۳ آذر ۱۴۰۳ |۲۱ جمادی‌الاول ۱۴۴۶ | Nov 23, 2024
मौलाना

हौज़ा/ईरान में होने वाले हालिया दंगों में विदेशी साज़िश और भूमिका पर ईरान के इंटैलीजेंस मंत्री हुज्जतुल इस्लाम इस्माईल ख़तीब का अहम इंटरव्यू

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार ,ईरान में होने वाले हालिया दंगों में विदेशी साज़िश और भूमिका पर ईरान के इंटैलीजेंस मंत्री हुज्जतुल इस्लाम इस्माईल ख़तीब का अहम इंटरव्यू:
सवालः इस्लामी इन्क़ेलाब के सुप्रीम लीडर ने इमाम हसन मुजतबा कैडिट कॉलेज में अपनी हालिया तक़रीर में कहा कि दुश्मन, बहुत पहले से इस साल 23 सितम्बर को (एकेडमिक साल की शुरुआत के मौक़े पर) ईरान में दंगे और अशांति फैलाने की कोशिश में था। उनका यह बयान यक़ीनन बहुत से सुबूतों और निशानियों की बुनियाद पर है। आप की नज़र में इस ख़्याल के पीछे क्या वजह थी? और इन हालात के बारे में इंटलिजेंस मिनिस्ट्री का अंदाज़ा क्या था?

ऐसी बहुत सी रिपोर्टें मिल रही थीं जिन से पता चलता था कि दूसरे मुल्कों की ख़ुफ़िया एजेन्सियों के अफ़सर, इस्लामी इन्क़ेलाब के दुश्मन गिरोहों, मुल्क के कुछ ग़द्दारों और ग़ैर क़ानूनी यूनियनों से संपर्क कर रहे हैं। यही नहीं बल्कि टूरिज़्म, एजुकेशन, या सोशल एक्टिविटी के तौर पर ईरानियों को मुल्क से बाहर ले जाकर उन्हें ट्रेनिंग तक दी जा रही है और इसके साथ ही हमें यह भी पता चला कि इस क़िस्म के प्रोग्रामों में, एजेन्टों से क्या कहा और क्या निर्देश दिया जा रहा है।

इस्लामी इन्क़ेलाब के दुश्मन गिरोहों और दुश्मन मुल्कों की ख़ुफ़िया एजेन्सियों में एक बड़ा संकट और दंगा शुरु करने की ताक़त नहीं है। इस लिए वे मौक़े का इंतेज़ार करते हैं। इसी लिए यह डर था कि 23 सितंबर के आस पास कोई न कोई हरकत ज़रूर की जाएगी।

इसी दौरान अफसोस कि बात है कि हमारे मुल्क की एक लड़की की मौत हो जाती है जिसकी फ़ौरन तहक़ीक़ात शुरु कर दी जाती हैं। सुप्रीम लीडर ने इस मौत पर अफ़सोस ज़ाहिर किया, प्रेसिडेंट और दूसरे बड़े ओहदेदारों ने जांच का हुक्म दिया। दुश्मनों को उस लड़की या किसी भी ईरानी शहरी की मौत पर यक़ीनी तौर पर कोई अफ़सोस नहीं हुआ, बल्कि उन्होंने उसे अपनी हरकतों और साज़िशों का बहाना बना लिया।

