हौज़ा न्यूज़ एजेंसी की रिपोर्ट के अनुसार, मौलाना सैयद शबीहुल हसन आबेदी नौगावीं सन तेरह सौ बावन हिजरी में सरज़मीने नौगावाँ सादात ज़िला मुरादाबाद यू॰पी॰ पर पैदा हुए । आप के वालिद आयतुल्लाह सैयद सिब्ते नबी आबेदी अपने ज़माने के मुजतहिदे मुसल्लम थे ।
मौलाना शबीहुल हसन ने इब्तेदाई तालीम मदरसा ए बाबुल इल्म नौगावाँ सादात में आयतुल्लाह सैयद आक़ा हैदर और अल्लामा सैयद जवाद असग़र नातिक़ जेसे साहिबाने इल्मो फ़न की ख़िदमत में ज़ानुए अदब तेह कर के हासिल की ।
मौलाना सन उन्नीस सौ साठ ईस्वी में आज़िमे नजफ़े अशरफ़ हुए और वहाँ रह कर ज़माने के अज़ीम असातेज़ा से कस्बे फ़ैज़ कर के सन उन्नीस सौ पैंसठ ईस्वी में नजफ़ से नौगावाँ सादात वापस आए ।
जब आप हिंदुस्तान वापस आगए तो मदरसा ए बाबुल इल्म की मुदीरियत आप के काँधों पर आगई जिस को उन्होने एक तवील मुद्दत तक निहायत बेहतरीन तरीक़े से निभाया ।
मौलाना तबलीगो तदरीस के अलावा तस्नीफ़ो तालीफ़ में भी काफ़ी मिक़दार में दिलचस्पी ज़ाहिर फ़रमाते थे लेकिन अफ़सोस के आप के इल्मी आसार शाए ना होसके जिन में से मिरअतुल उक़ूल और तहक़ीक़े उफ़ुक़ वगेरा क़ाबिले ज़िक्र हैं । (तफ़सील के लिए मुराजेआ कीजे: अनवारे फ़लक, जिल्द एक, सफ़्हा सत्तावन)
आप वाजेबात की अदाईगी में निहायत सख़्ती से काम लेते थे और अपने शागिर्दों को भी वाजेबात का पाबंद बनाना अपना एन फ़रीज़ा समझते थे हत्ता के बाबुल इल्म में आने वाले मेहमानो को भी वाजेबात की अदाईगी की तरफ़ रागिब करते थे, अगर कोई यह कहता के जनाब! यह तो मेहमान हैं! तो आप जवाब देते के क्या मेहमान से वाजेबाते इलाही साक़ित हो जाते हैं! ।
अलबत्ता उनकी ज़ाती ज़िंदगी में निहायत दर्जे की नर्मी मुलाहेज़ा की जाती थी और अपने शागिर्दों की बाबत एक शफ़ीक़ो मेहरबान बाप का किरदार अदा करते थे । आप नौगावाँ सादात के इमामे जुमा होने के बावुजूद इंतेहाई सादगी में ज़िंदगी गुज़ारते थे ।
मौलाना ने एक कसीर तादाद में शागिर्दों की तरबियत फ़रमाई जिन में से कुछ शागिर्दों के अस्माए गिरामी इस तरह हैं: मौलाना सैयद शायान रज़ा छौलसी, मौलाना सैयद ज़ाकिर रज़ा रिज़वी छौलसी, मौलाना मिर्ज़ा सरदार हसन सांखनी, मौलाना मिर्ज़ा दबीर हसनैन सांखनी, मौलाना मौहम्मद हसनैन फंदेड़वी, मौलाना मौहम्मद हसनैन मेरठी, मौलाना रागिब हुसैन, मौलाना रौशन अली ज़ैदी, मौलाना अली रज़ा कौतवाली, मौलाना फ़तह मौहम्मद फंदेड़वी और मौलाना शेख़ आसिफ़ अली रामपुरी वगेरा । (तफ़सील के लिए मुराजेआ कीजे: नुजूमुल हिदाया, जिल्द चार, सफ़्हा छियत्तर)
मज़कूरा शागिर्दों में अक्सर शागिर्द बरसरे रौज़गार हैं और बाज़ अफ़्राद हौज़ाते इल्मिया नजफ़, क़ुम और सीरया में इल्मे दीन की तहसील में मशग़ुल हैं नीज़ दायरा ए तहक़ीक़ को वसी कर रहे हैं ।
मौलाना मदरसा ए बाबुल इल्म की मुदीरियत को संभालते हुए तबलीगे दीन में भी पैशक़दम नज़र आते थे, आप ने अपने एक फ़रज़ंद को सिंफ़े रूहनियत में शामिल किया जिन को मौलाना मसरूर हुसैन आबेदी के नाम से जाना जाता है और हाले हाज़िर (चौदह सौ बयालीस हिजरी) में मदरसा ए बाबुल इल्म की मुदीरियत इन्ही के ज़िम्मे है ।
मौलाना शबीहुल हसन साहब अपनी आख़री उम्र तक दीने इस्लाम की तरवीजो इशाअत में मशग़ुल रहे और आख़िरकार आठ जमादिउल अव्वल सन चौदह सौ उनतीस हिजरी में दाई ए अजल को लब्बैक कहा । ओलमा, फ़ोज़ला, तुल्लाब और मौमेनीन की कसीर तादाद ने नमाज़े जनाज़ा में शिरकत फ़रमाई और अपने वालिद के पास सुपुर्दे लहद किए गए ।
माखूज़ अज़: नुजूमुल हिदाया, तहक़ीक़ो तालीफ़ : मौलाना सैयद ग़ाफ़िर रिज़वी फ़लक छौलसी व मौलाना सैयद रज़ी ज़ैदी फंदेड़वी जिल्द-४पेज-७३ दानिशनामा ए इस्लाम इंटरनेशनल नूर माइक्रो फ़िल्म सेंटर, दिल्ली, २०२० ईस्वी।