۳۱ اردیبهشت ۱۴۰۳ |۱۲ ذیقعدهٔ ۱۴۴۵ | May 20, 2024
رئیس الحفاظ حافظ کفایت حسین شکارپوری

हौज़ा / पेशकश:  दनिश नामा ए इस्लाम, इन्टरनेशनल नूर माइक्रो फ़िल्म सेंटर दिल्ली  काविश: मौलाना सैयद ग़ाफ़िर रिज़वी छौलसी व मौलाना सैयद रज़ी ज़ैदी फंदेड़वी

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार, हाफ़िज़ किफ़ायत हुसैन सन १३१६ हिजरी  मुताबिक़ १८९८ ई॰ में सरज़मीने शिकारपुर ज़िला बुलंदशहर पर पैदा हुए, आपके वालिद “अब्दुल्लाह” ने मन्नत मानी थी के अगर अल्लाह उनको फ़र्ज़न्दे नरीना अता फरमाएगा तो उसको इमामे हुसैन अ: के लिये वक़्फ़ कर देंगे, जब मोसूफ़ के यहाँ फ़र्ज़न्द की विलादत हुई तो उस बच्चे का नाम “किफ़ायत हुसैन” रखा ओर आपको इल्मे दीन के लिए वक़्फ़ कर दिया|
सन: १९१० ई॰ मे दरसे तजवीद ओर क़िराअते कुराने मजीद के लिए “मदरसे मनसबिया अरबी कालिज मेरठ” का रुख़ किया, वहाँ पर तीन महीने की सुकूनत के दोरान “फ़य्याज हुसैन” से क़िराअत सीखी ओर अपने वतन वापस आ गए|
उसी साल आला तालीम के लिए लखनऊ का रुख़ किया ओर “मदरसे नाज़मिया” में रहकर जय्यद असातेज़ा से कस्बे फ़ैज़ किया, सन: १९१८ई॰ में “मदरसे नाज़मिया” से मुमताज़ुल अफ़ाज़िल की सनद हासिल की ओर उसी साल “हाई स्कूल लखनऊ” में उस्ताद की हेसयत से मुंतखब कर लिए गये|
मोसूफ़ ने १९१९ई॰ में “मदरसतुल वाएज़ीन” में दाखला लिया, वहाँ से फारिग होने के बाद आपने तबलीगे दीन के लिए “पेशावर” का रुख़ किया ओर वहाँ २ साल  तबलीगे दीन के फराइज़ अंजाम दिये, “नजमुल मिल्लत आयतुल्लाह नजमुल हसन” हाफिज़ किफ़ायत हुसैन की खिदमात से बहुत मुतास्सिर हुए ओर आपको ख़ास सनद से नवाज़ा|
हाफ़िज़ साहब सन १९२५ में “कोर्म एजेन्सी” के क़ाज़ी मुकर्रर हुए। अहले पेशावर ओर अतराफ़ के लोग आप से बहुत ज़्यादा मुतास्सिर थे क्योंकि अप उन लोगो के दरमियान उन्हीं की ज़ुबान “पशतु” में मजालिस पढ़ते थे|
हाफ़िज़ किफ़ायत हुसैन हमदर्दी ओर इंकेसरी का मुजस्समा थे आप इस क़दर मुंकसेरूल मिज़ाज थे के एक नानवाइ ने आप से कहा था के एक मुद्दत से आपको दावत दे रहा हूँ “आप हमेशा कोई न कोई बहाना ले आते हैं” आज आपको बहाने की मोहलत नहीं दूंगा “लिहाज़ा आप मेरी दावत क़ुबूल फरमाइये” आप फ़ोरन ही तंदूर के पास बैठ गये, नानवाई ने खाने के लिये चने की दाल ओर रोटी पेश की आपने वही बैठ कर खाना शुरू कर दिया लोग आपके इस अमल से बहुत हैरत ज़दा हुए|
किफ़ायत हुसैन हाफिज़े कुरान होने के साथ साथ एक बड़े खतीब भी थे आपका बयान फ़लसफ़ा ओर आयाते क़ुरानी पर मुशतमिल होता था, यहाँ तक के इल्म दोस्त अहले सुन्नत भी आपकी मजलिस में शरीक होते थे|
अहले सुन्नत ओर अहले ताशय्यो इल्मे तजवीद, हिफ़्ज़े क़िराअत, तफ़सीर ओर उलूमे कुरान मे आपकी इल्मी सलाहियत के क़ायल थे, आप दोराने तिलावते सलाम का जवाब देकर तसलसुल ओर रवानी के साथ तिलावत को आगे बढ़ा देते थे तिलावत की रवानी इतनी ज़्यादा थी के एक घंटे में पाँच पारों की तिलावत कर लिया करते थे, हर रोज़ आधा क़ुरान ओर माहे रमज़ान मे पूरे क़ुरान की तिलावत करते थे, आपने लखनऊ, इटावा, शिकारपुर, मेरठ, ओर हैदराबाद वगैरा की क़ुरानी महफ़िलों में शिरकत की ओर तमाम लोगो से अपनी सलाहियत का लोहा मनवाया।
सन १९२५ ई॰ में “मोलाना हाफ़िज़ मोहम्मद इब्राहीम स्यालकोटी” ओर दूसरे ओलमाए अहलै सुन्नत ने भी दावा किया के अहले तशय्यो में हाफ़िज़ नहीं पाये जाते ,लिहाज़ा हाफ़िज़ किफायत हुसैन ने एक महफ़िल में इस तरह तिलावत की के “मोलाना इब्राहीम स्यालकोटी खतीबे जामा मस्जिद अहले हदीस” ओर ओर “मोलाना मोहम्मद शाह हनफ़ी” ये तहरीर करने पर मजबूर हो गए के हमारा नज़रया बातिल हो गया।
मोसूफ़ की इस शानो शोकत को आज़ाद क़बाइल बर्दाश्त नहीं कर पाये ओर आपसे हसद करने लगे यहा तक के क़त्ल का मंसूबा बना लिया, एक दिन हाफ़िज़ साहब एक बाग़ीचे में नमाज़ अदा कर रहे थे के एक शख्स आपको क़त्ल करने के लिए बाग़ीचे में दाखिल हुआ ओर सजदे मे जाने का इंतेज़ार करने लगा जैसे ही सजदे में गये उसने गोली चलाना चाही लेकिन उसके हाथ कापने लगे, दूसरी मर्तबा भी ऐसा ही हुआ जब मजबूर हो गया तो उसने अपने आप को हाफ़िज़ साहब के क़दमों में गिरा दिया आपने उसको खाना ओर पैसे देकर खुदा हाफिज़ कर दिया|
सन १९३४ ई॰ में “नजमुल ओलमा” के हुक्म की तामील करते हुए “पारा चिनार” से इस्तीफ़ा देकर तबलीग के लिये शुमाल से मगरिब की तरफ़ चले गये ओर पंजाब में ओक़ाफ़ के नाइब मुतवल्ली मुंतखब हो गये, नजमुल मिल्लत ने माक़ूलात की तदरीस के लिये आपको दावत नामा भेजा ओर “सालेसुन नय्येरैन” के लक़ब से नवाज़ा, कई साल “किताबुत्तसरीहमुल्ला हसन शमसे बाज़ेगा” “शरहे तजरीद” ओर “इमादुल इस्लाम” की तदरीस की जिसके सबब आपकी सलाहियत के चरचे होने लगे १९६४ई॰ में नवाब रज़ा अली खान ने एक कमेटी बनाई मोसूफ़ भी उस कमेटी के रुक्न मुंतखब हुए ओर वहाँ से लाहोर तशरीफ़ ले गये|
पाकिस्तान में हिंदुस्तानी मुहाजेरीन के लिये एक मरकज़ी शख़्सियत बन कर उभरे ओर सन: १९४८ई॰ में आपने “इदारए हुक़ूक़े शिया” की बुनयाद डाली|
हुकुमते पाकिस्तान ने १९५७ई॰ क़वानीने इस्लामी के इजरा के लिये कमेटी तशकील दी तो हाफिज़ साहब को भी उसका रुक्न बनाया|