शुरु में समाज के एक हिस्से को इस ट्रेजडी पर अफ़सोस था और वह जांच और मामले के हर पहलु को सामने लाए जाने की मांग कर रहे थे। यहां तक कि भावनाओं में बह कर कुछ लोगों ने प्रोटेस्ट भी किया जिस पर मुल्क के ज़िम्मेदारों ने पूरा ध्यान दिया और सच्चाई सामने लाने के लिए ज़्यादा सीरियस होकर जांच को आगे बढ़ाने का हुक्म दिया। लेकिन उसके बाद हालात का जो रुख़ हुआ उस से यह साबित हो गया कि मुल्क के अंदर दंगा कराने के लिए ख़ुफ़िया एजेन्सियों की साज़िश के बारे में हमारी मालूमात और अंदाज़ा बिल्कुल सही था। इस्लामी इन्क़ेलाब की कामयाबी का दौर हो या उसके बाद का दौर हो, अमरीका ने हमेशा, इस्लामी जुम्हूरी सिस्टम को ख़त्म करने की कोशिश की है। इस ख़्याल और हक़ीक़त को साबित करने के लिए किसी सुबूत या गवाह की ज़रूरत नहीं है। बीते 43 बरस के तारीख़ी सुबूत और उनके साथ, इस्लामी जुम्हूरिया ईरान के ख़िलाफ़ साज़िशें रचने के बारे में अमरीकी ओहदेदारों का क़ुबूलनामा, इस दावे के ठोस सुबूत हैं। इस्लामी जुम्हूरिया ईरान के ख़िलाफ़ अमरीकी दुश्मनी का इतिहास, और उसके साथ ही ईरान के ख़िलाफ़ अमरीकी स्ट्रैटेजी के सिलसिले में सामने आने वाले अनगिनत दस्तावेज़, यह बताते हैं कि अमरीका ईरान का कितना बड़ा दुश्मन है। कुछ लोग जान-बूझ कर या फिर अनजाने में “काल्पनिक साज़िश“  की बात करते हैं जबकि इतने सारे दस्तावेज़, सुबूत और अमरीकी ओहदेदारों के क़ुबूलनामों के बाद तो इस सच्चाई से इंकार की कोई गुंजाइश ही नहीं रह जाती। इस सच्चाई को अमरीकी थिंक टैंक के बयान और उनके आलेखों में बार बार दोहराया गया है कि इस्लामी जुम्हूरिया का सिस्टम, एक दीनी इस्लामी जुम्हूरियत के मॉडल के तौर पर, इस्लामी मुल्कों में चेतना पैदा करने और उन्हें वेस्ट के ख़िलाफ़ मुत्तहिद कर देने की बेपनाह ताक़त रखता है, इसलिए इस मॉडल को नाकाम बनाया जाना चाहिए। इस सिलसिले में मिसाल के तौर पर ग्राहम फोलर की किताबों को पेश किया जा सकता है जिन्होंने सीआईए के एजेंट के तौर पर मिडिल ईस्ट में बरसों गुज़ारे हैं और उनका दावा है कि वह ईरान को पहचानते हैं।

सवालः सुप्रीम लीडर ने खुल कर इस बात पर ज़ोर दिया है कि यह साज़िश, अमरीका और इस्राईल की ख़ुफिया एजेन्सियों की ओर से तैयार की गयी है। हालिया दंगों के ज़िम्मेदार किस तरह, दूसरे मुल्कों की ख़ुफ़िया एजेन्सियों के संपर्क में आते थे?

फ़ील्ड वर्क करने वाले एजेन्टों और दूसरे मुल्कों की ख़ुफिया एजेन्सियों के अफ़सरों के बीच कान्टैक्ट आम तौर पर कई परतों वाला होता है। हालांकि हालिया दंगों से पहले, दुश्मनों की जल्दबाज़ी की वजह से उनके बहुत से अफ़सरों तक हम सीधे पहुंच गये और उनमें से कई को गिरफ़्तार भी कर लिया गया। फ्रासं की ख़ुफ़िया एजेन्सी “डीजीएसआई” ने ग़ैर क़ानूनी यूनियनों को अशांति और दंगों के लिए ट्रेनिंग दी। उनकी सारी मीटिंग्स, संपर्क और बात चीत के दस्तावेज़ तैयार हैं और इन सभी जासूसों को उनके किये की सज़ा दी जाएगी।

दुश्मन ने हालिया दंगों में, हाइब्रिड वॉरफेयर का तरीक़ा अपनाया था। हाइब्रिड वॉरफेयर का एक अहम हिस्सा, साइबर स्पेस और दूसरे मुल्कों ख़ास तौर पर अमरीका के सोशल मीडिया हैं। इन चैनलों ने हाइब्रिड वॉरफेयर में अस्ली और अहम रोल अदा किया है।

