۱۱ مهر ۱۴۰۳ |۲۸ ربیع‌الاول ۱۴۴۶ | Oct 2, 2024
इत्रे क़ुरआन

हौज़ा / पुनरुत्थान के दिन उनकी मुक्ति के लिए अविश्वासियों से कोई फिरौती स्वीकार नहीं की जाएगी। जो लोग अविश्वास में मरते हैं वे दर्दनाक सज़ा के हक़दार हैं।

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी

بسم الله الرحـــمن الرحــــیم   बिस्मिल्लाह अल-रहमान अल-रहीम
إِنَّ الَّذِينَ كَفَرُوا وَمَاتُوا وَهُمْ كُفَّارٌ فَلَن يُقْبَلَ مِنْ أَحَدِهِم مِّلْءُ الْأَرْضِ ذَهَبًا وَلَوِ افْتَدَىٰ بِهِ ۗ أُولَٰئِكَ لَهُمْ عَذَابٌ أَلِيمٌ وَمَا لَهُم مِّن نَّاصِرِينَ  इन्नल्लज़ीना कफरू वमातू व हुम कुफ़्फ़ारुन फ़लन युक़्बला मिन आहदिम मलिउल अर्ज़ा ज़हबव वलविफतदा बेहि उलाएका लहुम अज़ाबु अलीमुन वमा लहुम मिन नासेरीन । (आले-इमरान, 91)

अनुवाद: बेशक जो लोग कुफ़्र कर बैठे और फिर कुफ़्र की हालत में मर गए, उनमें से किसी से सारी ज़मीन का सोना कभी मुआवज़े के तौर पर क़ुबूल नहीं किया जाएगा। और उनका कोई मददगार न होगा।

क़ुरआन की तफसीर:

1️⃣ मृत्यु पश्चाताप की अनुग्रह अवधि का अंत है।
2️⃣ क़यामत के दिन उनकी मुक्ति के लिए अविश्वासियों से कोई फिरौती स्वीकार नहीं की जाएगी।
3️⃣ जो लोग अविश्वास की स्थिति में मरते हैं वे दर्दनाक सजा के हकदार हैं।
5️⃣ आस्था का इतना मूल्य और मूल्य है कि उसकी तुलना सभी भौतिक वस्तुओं से नहीं की जा सकती।
5️⃣ क़यामत के दिन काफिरों को हर तरह की मदद से वंचित कर दिया जाएगा।


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तफ़सीर राहनुमा, सूर ए आले-इमरान

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