۴ آذر ۱۴۰۳ |۲۲ جمادی‌الاول ۱۴۴۶ | Nov 24, 2024
हाफ़िज़ मोलाना फरमान अली

हौज़ा / पेशकश: दानिशनामा इस्लाम, इंटरनेशनल नूरमाइक्रो फिल्म सेंटर दिल्ली काविश: मौलाना सैयद गाफ़िर रिज़वी छोलसी और मौलाना सैयद रज़ी ज़ैदी फ़ंदेड़वी

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार, हाफ़िज़ों मुफ़स्सिरे कुरान “अल्लामा सय्यद फरमान अली” सन; “१२७० हिजरी” में सरज़मीने चन्दन पट्टी ज़िला दरभंगा सूबा बिहार पर पैदा हुए,आप के वालिद सय्यद लाल मोहम्मद निहायत दीनदार इंसान थे,आपने इब्तेदाई तालीम अपने ही वतन में हासिल की फिर आला तालीम के लिए मदरसे नाज़मिया लखनऊ का रुख किया,मोसूफ़ मदरसे के इब्तेदाई तुल्लाब में से थे|

आप ने सन:1313 हिजरी मे मुमताजुल अफ़ाज़िल ओर मुखतलिफ़ असनाद दरयाफ्त कीं आपके असातेज़ा में आयतुल्लाह नजमुल हसन अमरोहवी का नाम सरेफहरिस्त है मोलाना बहुत ज़हीन थे आपकी ज़हानत का अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है की मुज़फ्फ़रपुर में “मदरसे जामेउल उलूम छंडवाड़ा” के मुदर्रिसे आला मोलवी रहमतुल्लाह जो आपके पडोसी थे, दोनों में बे तकल्लुफ़ी थी एक बार मोलाना रहमतुल्लाह ने मज़ाक़ मे कहा की शियो में हाफ़िज़ नहीं होते आपने उसी दिन से कुराने मजीद हिफ़्ज़ करना शुरू किया ओर पाँच महीने के मुख़तसर अरसे में पूरा कुरान हिफ़्ज़ कर लिया, उस कारनामे को देखने के लिए दूर दूर से क़ारी ओर हाफ़िज़ जमा हुए ओर सब ने आपकी खुदा दाद याद दाश्त का लोहा मान लिया, आपके हिफ़्ज़ की खासियत ये थी के जिस तरह आप सूरे “अल्हम्द” से सूरे नास तक सुना सकते थे उसी तरह “सूरे नास” से सुरे अल्हम्द तक पढ़ते थे उनके हिफ़्ज़ का मेयार इतना बुलंद था के तमाम हुफ़्फ़ाज़ ओर ओलमा आपकी क़दर दानी करते थे, क़द्र दानी की वजह ये थी के आप हिफ़्ज़े कुरान के अलावा क़िराअत, फ़हमे मआनी, ओर तफ़सीर पर मुकम्मल दस्तरस रखते थे, आप एक अरसे तक कुराने मजीद के तर्जुमे ओर तफ़सीर में मशगूल रहे आप की कोशिश के नतीजे में कुराने मजीद का एक सलीस तरजुमा लोगों तक पोंहचा कुराने मजीद के हवाशी में आपने अहलेबैत की शान में होने वाली आयात की तशरीह शुरू से आखिर तक अहले सुन्नत की मोतबर किताबों से की है आज बर्रे सगीर के मोमनीन के घरों मे आपका ही तर्जुमा मिलता है|

आपने नवाब अलताफ़ हुसैन की गुज़ारिश पर मदरसे “सुलेमानया पटना” की मुदीरियत कुबूल की, मदरसे ने आपकी सरपरस्ती में तरक़्क़ी के मनाज़िल तै किए, जब मदरसे का चोथा सालाना जलसा हुआ जिसमें कमिश्नर भी महमाने खुसूसी में थे| इसमें साहब बहादुर ने आपकी बेहद तारीफ़ की ओर कहा के मैंने ऐसी उम्दा तालीमगाह पहली दफ़ा देखी है जो बगैर सरकारी इमदाद के चल रही है|

आपके शागिर्दों की फेहरिस्त तवील है जिनमे: अल्लामा अदील अख्तर जैदी, मोलाना प्रोफेसर एजाज़ हुसैन रिज़वी ओर मोलाना गुलाम मुस्तफ़ा गोपालपुरी के असमा क़ाबिले ज़िक्र हैं|