यक़ीनी तौर पर दिमाग़ और सोच को निशाना बनाने वाली जंग के अहम हिस्से के तौर पर हाइब्रिड वॉरफेयर के उसूलों की बुनियाद पर किसी देश में दंगे और अशांति पैदा के लिए एक बड़े आप्रेशन की मिसाल वही है जो ईरान में दंगों से कुछ महीनों पहले, दंगों के दौरान और उसके बाद ईरान में नज़र आयी और जिसके पीछे, सुप्रीम लीडर के अलफ़ाज़ में अमरीका की माफियाई सरकार, ब्रिटेन और बच्चों की क़ातिल ज़ायोनी सरकार और उनकी दुधारू गाय सऊदी अरब जैसे उसके एजेन्टों का हाथ रहा है।

दंगों की प्लानिंग और उसे एग्ज़ीक्यूट करने में ज़ायोनी शासन का ज़्यादा हाथ नज़र आता है जबकि प्रोपैगंडों में ब्रिटिश लोमड़ी का रोल ज़्यादा रहा और बजट के इंतेज़ाम में हमें आले सऊद का हाथ खुल कर नज़र आया यहां तक कि बर्लिन में जो नौटंकी खेली गयी और जहां शाही सरकार के हिमायती, एमकेओ के मुनाफ़िक़, विभाजनकारी और चरित्रहीनता के शिकार लोग जमा हुए थे, उसके लिए भी प्रोपैगंडे, आडियो, वीडियो, माडर्न कैमरों, ड्रोन से शूटिंग, ज़्यादा से ज़्यादा लोगों को जमा करने, रिपोर्टरों की तरफ़ से बड़े पैमाने पर कवरेज और सब के खाने पीने के इंतेज़ाम के लिए ज़रूरी बजट भी आले सऊद ने ही दिया था। हमारे पास अपने इस दावे के लिए ठोस सुबूत मौजूद हैं।

सवालः मुल्क के अदंर इस नेटवर्क के फील्ड वर्करों के बारे में कुछ विस्तार से बताएं। इस नेटवर्क के लिए काम करने वाले और इसके सरग़ना कौन थे? किस तरह नेटवर्क बना और किस तरह लोगों को इस नेटवर्क का हिस्सा बनाया गया? मुल्क की सेक्यूरिटी एजेन्सियों की इस क़िस्म के नेटवर्क और उनके ज़िम्मेदारों पर कितनी नज़र थी?

ख़ास तौर पर इस तरह के जो नेटवर्क होते हैं उनका एक मालिक या निर्देशक होता है, एक बजट का ज़िम्मेदार होता है और कुछ लोग फ़ील्ड में काम करने के लिए होते हैं। इस तरह के सभी नेटवर्कों का मालिक अमरीका, ब्रिटेन और इस्राईल यानि ज़ायोनी सरकार है जो ईरानियों तक सीधे पहुंच और उन पर अपना असर डालने की ताक़त न होने की वजह से, मीडिया, सोशल मीडिया जैसे तरीक़ों से ईरानियों के ख़िलाफ़ इस तरह की जंग शुरु करते हैं। इस क़िस्म के सभी नेटवर्क्स के लिए ज़रूरी बजट का इंतेज़ाम अफ़सोस है कि सऊदी अरब करता है। लेकिन इस बीच लंदन से चलने वाले फ़ारसी ज़बान के चैनलों और मीडियो को जो अस्ल में लोगों को गुमराह करते हैं, किसी तरह से भी नहीं भूलना चाहिए। यही चैनल दरअस्ल फ़ील्ड वर्क की कमान संभालते हैं। हमारे पास इस बात का ठोस सुबूत है कि दुश्मनों की ख़ुफिया एजेन्सियां, इन चैनलों को हर लम्हे ख़बरें, रिपोर्टें और वीडियोज़ भेजा करती थीं और यह चैनल, सड़कों पर दंगाइयों को गाइड करते थे। इस सिलसिले में लंदन, सऊदी अरब और अमरीका के चैनलों यानि बीबीसी परशियन और सऊदी अरब के ईरान इन्टरनेशनल और 'मनोतू'  चैनलों का रोल दूसरों से बहुत ज़्यादा खुल कर सामने आया।

