۱۱ تیر ۱۴۰۳ |۲۴ ذیحجهٔ ۱۴۴۵ | Jul 1, 2024
وفات حضرت ابوطالب

हौज़ा/अगर अबू तालिब और उनका बेटा इमाम अली अ.स. न होते तो दीन का नाम व निशान तक न होता, अबू तालिब ने मक्के में आपका भरपूर सहयोग दिया और आपके बेटे ने मदीने में भरपूर योगदान किया।

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार ,हज़रत अबूतालिब अ.स. जिनको सैय्यदुल् बतहा भी कहा जाता था, आपकी वफ़ात पैग़म्बरे इस्लाम की मदीने की ओर हिजरत से पहले 10 बेसत को हुई, एक रिवायत के अनुसार आपकी वफ़ात के समय आपकी उम्र 80 वर्ष थी। (मुंतख़बुत् तवारीख़, पेज 43)

आपका नाम इमरान और वालिद का नाम अब्दुल मुत्तलिब था। (बिहारुल अनवार, जिल्द 35, पेज 138, उम्दतुत्तालिब, पेज 21)

आपका ईमान

अल्लामा मजलिसी लिखते हैं कि, शिया हज़रत अबू तालिब अ.स. के इस्लाम लाने और अल्लाह और उसके रसूल पर ईमान रखने के सिलसिले में एकमत हैं, उनका मानना है कि आपने कभी भी बुतों की इबादत नहीं की, आप का इस्लाम और ईमान शियों में इस हद तक मशहूर है कि शिया उलेमा ने इस बारे में कई किताबें लिखीं हैं।

शेख़ सदूक़ फ़रमाते हैं कि, हदीस में यह तक मौजूद है कि हज़रत अबदुल मुत्तलिब अल्लाह की ओर से हुज्जत और हज़रत अबू तालिब आप के उत्तराधिकारी थे, हदीस के अनुसार हज़रत मूसा का असा और हज़रत सुलैमान की अंगूठी और भी नबियों की बहुत सी वस्तुएँ अबदुल मुत्तलिब द्वारा आप तक पहुँची जिन्हें आप ने आख़िरी नबी हज़रत मोहम्मद मुस्तफ़ा स.अ. के हवाले किया। ( काफ़ी, जिल्द 1, पेज 445, कमालुद्दीन, पेज 665, अल-ग़दीर, जिल्द 7, पेज 394)

इब्ने असीर जज़री शाफ़ेई ने अपनी किताब जामेउल उसूल में लिखा कि, पैग़म्बर के सब चचाओं में केवल हमज़ा, अब्बास और अबू तालिब ईमान लाए थे।

अल्लामा तबरिसी लिखते हैं कि, अहले बैत अ.स. हज़रत अबू तालिब के ईमान पर एकमत (इजमा) हैं, और अहले बैत अ.स. का एकमत होना हुज्जत है क्योंकि वह सक़लैन में से एक हैं जिन से पैग़म्बर ने जुड़े रहने का हुक्म हदीसे सक़लैन में दिया है। (बिहारुल अनवार, जिल्द 35, पेज 138-139, तफ़सीरे मजमउल बयान, जिल्द 4, पेज 31, अल-ग़दीर, जिल्द 7, पेज 385)

हज़रत अबू तालिब के ईमान के बारे में बहुत सी किताबें लिखी गईं हैं जिनमें से पहली किताब 630 हिजरी में लिखी गई, और उस समय से अब तक आप के ईमान और दीन की ख़िदमत के हौसले के विषय पर विभिन्न भाषाओं में अनेक किताबें लिखी जा चुकी हैं। (अल-ग़दीर, जिल्द 7, पेज 330-409, क़लाएदुन नुहूर, पेज 284)

इमाम रज़ा अ.स. अब्दुल अज़ीम हसनी के जवाब में फ़रमाते हैं कि, अगर तुम्हें हज़रत अबू तालिब के ईमान में शक है तो तुम्हारा ठिकाना जहन्नुम है। (बिहारुल अनवार, जिल्द 7, पेज 395, अल-ग़दीर, जिल्द 7, पेज 395, ईमाने अबू तालिब, अल्लामा अमीनी, पेज 90)

पैग़म्बर के समर्थन में हज़रत अबू तालिब द्वारा कहे जाने वाले शेर, हज़रत अबू तालिब की वफ़ात के समय इमाम अली अ.स. द्वारा कहे जाने वाले शेर, क़ुरैश का मस्जिदुल हराम में पैग़म्बर की ओर बुरी नज़र डालते समय अबू तालिब द्वारा कहे जाने वाले शेर, सूखा पड़ने के समय में अल्लाह की बारगाह में दुआ में प्रयोग किए गए शब्द, यह सभी इस बात को दर्शाते हैं कि आप ईमान की मज़बूती में उस जगह पहुँचे हुए थे कि दूसरा कोई उस तक नहीं पहुँच सकता।

शायद यही कारण है कि इमाम अली अ.स. फ़रमाते हैं कि, अल्लाह की क़सम, मेरे वालिद, मेरे जद, हाशिम, और अब्दे मनाफ़ ने कभी भी बुत की पूजा नहीं की, पूछा गया फिर किसकी इबादत करते थे?

