۳۱ اردیبهشت ۱۴۰۳ |۱۲ ذیقعدهٔ ۱۴۴۵ | May 20, 2024
मौलाना मकबूल अहमद देहलवी

हौज़ा / प्रस्तुति: दानिशनामा इस्लाम, इंटरनेशनल नूर माइक्रोफिल्म सेंटर दिल्ली काविश: मौलाना सैयद गाफ़िर रिज़वी छोलसी और मौलाना सैयद रज़ी जैदी फंदेड़वी

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी  के अनुसारः मोलाना मक़बूल अहमद देहलवी सन:१२८७ हिजरी मुताबिक़ १८७०ई॰ में सरज़मीने देहली पर पैदा हुए, आपके वालिद का नाम “गज़ंफर अली” था जो अपने ज़माने के मशहूर खतीब थे, मक़बूल अहमद साहब अय्यामे रिज़ाअत में आगोशे मादर ओर सात बरस की उम्र में साये पिदरी से महरूम हो गये, आपकी परवरिश आपके बड़े भाई “हफ़ीज़ुल्लाह” साकिने “पानीपत” ने की, सातवीं क्लास तक पानीपत में तालीम हासिल करके देहली का रुख किया ओर “एंग्लो अरेबिक हाई स्कूल” में दाखला ले लिया तालीम के साथ आम मुतालेआ भी करते रहे, सन १८५८ ई॰ में आठवीं क्लास पास की, सन १८८६ ई॰ में अपनी तहक़ीक़ से मज़हबे तशय्यो इख्तियार किया ओर उसका एलान जामा मस्जिद देहली में करते हुए मुनाज़रे का चेलेंज किया, सन: १८८७ ई॰ में इंटरेंस किया ओर १८८९ ई॰ में “मिशन कालिज” से “एफ़.ए” का इम्तेहान दिया, उन इम्तेहानात में मोसूफ़ ने पूरे सूबे पंजाब में इम्तियाज़ हासिल किया ओर उलूमे दीनया में मोलाना आफ़ताब हुसैन की शागिर्दी इख्तियार की।

एफ़.ए के बाद शादी हो गयी ओर घरेलू ज़िम्मेदारयो की वजह से तालीम के बजाए तसनीफ़ो तलीफ़ ओर तक़रीर में मसरूफ़ हो गये, उसी ज़माने में आपको उलूमे अरबिया, तिब ओर वज़ाइफ़ से भी दिलचस्पी

बढ़ गयी ओर तक़रीर मे भी शोहरत का आगाज़ हो गया लेकिन मोसूफ़ ने अमली सरगरमियों को तर्क नहीं किया।

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“मदर्सए इसना अशरया देहली” कुछ अरसे से सरगरमे अमल था, सन १८९४ ई॰ में राजा सय्यद बाक़िर अली खान वालीये “रियासते पंडरावल” वा “मीर आफ़ कोटा” देहली आये, मदरसे के मुंतज़ेमीन का वफ़्द

राजा साहब से मिलने गया, राजा साहब वफ़्द के अरकान में मोलाना मक़बूल अहमद से बहुत मुतास्सिर हुए ओर अपना प्राइवेट सिक्रेटरी तजवीज़ कर लिया ,१९०२ १९०२ई॰ में राजा साहब का इंतेक़ाल हुआ तो मोलाना देहली वापस आये यहा आकर एक अस्पताल बनवाने का इरादा था लेकिन माली तआवुन ना होने की वजह से अपनी ख्वाहिश को अमली जामा ना पहना सके।

आपकी खिताबत में देहली की ज़ुबान, तबई मिज़ाह, इल्मी वज़्न, शीरी बयानी ओर मुनाज़ेराना उसलूब था, मोसूफ़ ने खिताबत के ज़रिये मिंबर को नया उसलूब दिया ओर मजलिस को नया रंग दिया, अंग्रेज़ी ऊलूम से वाक़फ़ियत ओर फरीक़ैन की किताबों के मुतालए ने उनके बयान में जिद्दत पैदा कर दी थी, वो शिया ज़ाकरीन में अज़ीम खतीब माने जाते थे, जिस वक़्त अप नवाब हामिद अली ख़ान की मस्जिद मे वाज़ कर रहे थे तो राजा “सय्यद अबु जाफ़र” का तार आया वो १९ रमज़ान की तारीख़ ओर जुमे का दिन था लिहाज़ा मोलाना २१ रमज़ान की मजलिस पढ़ने फ़ैज़ाबाद चले गये , ये मजलिस इतनी मारके की हुई के मोलाना शोहरत वा इज्ज़त के बामे उरूज पर पोहुंच गये ,फ़ैज़ाबाद, जोनपुर, लखनऊ गरज़ शोहरत का दायरा बढ़ता चला गया, नवाब साहब रामपुर ने आपकी इल्मी सलाहियत देखी तो रियासत में “आडिट आफ़िसर” रख लिया, बारह साल इस मनसब पर क़ायम रहे, इस दोरान आप मजलिसें भी पढ़ते थे ओर नवाब साहब की ख्वाहिश पर तफ़सीरो तर्जुमा ए क़ुराने मजीद भी लिखते थे जिसमें “मोलाना एजाज़ हसन बदायूनी” की मदद शामिले हाल रही।

