۳۱ اردیبهشت ۱۴۰۳ |۱۲ ذیقعدهٔ ۱۴۴۵ | May 20, 2024
मौलाना सलमान हैदर आबेदी

हौज़ा काविश: मौलाना सैयद ग़ाफ़िर रिज़वी छौलसी व मौलाना सैयद रज़ी ज़ैदी फंदेड़वी

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी की रिपोर्ट अनुसार, सदरुल ओलमा मोलाना सलमान हैदर आबदी “छब्बीस जमदियुल अव्वल सन तेरह सो सत्तावन हिजरी”सरज़मीने नोगांवा सादात ज़िला मुरादाबाद सूबा यूपी के एक इल्मी घराने में पैदा हुए, आपके वालिद सदरुल मिल्लत मोलाना सय्यद मोहम्मद मुजतबा एक जय्यद आलिमे दीन थे

  आप उस इल्मी घराने से ताअल्लुक़ रखते थे जिसका फैज़ान सदयों से जारी है, आपने इब्तेदाई तालीम अपने ही वतन में हासिल की ओर उसके बाद अपने वालिद के तासीस करदा मदरसे “जामिया आलिया जाफ़रया” नोगाँवा सादात में जय्यद असातेज़ा की

ख़िदमत में रहकर इलमे नहो,सर्फ़ मनतिक़, फ़लसफ़ा, उसूले फ़िक़ की किताबें पढ़ीं

सदरुल ओलमा ने सन: “उन्नीस सो उनसठ ईस्वी” में नजफ़े अशरफ़ का रुख़ किया वहाँ रहकर बुज़ुर्ग ओर जय्यद असातेज़ा के सामने ज़ानुए अदब तै किए ओर दुरुसे उसूले फ़िक़हो उसूल को छै साल की मुद्दत में तकमील किया , मोलाना सलमान हैदर सन

वीडियो देखने के लिए क्लिक् करेः वीडियो / भारतीय धार्मिक विद्वानो का परिचय । सदरुल ओलमा सलमान हैदर आबेदी

“उन्नीस सो पैसठ ईस्वी” में होज़ए इलमिया नजफ़े अशरफ़ को तर्क करके हिंदुस्तान वापस आए ओर तबलीगो तदरीस में मसरूफ़ हो गये

मोलाना सलमान हैदर ने अपनी ज़िंदगी में बहुत ज़्यादा खिदमात अंजाम दीं, जहाँ आपने अपने वालिद के तासीस करदा “मदरसे आले जाफ़रया” को दिन दोगुनी रात चोगुनी तरक़्क़ी अता की वहीं हामेदुल मदारिस (पिहानी) को भी अपने फ़ैज़ से सरशार किया ओर ज़िंदगी की आखरी दहाई में अपने वतने अज़ीज़ नोगाँवा सादात में एक मदरसा बनामे “जामेअतुल मुंतज़र” क़ायम किया

मोलाना दीगर सिफ़ाते हमीदा के साथ साथ एक बे मिसाल मुदीर भी थे, आप तुल्लाब का बहुत ज़्यादा खयाल रखते थे उनको दस बारह बरस की उम्र मे ही नमाज़े शब से मानूस करा देते थे , आपको इमारत की सनअत से मुताअल्लिक़ बारीकयां भी मालूम थीं, मदरसे का नक़्शा अपने क़लम से ही बनाकर सरकारी दफ़्तर में पेश किया ओर उसी के मुताबिक़ इमारत बनवाई नीज़ चमन को खुद ही डिज़ाइन किया ओर बाद के लिए भी ऐसी राहें छोड़ीं जिसके मुताबिक़ इदारा आज तक तरक़्क़ी के मनाज़िल तै कर रहा है

आप एक बे मिसाल मुदीर ओर एक मुरब्बीए कामिल थे, अफ़, वा, दर गुज़र , सलाम में पहल, इस्लामी वज़ऐ क़त ओर तवक्कुल अलल्लाह मोसूफ़ की ज़िंदगी में अच्छी तरह क़ाबिले मुशाहेदा हैं, अपने छोटों से माफ़ी मांगने में शर्म महसूस नहीं करते थे, अगर किसी तालिबे इल्म की इत्तिफाक़ से सरज़निश कर दी तो उसे अलग बुलाकर दिलजोई फ़रमाते ओर उसे राज़ी कर लेते थे