आप ने फ़रमाया वह काबा की ओर नमाज़ पढ़ते थे और हज़रत इब्राहीम के दीन पर थे। ( कमालुद्दीन, पेज 175, अल-ग़दीर, जिल्द 7, पेज 387, वक़ाएउल अय्याम, जिल्द 1, पेज 290—06)

अहले सुन्नत के मशहूर आलिम इब्ने अबिल हदीद का कहना है कि, अगर अबू तालिब और उनका बेटा (इमाम अली अ.स.) न होते तो दीन का नाम व निशान तक न होता, अबू तालिब ने मक्के में आपका भरपूर सहयोग दिया और आपके बेटे ने मदीने में भरपूर योगदान किया। (शरहे नह्जुल-बलाग़ह, इब्ने अबिल हदीद, जिल्द 14, पेज 74-80)

आप की वफ़ात पर पैग़म्बर की प्रतिक्रिया

जिस समय इमाम अली अ.स. ने हज़रत अबू तालिब की वफ़ात की ख़बर पैग़म्बर को दी आप बहुत उदास हुए और फ़रमाया ऐ अली जाओ और ग़ुस्ल, कफ़न और हुनूत (सजदे में बदन के जिन हिस्सों पर काफ़ूर का लगाना वाजिब है) करो, फ़िर मुझे ख़बर दो, जब इमाम अली अ.स. ने जब सभी अरकान अदा कर दिए और अपने वालिद के जनाज़े को तैयार कर दिया, फ़िर पैग़म्बर आप के जनाज़े पर आए,

जैसे ही आप उदासी भरी नज़र से हज़रत अबू तालिब के जनाज़े को देखा और फ़रमाया, ऐ चचा जान आप ने मुझ पर बहुत एहसान किए, अल्लाह आपको नेक सिला दे, ऐ चचा आप ही ने बचपन में मेरी सरपरस्ती की और मेरी ज़िम्मेदारी संभाली और पूरी दयालुता से मेरी मदद की और मेरा साथ दिया। ( बिहारुल अनवार, जिल्द 22, पेज 261, अल-ग़दीर, जिल्द 7, पेज 373-386)

हज़रत अबू तालिब की वफ़ात के बाद जिबरील अल्लाह की ओर से ख़बर लेकर आए कि, आपकी सरपरस्ती और देखभाल करने वाला इस दुनिया से चला गया अब आप मदीने की ओर हिजरत कीजिए। (उसूले काफ़ी, जिल्द 1, पेज 440, बिहारुल अनवार, जिल्द 19, पेज 14)

इमाम सादिक़ अ.स. अपने वालिद उन्होने अपने वालिद इसी तरह इमाम हुसैन अ.स. से नक़्ल है कि, इमाम अली अ.स. कुछ लोगों के साथ मस्जिद में बैठे हुए थे, एक शख़्स ने खड़े हो कर पूछा, ऐ अमीरुल मोमेनीन अ.स. आप इस महत्वपूर्ण और महान जगह पर हैं लेकिन आपके वालिद (मआज़ अल्लाह) जहन्नुम की आग में हैं।

इमाम अली अ.स ने फ़रमाया, ख़ामोश.... अल्लाह तेरा बुरा करे, उस ख़ुदा की क़सम जिस ने मोहम्मद (स.अ.) को सच्चा नबी बना कर भेजा, अगर मेरे वालिद इस धरती के सभी पापियों और गुनहगारों के लिए शफ़ाअत कर दें तो अल्लाह क़ुबूल कर लेगा, क्या जन्नत और जहन्नुम का मालिक किसी जहन्नमी के बेटे को बनाया जा सकता है?

उस ख़ुदा की क़सम जिस ने मोहम्मद (स.अ.) को सच्चा नबी बना कर भेजा, पंजतन अ.स. के नूर के अलावा क़यामत में सबका नूर अबू तालिब अ.स. के नूर के सामने फीका पड़ जाएगा, जान लो अबू तालिब का नूर हम अहले बैत के नूर से है जिसको अल्लाह ने हज़रत आदम अ.स. के नूर से दो हजार वर्ष पहले पैदा किया है। (कन्ज़ुल फ़वाएद, पेज 80, एहतेजाज, जिल्द 1, पेज 341)

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