हाफ़िज़ फरमान अली जहाँ फ़िक़ वा उसूल ओर दिगर उलूम में महारत रखते थे आप वाज़ मुनाज़ेरा वग़ैरा में भी अपनी मिसाल आप थे, आपका बयान इसतदलाली होता था की मद्दे मुक़ाबिल के पास सूकूत इख्तियार करने के अलावा कोई रास्ता नहीं रहता था|

मोलाना हाफ़िज़ फ़रमान अली साहब निहायत सादा ज़िन्दगी बसर करते थे ,गरीब पर्वरी, इंकेसारी,ओर अक़रबा नवाज़ी के साथ साथ ज़हमतकश अफ़राद को पसंद फ़रमाते, आप अपना कम खुद ही अंजाम देते, गरीब रिशतेदारों ओर तालिबे इलमों के साथ ज़मीन पर बैठ जाते ओर उनके कामों मे हाथ बटाने लगते, जिस वक़्त मुज़फ्फ़रपुर ओर दरभंगा के दरमियान ट्रेन नहीं थी मोलाना 70 किलो मीटर का सफ़र साइकिल से तै करते ओर तबाबत के फ़राइज़ अंजाम देते, अहले सिरवत से मोमनीन ओर अहले बस्ती की सिफ़ारिश करने में कोई झिजक महसूस नहीं करते थे आपने लोगों से रवाबित होने के बावजूद खुद्दारी ओर इज़्ज़ते नफ़्स को कभी हाथ से जाने नहीं दिया, जिसका अंदाज़ा इस वाक़्ये से लगाया जा सकता है की एक बार आपकी इकलोती बेटी की बीमारी की ख़बर आई आपने दरभंगा जाने क लिए छुट्टी की दरखास्त दी जिसे मदरसे के सीक्रेटरी ने मंज़ूर नहीं किया आपने दरखास्त की पुश्त पर इस्तीफ़ा लिख कर भेज दिया ओर घर चले आए, ये ख़बर मज़हबी हलक़ों में फैली तो पूरे अज़ीमाबाद मे हलचल मच गयी लोग उनको राज़ी करने क लिए चन्दन पट्टी तक आए लेकिन आपने जाने से इंकार कर दिया |

आपने तबाबत ओर तदरीस की मसरूफ़यात के बावजूद बहुत सारे आसार छोड़े हैं जिनमें से दरसी निसाब के लिए अहकाम की 4 जिल्दें तहरीर फरमाई जो अभी तक बार बार नश्र हो रही हैं, अहले हदीस की नामवर शख्सियत मोलवी सनाउल्लाह अमृतसरी (ऐडिटर अहले हदीस अमृतसर) से आयए विलायत की तफ़सीर पर आप से तहरीरी मुनाज़ेरा होता रहा जो“मजाल्लाए अहले हदीस” ओर “इसलाह” में छपता रहा “इदारए इसलाह” ने उन मज़ामीन का मजमूआ “अलवली” नाम से शाया किया, उसके अलावा किताबुन नहव, ओर किताबुस सर्फ़ मतबूआ किताबों के अलावा “फ़िदक” ओर “सवानेह उमरी जनाबे फ़ातेमा ज़हरा स:” वगैरा जैसी बहुत सारी तसानीफ़ गैर मतबूआ हैं|

आखिरकार ये इलमों हिदायत का आफ़ताब 4 रजब 1334 हिजरी में गुरूब हो गया, पूरे मुल्क में ग़म मनाया गया ओर “क़बरुस्तान कम्पनी बाग़ कर्बला” मुज़फ्फ़रपुर में सुपुर्दे खाक कर दिया गया “मदरसे नाज़मिया लखनऊ” की जानिब से मजलिस ओर फ़ातेहा खानी का एहतेमाम किया गया जिसमें  मोमनीने किराम, ओलमए एलाम ,तुल्लाबे ज़विल एहतराम ने कसीर तादाद में शिरकत फ़रमाई, मजलिस को आप के हमदर्स मोलाना सय्यद सिब्ते हसन नक़वी ने खिताब किया| 

 माखूज़ अज़: नुजूमुल हिदाया, तहक़ीक़ो तालीफ़ : मौलाना सैयद ग़ाफ़िर रिज़वी फ़लक छौलसी व मौलाना सैयद रज़ी ज़ैदी फंदेड़वी जिल्द-४ पेज-१३३ दानिशनामा ए इस्लाम इंटरनेशनल नूर माइक्रो फ़िल्म सेंटर, दिल्ली,२०२०ईस्वी।           

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