۳۱ اردیبهشت ۱۴۰۳ |۱۲ ذیقعدهٔ ۱۴۴۵ | May 20, 2024
मुफ़्ती मोहम्मद अब्बास शूश्तरी

हौज़ा / पेशकश: दानिशनामा इस्लाम, इंटरनेशनल नूरमाइक्रो फिल्म सेंटर दिल्ली काविश: मौलाना सैयद गाफ़िर रिज़वी छोलसी और मौलाना सैयद रज़ी ज़ैदी फ़ंदेड़वी

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार, मुताकल्लिम, मोहद्दिस, मुफ़स्सिर, तबीब, फ़लसफ़ी, अदीब, शायर, वाइज़ मुफ़्ती सय्यद मोहम्मद अब्बास शूश्तरी रबीउल अव्वल 1224 हिजरी में सरज़मीने लखनऊ पर पैदा हुए, आपके वालिद जनाब सय्यद अली अकबर ने आपका नाम आपके चचा सय्यद अब्बास के नाम पर सय्यद मोहम्मद अब्बास रखा।

मुफ्ती मोहम्मद अब्बास ने इब्तेदाई तालीम पाँच साल की उम्र में सुन्नी मसलक के आलिमे दीन मौलवी अब्दुल क़वी के पास मुकम्मल की, आप निहायत ज़हीन थे इसी लिए तीन दिन में हूरूफ़े तहज्जी पढ़ने के बाद “पंद नामा ए सादी” पढ़ना शुरू कर दिया, आपने चोदह साल की उम्र में बहुत से उलूम मसलन माक़ूलात, हिसाब, मनतिक़, फ़लसफ़ा, हैअत, हिंदसा, तफ़सीर और कलाम वगैरा में महारत हासिल कर ली थी, मोसूफ़ 8 साल के थे कि एक तालिबे इल्म शरहे जामी का निहायत मुश्किल मसअला दरयाफ्त किया, आपने फ़ोरन समझा दिया तालिबे इल्म ने कहा: मैंने इस शहर के औलमा से 13 मर्तबा शरहे जामी पढ़ी है लेकिन किसी ने इस मसअले को हल नहीं किया लिहाज़ा अब मैं आपसे ही पढ़ूँगा।

आपको तहसीले इल्म का इस क़द्र शोक़ था कि ज़रूरी कामों पर भी तहसीले इल्म को तरजीह देते थे यहाँ तक कि खाने पीने और दिगर कामों की अंजामदही को वक़्त की बरबादी समझते थे, अगर दसतरखान पर रोटी आ गई तो सालन का इंतेज़ार किये बगैर उसे खाना शुरू कर देते ताकि जल्दी फ़रागत हो जाए और कुतुब बीनी में ताखीर ना हो।

मौलवी अब्दुल क़वी की हौसला अफ़ज़ाइ की बदौलत तिब का शौक़ हुआ लिहाज़ा तबीबुल मुलूक मिर्ज़ा अली ख़ान, मसीहुद्दौला मिर्ज़ा हसन अली ख़ान और मिर्ज़ा हकीम एवज़ अली के पास किताबें पढ़ीं, सय्यदुल औलमा आयतुल्लाह सय्यद हुसैन इल्लीयीन मकान से फ़िक़ही दुरूस की तकमील फरमाइ, आपको सय्यदुल औलमा ने इजाज़ा ए नक़्ले रिवायत और इजाज़ए इजतेहाद भी मरहमत फ़रमाए।

आपने सैंकड़ों शागिर्दों की तरबियत की जिनमें से कुछ असमा इस तरह हैं: मौलाना सय्यद महदी शाह, अयतुल्लाह हामिद हुसैन मूसवी, मौलाना अबुल हसन रिज़वी, मौलाना हैदर अली, मौलाना मिर्ज़ा मोहम्मद अली, नासेरूल मिल्लत आयतुल्लाह नासिर हुसैन मूसवी, मौलाना सय्यद मोहम्मद जोनपुरी, मौलाना अली मोहम्मद बिन सुलतानुल औलमा, मौलाना सय्यद अली जवाद और मौलाना सय्यद अली नक़ी वगैरा।

सन 1285 हिजरी में शाहे अवध मोहम्मद अली शाह की तरफ़ से  इल्मी क़द्र दानी के उनवान से मुनासिब वज़ीफ़ा मुक़र्रर हुआ, उसी ज़माने में आपने “जवाहिरे अबक़रिया” नामी किताब तसनीफ़ की, सन 1264 हिजरी में क़ाज़ी उल क़ुज़ात के ओहदे पर फ़ाइज़ हुए और महकमे के लिए क़वानीन मुरत्तब किये गये, सन 1298 हिजरी में कलकत्ता आए तो आपको इफ़्तेखारूल औलमा और ताजुल औलमा का लक़ब दिया गया, मलका ए विकटोरया की जानिब से शमसुल औलमा का ख़िताब मिला।

