۳۱ اردیبهشت ۱۴۰۳ |۱۲ ذیقعدهٔ ۱۴۴۵ | May 20, 2024
अल्लामा सआदत हुसैन खान

हौज़ा / पेशकश: दनिश नामा ए इस्लाम, इन्टरनेशनल नूर माइक्रो फ़िल्म सेंटर दिल्ली काविश: मौलाना सैयद ग़ाफ़िर रिज़वी छौलसी व मौलाना सैयद रज़ी ज़ैदी फंदेड़वी

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी की रिपोर्ट के अनुसार, अल्लामा सआदत हुसैन ख़ान इक्कीस सफ़र(तेरह सो पच्चीस हिजरी) में सरज़मीने अमहट ज़िला सुलतानपुर यूपी पर पैदा हुए, आपके वालिद का नाम मुनव्वर हुसैन खान था, लोग आपको (इफ़्तेखारूल ओलमा) के लक़ब से याद फ़रमाते हैं|

अल्लामा के माता-पिता ने आपका नाम फ़क़ीर हुसैन रखा था जो देहात की फ़ितरी खाकसारी, इंकेसारी ओर इमामे हुसैन अ: से वालेहाना अक़ीदत की अक्कासी करता है, मोसूफ़ इसी नाम से अपने घर ओर वतन में मशहूर हुए, जब आप अपनी इब्तेदाई तालीम मुकम्मल करके आला तालीम के लिए लखनऊ पोंहचे तो आपका नाम आपके मदरसे नाज़मिया के उस्ताद मोलाना सय्यद हादी हसन ने बदलकर सआदत हुसैन कर दिया फिर उसके बाद आप उसी नाम से मशहूर हो गए|

मोसूफ़ एक ज़मीनदार घराने से ताअल्लुक़ रखते थे आपके जद्दे आला तअल्लुक़ दार थे ओर उनसठ क़रयों के मालिक थे, लेकिन जब अट्ठारह सो सत्तावन ईस्वी में अंग्रेजों से जंग हुई तो सुल्तानपुर भी सबसे आगे रहा जिसमें इफ़्तेखारूल ओलमा के पर दादा बख्तावर खान भी अंग्रेजों के खिलाफ जंग मे पेश पेश रहे, अंग्रेज़ों ने अमहट को तोपों से उड़ा दिया ओर (इफ़्तेखारूल ओलमा) के पर दादा के ज़मीनदारे को ज़ब्त कर लिया|

अल्लामा सआदत हुसैन खान को आपके चचा मोलाना बख्तावर अली ख़ान ने उलूमे दीनया की तरफ़ मुतावज्जो किया तो मोसूफ़ भी फ़ोरन शरहे सद्र के साथ आमादा हो गए, चुनांचे (उन्नीस सो बीस ईस्वी) मुताबिक़ (तेरह सो चालीस हिजरी) में वतन से चल कर सरज़मीने इलमो इजतेहाद लखनऊ पर वारिद हुए तो आपको (नासेरुल मिल्लत) की आगोश इल्म मिली ओर उन्हीं के ज़ेरे साया तहसीले उलूम को सिलसिला शुरू किया, मदरसे जामिया नाज़मिया मे मुकद्देमाती किताबें पढ़ीं, शिया अरबी कालिज, सुल्तानूल मदारिस ओर लखनऊ यूनिवर्सिटि से फ़ाज़िले अदब की सनद हासिल कीं, आप पर (नासेरुल मिल्लत की निगाहे शफ़क़त बहुत ज़्यादा थी, ज़िंदगी की बुनयादी ज़रूरतों के साथ आपकी तालीमो के माक़ूल इंतज़ेमात फ़रमाते थे, खुश क़िसमति से आपको सरकार नासेरुल मिल्लत जैसा शफ़ीक़ मुरब्बी मिल गया था, नासेरुल मिल्लत ने भी मोसूफ़ की तालीम के साथ तरबियत के बेहतर मवाक़े फ़राहम किए|

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आपने ज़मानए तालिबे इल्मी में (अस्सिरात नामी मजल्ले) की इदारत के फराइज़ अंजाम दिये, मोलाना  मोहसीन नवाब, मिर्ज़ा अहमद हसन ओर मोलाना  मोहम्मद सईद आबक़ाती के मशवरे से अरबी अदब में महारत हासिल करने के लिए नसीरुल मिल्लत की सदारत में (नादीयुल ओदबा) की बुनयाद रखी जिसमें मदरसे नाज़मिया ओर जामिया सुलतानया के अफ़ाज़िल हर हफ़्ते जमा होते ओर अरबी में मक़ाले पढ़ते ओर (अलअदीब नामी मजल्ला) भी जारी किया|