सवालः सेक्युरिटी के मैदान से हट कर,  मीडिया और प्रोपैगंडे की सतह पर भी दूसरे मुल्कों के फ़ारसी और ग़ैर फ़ारसी चैनलों के बीच दंगों के बारे में हैरान करने वाला कोआप्रेशन नज़र आया। क्या इंटेलिजेंस की मिनिस्ट्री के पास इस तरह की कुछ मालूमात हैं जिनसे यह पता चले कि मीडिया की सतह पर इस क़िस्म के कोआपरेशन के पीछे कौन लोग या नेटवर्क काम कर रहे थे? क्योंकि उन्होंने अपने इस मक़सद के लिए मीडिया और कल्चर के मैदान की बहुत सी दूसरे मुल्कों की मशहूर हस्तियों को भी इस्तेमाल किया है।

यह दंगे, अवामी प्रोटेस्ट या सड़कों पर हंगामों से कहीं ज़्यादा, सोशल मीडिया और साइबर स्पेस में एक्टिव नज़र आते हैं। इसी लिए हम इसे 'सोच असर डालने वाले सब से बड़े आप्रेशन' का नाम देते हैं। इस मैदान में जैसा कि मैंने आप के पहले सवाल के जवाब में कहा था, सैटेलाइट चनैलों, साइबर स्पेस और सोशल मीडिया का रोल किसी भी दूसरे ज़माने से ज़्यादा और इन्टरनैश्नल स्टैंडर्ड से बहुत दूर नज़र आया।

ख़ुफ़िया एजेन्सियों के हाथों सेटेलाइट चैनलों को चलाए जाने के अलावा, इन्क़ेलाब के दुश्मन गिरोहों की बहुत सी कार्यवाहियों के बारे में मीडिया में अनगिनत रिपोर्टें मौजूद हैं जो विदेशी ख़ुफिया एजेन्सियों की निगरानी में काम कर रहे हैं जिसकी एक खुली मिसाल यह है कि अमरीका ने इन्क़ेलाब के ख़िलाफ़ बहुत से आतंकवादी गिरोहों को,  'ईरान इंटरनेशनल' चैनल से जोड़ दिया जिसकी वजह से यह चैनल, एक  दहशतगर्द  चैनल बन गया और कुछ मौक़ों पर ज़ायोनी सरकार ने भी आतंकवादियों से संपर्क किया और उन्हें गाइड किया।

सोशल मीडिया पर दंगों को बढ़ा-चढ़ा कर पेश करना, बहुत सी युनियनों में घुसपैठ और इसी तरह बड़ी हस्तियों को शीशे में उतारना, मीडिया वॉर में दुश्मन के अहम हथकंडे हैं।

विदेशी ख़ुफ़िया एजेन्सियों का रोल इतना ज़्यादा है कि उन्होंने सोशल मीडिया के ट्रैडिशनल रोल को बदल कर न सिर्फ़ यह कि फ्रीडम ऑफ स्पीच और मीडिया फ़्रीडम को नुक़सान पहुंचाया बल्कि उन्होंने धमकी और दबाव की मदद से उन लोगों के काम पर भी रोक लगा दी जो उनके मक़सद की राह में और उनके हिसाब से काम नहीं कर रहे थे।

सवालः सुप्रीम लीडर के बयान के मुताबिक़, ख़ास तौर पर अमरीका, ब्रिटेन और सऊदी अरब ने मुल्क में हालिया दंगों में खुल कर रोल अदा किया है। ईरान की सेक्युरिटी एजेन्सियां और इंटलिजेंस की मिनिस्ट्री, मुल्क में अमन व अमान के ख़िलाफ उठाए जाने वाले इन क़दमों के जवाब में क्या करेगी ?