मोसूफ़ सन: १९६४ में हज्जे बैतुल्लाह की गरज़ से कराची का रुख़ किया , जैसे ही कराची पोंहचे अचानक तबियत ख़राब हो गयी यहाँ तक के सफ़रे हज मुल्तवी करना पड़ा, सन: १९६६ई॰ में बीमारी के बावजूद ज़ियारत की ग़रज़ से आज़िमे नजफ़े अशरफ़ हुए ओर वहाँ आयतुल्लाह मोहसेनुल हकीम से मुलाक़ात हुई तो उन्होने अपने खास तबीब से आपका इलाज कराया|
सन: १९६८ई॰ में आपकी तबियत ज़्यादा ख़राब हो गयी, नवाब मुज़फ्फ़र अली ने इलाज की बहुत कोशिश की लेकिन सेहतयाब ना हो सके आख़िरकार ये इल्मो अमल का माहताब १३८८हिजरी मुताबिक़ १५ अप्रैल १९६८ई॰ बरोज़ जुमेरात गुरुब हो गया ओर अगले रोज़ मजमे की हज़ार आहो बुका के हमराह लाहोर के क़दीम इमाम बारगाह “गामेशाह” में सुपुर्दे ख़ाक कर दिया गया| 
माखूज़ अज़: नुजूमुल हिदाया, तहक़ीक़ो तालीफ़ : मौलाना सैयद ग़ाफ़िर रिज़वी फ़लक छौलसी व मौलाना सैयद रज़ी ज़ैदी फंदेड़वी जिल्द-१ पेज-१९५ दानिशनामा ए इस्लाम इंटरनेशनल नूर माइक्रो फ़िल्म सेंटर, दिल्ली, २०१९ईस्वी।

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