इफ़्तेखरूल ओलमा लखनऊ से तालीम मुकम्मल करने के बाद हैदराबाद मे एक रईस के बच्चों के उस्ताद मुक़र्रर हो गए ओर रईस ने उनका खुलूस, लगन ओर मेहनत देख कर उनकी तरफ़ शफ़क़त व तवज्जो में इज़ाफ़ा कर दिया ओर आप उस घर के फ़र्द बन कर रहने लगे, जब आप नजफ़े अशरफ़ जाने की बात करते तो रईस उस गोहरे नायाब को अपने से जुदा करने पर किसी तरह आमादा नही होते थे, मोसूफ़ की नजफ़े अशरफ़ में तहसील की तड़प बढ़ती रही ओर रईसे हैदराबाद ने भी आपकी बेचैनी से मुताअस्सिर होकर इराक़ जाने का बंदो बस्त कर दिया जिसके बाद इफ़्तेखरूल ओलमा ने अपनी दाखली कैफ़ीयत को एक शेर में यूँ रक़म फ़रमाया

जज़्बाए शोक़ चला लेके मुझे सुए नजफ़ – तुम चलो आएंगे इस राह में आने वाले |

बिलआख़िर (इफ़्तेखारूल ओलमा) ने (सन तेरह सो बावन हिजरी) के अवाखिरे माहे रजब में इराक़ का रुख़ किया ओर बारगाहे बाबुल इल्म में पाँच साल से ज़्यादा मशहूर असातेज़ा से कस्बे फ़ैज़ किया यहाँ तक की आप जय्यद असातेज़ा के दरसे खारिज में भी शरीक होते रहे, आपने नजफ़े अशरफ़ के क़याम के दोरान तसनीफ़,तालीफ़ ओर तर्जुमा जैसे अज़ीम कारनामे भी अनजाम दिये आपने आयतुल्लाह सय्यद अबुल हसन इस्फ़ेहानी की तोज़ीहुल मसाइल का उर्दू में तर्जुमा किया ओर साथ ही मक़तल की मशहूर किताब (अबसारुल ऐन फ़ी अंसारूल हुसैन) का उर्दू तर्जुमा भी किया|

आपके नजफ़े अशरफ के असातेज़ा में: आयतुल्लाह शेख़ इब्राहीम रशती, आयतुल्लाह शेख़ अब्दुल हुसैन रशती, आयतुल्लाह सय्यद हसन बिजनोरदी आयतुल्लाह मिर्ज़ा बाक़िर ज़ंजानी, आयतुल्लाह सय्यद जवाद तब्रेज़ी, आयतुल्लाह शेख़ ज़ियाउद्दीन इराक़ी, आयतुल्लाह सय्यद अबुल हसन इसफ़ेहानी वगैरा के नाम लिए जा सकते हैं|

ओलमाए किराम ने आपकी अज़मत के एतराफ़ के तोर पर इजाज़ो से नवाज़ा जिनमें से: आयतुल्लाह मोहसीनुल हकीम, आयतुल्लाह शहाबुद्दीन मरअशी, आयतुल्लाह रुहुल्लाह इमाम खुमेनी, आयतुल्लाह सय्यद मोहम्मद रज़ा गुलपाएगनि वगैरा के असमा क़ाबिले ज़िक्र हैं|

अल्लामा की तसानीफ़ वा तालीफ़ात बहुत ज़्यादा हैं जिनमें: किताबे ज़ियाउल ऐन, मसाएबुश शिया, तर्जुमाए एहक़ाकुल हक़, गुनाहाने कबीरा, मवाइज़े मस्जिदे कूफ़ा, अज़मते शोहदाए कर्बला, तर्जुमए रिसालए हूकूक़ इमाम जैनुल आबेदीन वगैरा के नाम सारे फेहरिस्त हैं|