सदरुल ओलमा मोलाना सय्यद सलमान हैदर ने अपनी बहुत ज़्यादा मसरूफ़ियात के बावजूद मुताअद्दिद तसानीफ़, क़ोमो मिल्लत को हदया कीं, आपके फ़रज़ंद मोलाना क़ुर्रतुल ऐन मुजतबा फ़रमाते हैं: सदरुल ओलमा सफ़र की हालत में हों या हज़र में ट्रेन में हों या स्टेशन पर सहर के वक़्त तीन बजे कागज़ लेकर तहरीर करना शुरू कर देते थे , एक मर्तबा का वाक़ेआ है जिस वक़्त आप “पंथ हॉस्पिटल” (देहली) मे ज़ेरे इलाज थे तो एक दिन मैं मुलाक़ात की गर्ज़ से अस्पताल पोंहचा तो देखा हाथ की पुश्त पर सिरिन्ज है ओर क़लम लिए हुए तज़किरतुल अत्क़िया फ़ी तरीखे ओलमा के सिलसिले में कुछ तहरीर फ़रमा रहे हैं जब सदरुल ओलमा से कहा : आप ये क्या कर रहे हैं ? कहने लगे बेटा लिख रहा हूँ मैंने कहा अगर शोक़ ओर जज़बाए तहरीर दर्द का एहसास नहीं होने दे रहा है तो आप ये खयाल फ़रमाए सिरिन्ज की सूई से उँगलियों के मुड़ने के सबब ज़ख्म हो सकता है, कहने लगे: तुमने मोलाना हारून का वाक़ेआ सुना होगा , उनको लिखने का बहुत शोक ओर जज़्बा था आखिर में किसी बीमारी के सबब उँगलियाँ ज़ख्मी हो गईं, क़लम पकड़ना मुश्किल था वो क़लम उँगलियों से बंधवाया करते थे, सदरुल ओलमा ने ये कहकर फिर लिखना शुरू कर दिया, वो ये चाहते थे के इस किताब को सो जिल्दों मे तकमील करें, जिनमें  फ़िर्क़ाए नाजिया, बहलोल दाना, मनाक़िबे साययदुश शोहदा ओर तकमिलए तज़किरए बेबहा के असमा क़ाबिले ज़िक्र हैं 

अल्लाह ने आप को आठ नेमतों ओर चार रहमतों से नवाज़ा, मोसूफ़ ने उनकी तालीम ओर तरबियत पर खास तवज्जो दी ओर उनको इलमों फज़्ल से आरास्ता किया, सदरुल ओलमा की इल्मी मीरास के वारिस मोलाना सय्यद कुर्रतुल ऐन मुजतबा हैं हाले हाज़िर “चोदह सो तेतालीस” (हिजरी) में जामेअतुल मुंतज़र नोगाँवा सादात के प्रिंसपल हैं

आख़िरकार ये इल्मो फ़ज़्ल का आफ़ताब तेरह शाबान सन “चोदह सो तेरह” (हिजरी) में गुरूब हो गया, आपकी रहलत की ख़बर बिजली की रफ़्तार की मानिंद फैल गयी चाहने वालों का मजमा उमंड पड़ा, गुसलो कफ़न के बाद आपके जनाज़े को बड़ी इज़्ज़तो एहतराम के साथ हज़ारों चाहने वालों के मोजूदगी में अठाया गया ओर वसीयत के मुताबिक़ इसी क़ब्र में दफ्न करा दिया गया जो उनहोंने अपने लिए बनवाई थी

माखूज़ अज़: नुजूमुल हिदाया, तहक़ीक़ो तालीफ़ : मौलाना सैयद ग़ाफ़िर रिज़वी फ़लक छौलसी व मौलाना सैयद रज़ी ज़ैदी फंदेड़वी जिल्द-१ पेज-139 दानिशनामा ए इस्लाम इंटरनेशनल नूर माइक्रो फ़िल्म सेंटर, दिल्ली, २०१९ ईस्वी।

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