मोलाना मक़बूल अहमद ने अपनी तफ़सीर मे आम तोर से तफ़सीरे साफ़ी को तरजीह दी है ओर बाज़ मक़ामात पर दूसरी मोतबर तफ़सीरो से भी इस्तेफ़ादा किया है, आपने क़ुरान का बतोरे कामिल तर्जुमा किया है, हवाशी में तफ़सीरी नुकात तहरीर किए ओर इस सिलसिले में रिवायात से भरपूर इस्तेफ़ादा किया है, ज़्यादातार शिया वा सुन्नी इख्तेलाफ़ी मसाइल को बयान किया ओर उन्हीं मतालिब पर मुशतमिल एक अलहदा ज़मीमा भी लिखा चूंके ज़माइम का हज्म ज़्यादा था इस लिए वो एक मुस्तक़िल जिल्द मे तबा हुए।

तर्जुमा ए क़ुरान का वो नुस्खा जो मक़बूल प्रेस की तरफ़ से तीसरी बार छपा है , इस तर्जुमे के इब्तेदाई सफ़हात पर चंद ओलमा की तक़रीज़ात मरक़ूम हैं जिन में: मोलाना सय्यद अहमद अली , सय्यद कलबे हुसैन, सय्यद मोहम्मद देहलवी, सय्यद नजमुल हसन अमरोहवी, सय्यद सिब्ते नबी नोगाँवी, सय्यद मोहम्मद बाक़िर , सय्यद मोहम्मद हादी ,सय्यद आग़ा हसन ,सय्यद नासिर हुसैन वगैरा के अस्मा सरे फेहरिस्त हैं ये तर्जुमा ९६६ सफ़हात पर मुश्तमिल है।

आपने तरजमा ओर तफ़सीर लिखने में जैसे: उसूले काफ़ी, तफ़सीरे क़ुम्मी, तफ़सीरे अयाशी, एहतजाजे तबरसी, तफ़सीरे मजमा उल बयान, ओर तफ़सीरे साफ़ी वगैरा से इसतेफ़ादा किया उनका तर्जुमा बा मुहावरा है ,अगरचे बाज़ जगोंह पर इस बात की भी कोशिश की के आयात के तहततुल लफ़ज़ी तर्जुमे से इसतेफ़ादा करें।

सन १९२० मे तक़रीबन सो ओर सन: १९२१ ई॰ में दोबारा इसी तादाद में आग़ा खानी हज़रात को मज़हबे हक़्क़ा की तरफ़ लाये, इसी लिए मुंबई के हज़रात आपके क़द्रदान हो गये उसी ज़माने में मोसूफ़ हज्जो ज़ियारत से मुशर्रफ़ हुए।

मोलाना मक़बूल अहमद इंतेहाई मिलनसार, हमदर्द, ओर सखी इंसान थे, उनहोंने क़ोमी तरक़्क़ी के लिए तिजारत, मदारिस ,वज़ीफ़ा ए सादात वा मोमेनीन जैसे इदारों की बड़ी ख़िदमत अंजाम दी।

वाज़ों तबलीग ओर दूसरे उमूर की मसरूफ़यात के बावजूद आपने तसनीफ़ो तालीफ़ में भी नुमाया किरदार अदा किया, तर्जुमा वा तफ़सीरे क़ुराने मजीद जो तीन सूरतों में छपा 1- हमाइले मत्न वा तर्जुमा ए हवाशी 2- क़ुराने मजीद तर्जुमा ए हवाशी 3- कुराने मजीद तर्जुमा ए हवाशी वा ज़मीमा, “मुफ़्ती ए मक्का सय्यद अहमद वोहलान” की किताब “असनल मतालिब फ़ी ईमाने अबी तालिब” का तर्जुमा, मक़बूल दीनयात 5 हिस्से, ज़ाएचाए तक़दीर , फ़ाल नामा ए दानयाल, तहज़ीबुल इस्लाम, वज़ाइफ़े मक़बूल चोदह सूरतों ओर कुछ दुआओ का मजमुआ, मिफ़्ताहुल कुरान, जिनमें से मक़बूल साहब का क़ुरानी तर्जुमा अब तक मक़बूल है ओर बाकसरत शाये होता रहता है।

आख़िरकार ये इल्मो फज़्ल का आफ़ताब २४ सितंबर १९२१ ई॰ को सरज़मीने देहली पर गुरूब हो गया, नमाज़े जनाज़ा के बाद मजमे की हज़ार आहो बुका के हमराह “पंजा शरीफ़ देहली” में सुपुर्दे ख़ाक कार दिया गया, मुल्क भर में ताज़ियती जलसों ओर मजलिसों का तवील सिलसिला क़ायम रहा, आपकी याद में देहली में “मदरसतुल क़ुरान” ओर‘आगरा” में“मक़बूलुल मदारिस” की बुनयाद रखी गयी।

माखूज़ अज़: नुजूमुल हिदाया, तहक़ीक़ो तालीफ़ : मौलाना सैयद ग़ाफ़िर रिज़वी फ़लक छौलसी व मौलाना सैयद रज़ी ज़ैदी फंदेड़वी जिल्द-४ पेज-२६३ दानिशनामा ए इस्लाम इंटरनेशनल नूर माइक्रो फ़िल्म सेंटर, दिल्ली, २०२० ईस्वी।

     

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