इफ़्तेखारूल ओलमा ने जहां तसनीफ़ ओर तालीफ़ में नुमाया किरदार अदा किया है  वहीं हजारों ओलमा फ़ुक़ाहा,दानिश्वर,अदीब, मोहक़्क़ि ओर शायर जैसे शागिर्दों की तरबियत की, आपके शागिर्दों में आयतुल्लाह हमीदुल हसन लखनवी, मोलाना रोशन अली खान,आयतुल्लाह महमूदुल हसन ख़ान, सईदुल मिल्लत मोलाना मोहम्मद सईद, मोलाना मिर्ज़ा मोहम्मद आलिम, मोलाना सय्यद मोहम्मद असगर, मोलाना मोहम्मद हुसैन ख़ान नजफ़ी, मोलाना सय्यद अली ­­­­नासिर सईद अबक़ाती, मोलाना मिर्ज़ा मोहम्मद अतहर, मोलाना बेदार हुसैन जैदी, मोलाना सय्यद इमरान हैदर, मोलाना सय्यद मज़लूम अहमद, मोलाना सय्यद शमशाद हुसैन (मुक़ीम नारवे) वगैरा के असमा क़ाबिले ज़िक्र हैं

इफ़्तेखारूल ओलमा अपनी ज़िंदगी में बहुत से इदारों से वा बस्ता रहे जिनमें (वसीक़ा अरबी कालिज फैज़ाबाद के प्रिंसपल) (अलीगढ़ यूनीवेर्सिटी के शोबाए दीनयात के मुस्तक़िल मुमतहिन), शिया कालिज जोनपुर के बोर्ड आफ ट्रस्टेज़ के मिंबर, मदरसे ईमानया  नासिरया जोनपुर की मजलिसे इंतेज़ामया के सद्र, शिया कालेज लखनऊ के प्रिंसपल, मदरसतुल वाएज़ीन की मजलिसे इंतेजामिया के साथ (अलवाइज़ मजल्ले) के निगराने आला ओर मुमतहिन,होज़ए इलमिया मुज़फ्फ़र नगर ओर मजलिसे ओलमा के सद्र रहे|

इफ़्तेखारूल ओलमा ने अपनी ज़िंदगी के आखिरी अय्याम सबसे बड़े दामाद सगीर अहमद के साथ रुस्तम नगर लखनऊ मे गुज़ारे आपके दो चशमो चराग (मोलाना ज़हीर अहमद इफ़्तेखारी ओर मोलाना महदी इफ़्तेखारी) ने आपकी इल्मी मीरास को बाक़ी रखा|

आखिरकार तीस ज़िलहिज (चोदह सो नो हिजरी) मुताबिक़ (3 अगस्त उन्नीस सो नवासी ईसवी) को शाम के पाँच बजे ये इल्मो हुनर का आफ़ताब गुरूब हो गया|

मोमीनीन की कसीर तादाद आपके शरीअत कदे पर जमा हो गई, ओर दूसरे दिन सुबह नो बजे इफ़्तेखारूल ओलमा के जनाज़े को शबीहे नजफ़ लखनऊ के मैदान मे लाया गया,आपकी नमाज़े जनाज़ा तीन मर्तबा अदा की गयी पहली मर्तबा नमाज़े जनाज़ा (ताजुल ओलमा मोलाना मोहम्मद ज़की आलल्लाहो मक़ामा) ने शबीहे नजफ़ लखनऊ के मैदान में पढ़ाई|दूसरी नमाज़े जनाज़ा (आयतुल्लाह सय्यद हमीदुल हसन साहब ने रोज़ए काज़मेन मे पढ़ाई) ओर रुहुल मिल्लत मोलाना सय्यद अली नासिर सईद अबक़ाती ने मसाइबे सय्यदुश शोहदा बयान फरमाए तीसरी नमाज़े जनाज़ा अमहट ज़िला सुल्तानपुर की जामा मस्जिद में हुज्जतुल इस्लाम मोहम्मद हुसैन नजफ़ी की इक़्तेदा में अदा हुई मोमीनीन की हज़ार आहो बुका के हमराह (हुसैनया बख़्श अमहट) में सुपुर्दे खाक कर दिया गया|

माखूज़ अज़: नुजूमुल हिदाया, तहक़ीक़ो तालीफ़ : मौलाना सैयद ग़ाफ़िर रिज़वी फ़लक छौलसी व मौलाना सैयद रज़ी ज़ैदी फंदेड़वी जिल्द-8 पेज-89 दानिशनामा ए इस्लाम इंटरनेशनल नूर माइक्रो फ़िल्म सेंटर, दिल्ली, २०२० ईस्वी।

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