हमारे सामने कई तरह के खिलाड़ी हैं। एक तो ज़ायोनी सरकार है जिसका हाल सब को मालूम है। इस दुश्मन सरकार ने अब तक कई हरकतें की हैं जिन पर उसने ख़ूब शोर शराबा भी किया और उसे इन हरकतों का मुंहतोड़ जवाब भी दिया गया जिस पर पूरी ताक़त से पर्दा डाला गया और अब आगे भी उसे जवाब दिया जाएगा।

जहां तक अमरीका की बात है तो उसने ईरान से अब तक जो दुश्मनी की है और सीधे तौर पर या किसी ज़रिए से ईरानी क़ौम को जो नुक़सान पहुंचाए हैं, उनके साथ ही साथ यह टेररिस्ट सरकार, सरकारी तौर पर शहीद जनरल क़ासिम सुलैमानी की क़ातिल भी है। कमज़ोर होते अमरीका का ईरान के सिलसिले में यह रोल रहा है। मैं पूरे यक़ीन के साथ और ठोस शब्दों में कह रहा हूं कि अमरीका में इतना दम नहीं कि वह सीधे तौर पर हम से जंग करे और इसी लिए वह या तो एक टेररिस्ट गिरोह का रूप धार लेता है और पूरी तरह से आतंकवादी कार्यवाहियां करता है कि जिसका उसे बहादुरी के साथ मुंहतोड़ जवाब भी दिया जाता है या फिर वह पर्दे के पीछे चला जाता है और हाइब्रिड वॉर फ़ेयर की मदद से आग लगाता है हालांकि उसे इसका भी हमेशा ही कड़ा जवाब दिया जाता है और आगे भी दिया जाएगा।

लेकिन जहां तक चालबाज़ ब्रिटेन की बात है तो चूंकि यह बूढ़ी लोमड़ी, इस्लामी जुम्हूरिया के ख़िलाफ़ साज़िशों से कभी बाज़ नहीं आयी इस लिए उसका मामला अलग है। इस दौर में, ब्रिटेन से चलने वाले सैटेलाइट टीवी चैनल, ईरान में अशांति और दंगे फैलाने की कोशिश में थे और हैं। इन चैनलों ने पहले भी और आज कल भी दंगों से आगे क़दम बढ़ाए हैं और ईरान में टेररिज़्म तक फैलाने की कोशिश की है। यह वह काम है जिसकी शुरुआत, ब्रिटेन ने की है। पहले भी ईरान ने बारम्बार, यूरोपी मुल्कों में टेररिस्ट हमलों को रोकने में मदद की है लेकिन ब्रिटेन और कुछ दूसरे युरोपी मुल्कों ने इसके बदले में ईरान के ख़िलाफ़ किसी भी तरह की दुश्मनी से तनिक भी संकोच नहीं किया। यक़ीनी तौर पर हम, ब्रिटेन की तरह किसी भी दूसरे मुल्क में अशांति फैलान के लिए टेररिस्टों की मदद नहीं करेंगे लेकिन अब इन मुल्कों में अशांति को रोकने के भी हम ज़िम्मेदार नहीं  बनेंगे इस लिए ब्रिटेन, ईरान जैसे बड़े मुल्क में अशांति फैलाने की क़ीमत, ज़रूर अदा करेगा।

बड़े अफ़सोस की बात है कि ब्रिटेन की सरकार कि जहां बीबीसी और ईरान इंटरनेशनल चैनल, सरकार की निगरानी में और मीडिया के रूप में काम कर रहे हैं, आज एक टेररिस्ट गिरोह बन चुकी है जो इस्लामी जुम्हूरिया ईरान की रेड लाइनों को पार करता है। मैं यहीं पर कह रहा हूं कि ईरान इंटरनैशनल सेटेलाइट टीवी चैनल को इस्लामी जुम्हूरिया ईरान की सेक्युरिटी एजेन्सियों की ओर से टेररिस्ट आर्गनाइज़ेशन क़रार दिया गया है और इसके ज़िम्मेदारों और काम करने वालों के ख़िलाफ़ इंटलिजेंस की मिनिस्ट्री कार्यवाही करेगी और आइंदा इस आंतकवादी गुट से किसी भी तरह का संपर्क और उसके साथ काम करना, आतंकवाद और ईरान की सेक्युरिटी के ख़िलाफ़ कार्यवाही समझा जाएगा।

