۳۱ اردیبهشت ۱۴۰۳ |۱۲ ذیقعدهٔ ۱۴۴۵ | May 20, 2024
مولانا غلام علی حاجی ناجی

हौज़ा/पेशकश:दनिश नामा ए इस्लाम, इन्टरनेशनल नूर माइक्रो फ़िल्म सेंटर दिल्ली काविश: मौलाना सैयद ग़ाफ़िर रिज़वी छौलसी व मौलाना सैयद रज़ी ज़ैदी फंदेड़वी

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार ,मुबल्लिगे गुजरात मौलाना गुलाम अली सन १२८२ई॰ में सरज़मीने मुंबई पर पैदा हुए, आपके वालिद हाजी इसमाईल थे आपने अपना नाम हाजी नाजी मुंतखब किया ओर हाजी नाजी के नाम से मारूफ़ हुए

हाजी नाजी ने सन: १२८२ हिजरी में १२ साल की उम्र में मर्जए वक़्त “ आयतुल्लाहिल उज़मा शेख़ ज़ैनुल आबेदीन” के तरफ से एज़ाम शुदा मुबाल्लिग “ मौलाना कादिर हुसैन के अरबी मदरसे में दाखला ले लिया ओर तीन साल की मुद्दत में क़ुरानी मालूमात के साथ अरबी ओर फ़ारसी ज़बान पर उबूर हासिल करके आपने असतेजा की आँखों का तारा बन गए, मोसूफ़ पने उस्ताद का बहुत एहतराम करते थे जब कभी “ मौलाना क़ादिर हुसैन” बाहर निकलना चाहते तो हाजी नाजी उनकी जूतयां सीधी करते थे,

आपके उस्ताद ने दुआ दी की बेटा आज तुम मेरी जूतयां सीधी कर रहे हो एक दिन आयेगा कि लोग तुम्हारी जूतयां सीधी करेंगें हाजी नाजी ने मौलाना क़ादिर हुसैन से दुरूस की तकमील के बाद “मौलाना सय्यद गुलाम हुसैन मुजताहिद हैदराबादी” से कस्बे फ़ैज़ किया|

मोसूफ़ सन १३०० हिजरी में आपने वालेदैन के साथ अतबाते आलियात की ज़ियारत के लिये ईरान व इराक़ तशरीफ़ ले गए ओर ज़ियारत से वापसी के बाद मालेगाउँ महाराष्ट्र में एक साल तक पेशनमाज़ी के साथ साथ हक़ व हक़ीक़त ओर इल्म व अमल की दावत देते रहे, एक साल बाद “मौलाना गुलाम हुसैन मुजताहिद हैदराबादी” आपको “महुवा गुजरात” ले आए जब आपने क़ौम की मज़हबी हालत देखी तो गुजरात की तबलीग के अंजामदही की ख़ातिर अपना वतन क़रार दिया ओर वहीं रहने लगे|

मौलाना ग़ुलाम अली ने सन” १९०१ई॰ में शहरे मुंबई में ख़ोजा इसना अशरी जमाअत बनाई ओर उसके इब्तेदाई दिनों में आपने घर में वाज़ व खिताबत की मजलिसें मुनअक़िद किया करते थे, उन्होने कर्बला के सफ़र में आयतुल्लाह शेख़ जैनुल आबेदीन से २०० फ़िक़ही मसअले दरयाफ़्त किये ओर उन्हें आपने हाथों से तहरीर किए

हाजी नाजी की तहरीर व तक़रीर ने लोगों में दीनदारी का जज़बा पैदा कर दिया, मीर आगा लखनवी ने आपको “ खैरुज़ ज़ाकेरीन” का खिताब दिया,

सन १३११ हिजरी में अतबाते अलियात की गरज़ से इराक़ गये तो आयतुल्लाह शेख़ मोहम्मद हुसैन माज़नडरनि ने मुलाक़ात के दौरान कहा की आप ज़ियारत के सफ़र को क्यूँ तूलानी करते हैं जल्दी से ज़ियारत कीजये ओर अपने वतन वापस जाइये क्यूंकि ज़ियारत मुसतहब हैऔर तबलीग वाजिब है|

हाजी नाजी की रहबराना सलहियातों को लोगों ने बिला तफ़रीक़े मज़हबो मिल्लत तस्लीम किया, लोग मज़हबी गुत्थियों को सुलझाने के लिये उनकी तरफ़ रुजू करते ओर वो लोगों के मसाइल हल करते थे, वो लोगों की हिदायत के लिये दूर दराज़ के देहाती इलाकों में भी जाते ओर उनको नूरे इल्म से मुनव्वर करत थे, आप अपने घरेलू इखराजात के लिये लैदर की तिजारत करते थे

