۱۳ تیر ۱۴۰۳ |۲۶ ذیحجهٔ ۱۴۴۵ | Jul 3, 2024
जन्नतुल बक़ीअ

हौज़ा/ हालांकि समझौते में इसका जिक्र नहीं है, लेकिन हमें यकीन है कि अगर यह दोस्ती जारी रही तो ईरान सऊदी अरब को यह पेशकश जरूर करेगा। लेकिन यह भी सच है कि फिलहाल ऐसा कुछ नहीं है।

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी की रिपोर्ट के अनुसार, यह एक नाक़ाबिल इंकार तथ्य है कि ईरान की इस्लामी क्रांति की बरकतो से शिया धर्म को जिला मिली। विशेष रूप से, अहले-बैत अतहर (अ) के पवित्र रौज़ो के संरक्षण और विकास में, बहादुर ईरानी विश्वासियों ने अपने जीवन, धन और यहां तक ​​​​कि प्रतिष्ठा को भी जोखिम में डाल दिया।उन्होंने कभी भी बच्चों का बलिदान देने से परहेज नहीं किया।

न केवल ईरान बल्कि इराक और सीरिया में भी पवित्र धार्मिक स्थलों के संरक्षण और विकास में ईरानी विश्वासियों का बलिदान अविस्मरणीय है।

इस्लामी क्रांति के सर्वोच्च नेता आयतुल्लाह अली खामेनई और ईरान के सच्चे विश्वासियों के बलिदान की मान्यता में, यह प्रस्तुत किया जाता है कि ईरान और सऊदी अरब के बीच समझौते के बाद, कुछ YouTube चैनल, फेसबुक पेज संचालक या उपयोगकर्ता अन्य सोशल मीडिया ऐप्स ने यह खबर फैला दी कि ईरान और सऊदी अरब के बीच अपने सब्सक्राइबर और फ़ालोवर्स बढ़ाने के लिए यह खबर चला दी कि कि जतन्नतुल बक़ीअ के पुनर्निर्माण के लिए एक समझौता हुआ है। अपने दावे की दलील में सऊदी के एक बहुत पुराने वक्ता का भाषण भी वायरल कर दिया।

सभी लाइक और शेयर करने लगे और उन लोगों ने भी शेयर कर दिया कि उनकी नजर में ईरान हमेशा से दस्तक देता रहा है। खैर, इससे यह साबित हुआ कि वे सभी सोचते हैं कि अगर यह महत्वपूर्ण काम कोई कर सकता है तो वह ईरान है।

लेकिन सबसे दुख की बात यह है कि आजकल जब हर किसी के हाथ में स्मार्टफोन है तो कम से कम किसी भी खबर को लाइक या शेयर करने से पहले उसकी पड़ताल जरूर कर लेनी चाहिए। बिना किसी शोध के इतनी महत्वपूर्ण खबर साझा करना भी बुद्धिमानी नहीं है।

सवाल यह है कि क्या चीन की मध्यस्थता से ईरान और सऊदी अरब के बीच जो समझौता हुआ है, क्या इस समझौते में उसका कहीं उल्लेख हुआ है या नही।

कुछ षडयंत्रकारी और विश्वासघाती दिमाग के लोगों ने यह अफवाह फैलाई है ताकि उन्हें सोशल मीडिया से अस्थायी लाभ मिल सके और जब सच्चाई स्पष्ट हो जाए, तो मोमेनीन और आशाकाने आले मुहममद को ईरान पर संदेह होगा कि ईरान की अन्य सभी सेवाएं की उपेक्षा कर आलोचना करेंगे।

हालांकि समझौते में इसका जिक्र नहीं है, लेकिन हमें यकीन है कि अगर यह दोस्ती जारी रही तो ईरान सऊदी अरब को यह पेशकश जरूर करेगा। लेकिन यह भी सच है कि फिलहाल ऐसा कुछ नहीं है।

यह भी एक हक़ीक़त है कि अगर कोई वास्तव में बकी का निर्माण करा सकता है, हज़रत साहिब अस्र वल जमान (अ) या उनकी मदद से ईरान अन्यथा किसी और समिति, समाज या संस्था, राजनीतिक संगठन, सुधार आंदोलन, या यहां तक ​​कि राष्ट्रीय स्तर पर भी किसी मे इतना दम कहा है।

दलील ये है कि ये सब ज़माने से अब तक कोशिश करते आ रहे हैं, इनसे विरोध के अलावा अभी तक हुआ क्या है हमारा पूरा जीवन बीत गया जन्नतुल बक़ीअ को विरान देखते हुए।

हर साल हमने किसी न किसी के तहत विरोध किया है लेकिन कुछ हासिल नहीं हुआ है। इसलिए अब हमें पर्दा ए ग़ैब मे मौजूद हादी ए मासूम से आशा है या उनके समर्थन और मदद से  ईरान सेउम्मीद है कि वह हमारी बक़ीअ के पुनर्निमार्ण की तमन्ना की कश्ती को साहिले निजात तक लेकर जाएगा। इंशाल्लाह 

इसलिए, दुआ करें कि यह समझौता सफल हो और बाद के परिणामों में पहला काम बक़ीअ का निर्माण हो।

अल्लाह के समक्ष दुआ है कि सऊदी में जन्नतुल बक़ीअ और अन्य सभी नष्ट किए गए रोज़ो को जल्द से जल्द फिर से बनाया जाए, ताकि हम सऊदी के साथ-साथ ईरान, इराक और सीरिया में भी स्वतंत्र रूप से ज़ियारत के लिए जा सकें। आमीन।

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