आपको बचपन से ही इबादत का शोक़ और तूलानी सजदे करने की आदत रही, आपकी इसतजाबते दुआ ज़बान ज़दे खासो आम थी और आप साहिबे करामत भी थे, उसके चंद नमूने तजल्लीयात तारीखे में मज़कूर हैं, इंसाफ़ के ज़ेल में ये कहना कि हुकूमत की जानिब से जराइम की तहक़ीक़ और इजरा ए अहकाम के लिये इफ़ता का महकमा आपके सुपुर्द था।

 आपकी ज़िंदगी के बहुत से वाक़ेआत हैं जो पाकीज़ा और तय्यब ज़िंदगी की अक्कासी करते हैं, 15 सफ़र 1274 हिजरी की शदीद गर्मी और चिलचिलाती धूप पूरे लखनऊ शहर को झुलसा रही थी अचानक आपके घर के क़रीब वाले घर में आग लग गई और आग भड़कने की वजह से अहले खाना घर से बाहर ना निकाल सके, उस वक़्त आपने अल्लाह की बारगाह में बारिश के लिये दुआ की आसमान पर दूर दूर तक बादलों का नामो निशान ना था अचानक बादल का एक टुकड़ा उसी घर पर नमूदार होकर फैलने लगा और आनन फ़ानन बरसना शुरू कर दिया, इतनी बारिश हुई की आग बुझ गई और तमाम अहले खाना आग से अमान में आ गये, जब आग बुझ गई तो देखने में आया कि बारिश सिर्फ आग की जगह पर हुई बाक़ी जगह पहले की तरह ख़ुश्क ही है।

आपने तमाम मसरूफ़यित के बावजूद तीन सौ से ज़्यादा किताबें इल्मे तफ़सीर, हदीस, कलाम, फ़िक़ह, उसूल, मनतिक़, फ़लसफ़ा, हैअत, हिंदसा, सर्फ़ और नहव के उनवान पर तहरीर फ़रमाईं जिनमें: तफ़सीरे सूरा ए रहमान, सैफ़े मसलूल, शरीअते गर्रा, मआनी, बयान व ऊरूज़, अदब व तिब में तक़रीबन 60 तलीफ़ात और मुतफ़र्रेक़ात में 14 तालीफ़ात हैं, उनमें से बहुत सी किताबें अपनी नज़ीर आप हैं।

आप अरबी, फ़ारसी, और उर्दू के अज़ीम शायर थे, आपने तीनों ज़बानों में क़सीदा, मनक़बत, सोज़, सलाम, नोहा, मरसिया, ग़रज़ तमाम असनाफ़े सुख़न में तबा आज़माइ की है।

आपकी औलाद में: मौलाना सय्यद मोहम्मद साहब उर्फ़ वज़ीर, सय्यद हसन, मौलवी सय्यद हुसैन उर्फ़ साबिर, मौलवी सय्यद अमीर हसन, मौलवी सय्यद नूरुद्दीन, मुफ़्ती सय्यद मोहम्मद अली साहब और मुफ़्ती अहमद अली के अलावा चार बेटों के नाम लिये जा सकते हैं।

आखिरकार ये इलमो कमाल का रोशन अफ़ताब 25 रजब सन 1304 हिजरी में सरज़मीने शहरे लखनऊ पर गुरूब हो गया, चाहने वालों का मजमा आपके शारीअत कदे पर इकठ्ठा हो गया, दरया ए गौमती के किनारे गुस्ल व कफ़न हुआ, नमाज़े मगरिब के बाद औलमा व अफ़ाज़िल, तुल्लाब और मोमेनीन के अज़ीम इजतेमा की मौजूदगी में इमामबारगाह गुफ़रानमआब में मौलाना अबुल हसन उर्फ़ अब्बू साहब ने नमाज़े जनाज़ा पढ़ाई और फिर सुपुर्दे ख़ाक कर दिया गया।

माखूज़ अज़: नुजूमुल हिदाया, तहक़ीक़ो तालीफ़: मौलाना सैयद ग़ाफ़िर रिज़वी फ़लक छौलसी व मौलाना सैयद रज़ी ज़ैदी फंदेड़वी जिल्द-2 पेज-179 दानिशनामा ए इस्लाम इंटरनेशनल नूर माइक्रो फ़िल्म सेंटर, दिल्ली, 2019 ईस्वी।

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