पहली ज़ीकादा सन: १३१०हिजरी को महनामा “ राहे निजात” का इजरा किया, सन :१३१४ हिजरी में अहमदाबाद गुजरात में प्रिंटिंग प्रैस खरीदी ओर उसे मरकज़ी तबाअते इसना अशरी का नाम दिया , इस प्रेस की वजह से आपने भावनगर छोड़कर अहमदाबाद में क़याम किया, गुजराती रसमुल ख़त में दुआओं, ज़ियारतों ओर साल भर के आमाल के अलावा क़ुराने मजीद की इशाअत की ग़रज़ से अरबी हुरूफ के लिये गुजराती रसमुल ख़त के हुरूफ़ तय्यार किये|

जहाँ प्रेस थी वहीं पर हुसैनी ट्रस्ट की जानिब से ग्यारहवीं क्लास से ग्रेजवेट तक बच्चों के लिये बोर्डिंग का क़याम किया जिसमें क़याम व तआम के साथ दिगर सहूलयात का बंदो बस्त भी किया|
सन १३१२हिजरी में महनामा नूरे ईमान की इशाअत की सन १३२६ हिजरी में मजल्ला “ बागे निजात” शाया किया, मुख्तलिफ़ शहरों में ख़ुशी ओर गम के मोक़ों पर प्रोग्रामों कराए जिनमें आपकी तक़रीरें रहीं एक ख़ोजे की मदद से
महुव्वा” में एक मदरसे की बुनयाद रखी”
हाजी नाजी ने अपनी तमाम मसरूफ़यतों के बावजूद क़लम को नहीं छोड़ा ओर बहुत सी किताबें तहरीर करके क़ौम व मिल्लत के सुपुर्द कीं, सन १३२१ हिजरी में गुजराती ज़बान में क़ुराने करीम का तरजमा ओर उसकी तफ़सीर तहरीर की, ख़ोजा शिया इसना अशरी की अकसरयत अरबी रसमुल ख़त से ना वाकिफ़ थी लिहाज़ा बहुत सी दुआओं का अरबी से गुजरती ज़बान में तरजमा किया और बहुत सी किताबें तालीफ़ कीं जिसके नतीजे में योरोप, अमेरिका और अफ्रीक़ा में मोजूद ख़ोजा बरादरी की छोटी बड़ी जमाअतें हिन्द व पाक से लेकर आस्ट्रेलया तक सही क़िराअत के साथ दुआएं और आमाल बाजा लाने लगीं|
आपकी तसानीफ़ की तादाद का सही अंदाज़ा लगाना मुश्किल है अलबत्ता मुबल्लिगे गुजरात नंबर के मुताबिक़ आपके तसानीफ़ की तादाद २८९ है, उनकी तहरीरों से आज भी मोमेनीन हिदायत हासिल कर रहे हैं, बाज़ गैर मतबुआ किताबें सन१९३२ई॰ में घर में आग लगने की वजह से नाबूद हो गईं|

जनाब ग़ुलाम हुसैन मेघानी ओर अल्लामा हाजी नाजी ट्रस्ट ओर दूसरे अराकीन के तआवुन से एक शानदार इमारत ख़रीदी गयी जिसमें गुजरात के मुखतलिफ़ शहरों ओर क़रयों के बच्चों की बारहवी क्लास तक तालीम व क़याम का बंदो बस्त किया ओर इस इमारत में एक लाइब्रेरी की तासीस की गयी जिससे अहले इल्म इसतेफ़ादा कर रहे हैं और उसी इमारत में हाजी नाजी की  किताबों की नशरो इशाअत का कम अंजाम पता है,जहाँ तमाम खिदमात अंजाम दीं वहीं पर मोहसिने क़ौम के नाम पर डिस्पेन्सरी की बुनयाद रखी, जिससे ज़रूरतमंद अफराद मुफ्त दवा हासिल करके सेहतयाब हो रहे हैं|

आखिरकार ये इल्म व हिदायत का आफ़ताब जो २८ सफ़र १२७९ हिजरी में मुंबई के उफ़ुक़ से तुलू हुआ था ९ ज़िलहिज १३६२ हिजरी भावनगर गुजरात की सरज़मीन पर गुरूब हो गया ओर चाहने वालों की हज़ार आहो बिका के हमराह आराम बाग भावनगर गुजरात जो इस वक़्त हाजी नाजी क़ब्रिस्तान से जाना जाता है सुपुर्दे ख़ाक कर दिया गया|

माखूज़ अज़: नुजूमुल हिदाया, तहक़ीक़ो तालीफ़: मौलाना सैयद ग़ाफ़िर रिज़वी फ़लक छौलसी व मौलाना सैयद रज़ी ज़ैदी फंदेड़वी जिल्द-२ पेज-१३१दानिशनामा ए इस्लाम इंटरनेशनल नूर माइक्रो फ़िल्म सेंटर, दिल्ली, २०१९ ईस्वी।

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