लेकिन जहां तक  सऊदी अरब की बात है तो हमारी और इलाक़े के दूसरे मुल्कों का मुस्तक़बिल, पड़ोसी होने के नाते, एक दूसरे से जुड़ा है। ईरान की नज़र में, इलाक़े के मुल्कों में किसी भी तरह की अशांति, दूसरे मुल्कों तक ज़रूर पहुंचती है और ईरान में किसी भी क़िस्म की अस्थिरता और हंगामे, इलाक़े के दूसरे मुल्कों तक पहुंच सकते हैं। दूर और इलाक़े से बाहर के मुल्क यहां हमारे इलाक़े में आकर अशांति फैला रहे हैं। ताक़तवर  ईरान पर उन मुल्कों की ओर से अगर पत्थर फेंका जाएगा जो ख़ुद शीशे के घरों में हैं तो इसका मतलब, अक़्ल का साथ छोड़ कर बेवक़ूफ़ी के अंधकार में गुम हो जाने के अलावा कुछ नहीं है। इस्लामी जुम्हूरिया ईरान ने अब तक अक़्ल और तर्क का दामन थामे रखा है लेकिन इस बात की कोई गारंटी नहीं है कि अगर उसके ख़िलाफ़ दुश्मनी जारी रही तो उसके सब्र का पैमाना नहीं भरेगा। यक़ीनी तौर पर अगर ईरान इन मुल्कों से बदला लेना चाहे या उनकी ही तरह कोई कार्यवाही करना चाहे तो शीशे के यह महल चकनाचूर हो जाएंगें और यह मुल्क, स्थिरता और सिक्योरिटी का मुंह देखने को तरस जाएंगे।

सवालः यक़ीनी तौर पर ईरान में  हंगामों के लिए जो साज़िश रची गयी थी वह दरअस्ल जो कुछ हुआ है उससे बहुत ज़्यादा बड़ी थी। दूसरे शब्दों में, इस साज़िश का बड़ा हिस्सा, सेक्युरिटी एजेन्सियों ने नाकाम कर दिया। आप ईरान में हंगामों के लिए जो दूसरे काम थे और उन पर ख़ुफिया एजेन्सियों की नज़र के बारे में कुछ बताएं।

अगर हम दुश्मनों का अस्ल मक़सद, बताना चाहें तो यह बिल्कुल साफ़ है कि दुश्मन, ईरान को पूरी तरह से तबाह करने पर तुला है, ठीक उसी तरह जैसा कि उसने सीरिया, इराक़, लीबिया, अफ़ग़ानिस्तान और यमन में किया है लेकिन मज़बूत ईरान और इस्लामी इन्क़ेलाब के मज़बूत पेड़ का न वह कुछ बिगाड़ पाया है और न ही कभी कुछ बिगाड़ पाएगा। कम से कम इसी ईरानी साल को देखें इसकी शुरुआत से ही तरह तरह के मौक़ों पर जैसे टीचर्स डे, या फिर ईरान में सब्सिडी का क़ानून बनाए जाने के वक़्त, या फिर हिजाब और पाक़ीज़ी के नेशनल डे पर उन्होंने ईरान में हंगामों की भरपूर कोशिश की जिसका सब से बड़ा सुबूत, सरहदी इलाक़ों में बहुत से टेररिस्टों के ख़िलाफ़ कार्यवाही, सरहद पर फ़ौजी कार्यवाही और इसी तरह इस्फ़हान के एक कारख़ाने में धमाके की कोशिश नाकाम बनाने जैसे काम हैं। अभी इन्ही दंगों में ताज़ा आंकड़ों के मुताबिक़ एमकेओ टेररिस्ट गिरोह के लगभग 200 मेंबर, कुर्द और दूसरे टेररिस्ट गिरोहों के 150 से ज़्यादा मेंबरों को गिरफ़्तार किया गया है।

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