया था या पहले भी कर चुका था?
शिकार परिन्दा था या ज़मीनी जानवर?
छोटा जानवर था या बड़ा?
फिर से इस काम को करना चाहता है या अपनी ग़लती पर शरमिंदा है?
शिकार दिन में किया था या रात में?
अहराम उमरे का था या हज का?
याहिया बिन अक़सम अपने सवाल के अंदर होने वाले इतने सारे सवालों को सुन कर सकते में आ गया, उसकी कम इल्मी और कम हैसियती उसके चेहरे से दिखाई दे रही थी उसकी ज़बान ने काम करना बंद कर दिया था और तमाम मौजूदा लोगों ने उसकी हार को मान लिया था।
मजलिस मे अमरावती शहर के मोमेनीन ने शिरकत की और इमामे ज़माना को उनके जद का पुरसा दिया|