۹ تیر ۱۴۰۳ |۲۲ ذیحجهٔ ۱۴۴۵ | Jun 29, 2024
یا علی مدد

हौज़ा / 13 रजब के शुभ अवसर पर प्रसिद्ध शायर अहमद शहरयार के कुछ अशार प्रिय पाठको की सेवा मे प्रस्तुत है। 

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी|

अमीरुल मोमेनीन (अ) की मंक़बत 

शायरः अहमद शहरयार 

पहले मेरे लबो पे खिलाः या अली मदद 

फिर काबा मुस्कुराआ, कहाः या अली मदद 

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तू इस के शिर्क कहता है तारीख देख ले 

तेरे बड़े बड़ो ने कहाः या अली मदद 

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पूछे बदल बदल के नकीरैन ने सवाल 

मेरा जवाब एक रहाः या अली मदद 

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बाद अज़ रसूल, ज़िक्रे अली भी तो चाहिए 

लाज़िम है बादे सल्ले अला, या अली मदद 

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इन मुशकिलो से इतना परेशान है किस लिए 

तू हैदरी है, नारा लगाः या अली मदद 

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जब रन मे आए मरहबो अंतर के सामने 

शायद अली के लब पे भी थाः या अली मदद 

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हम मस्लहब पसंद थे, खामोश ही रहे

मीसम ने दार पे भी कहाः या अली मदद 

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मौला बुला रहे है सो तुम मेरे शहरयार 

आओ ना आओ मै तो चलाः या अली मदद

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