हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार, मौलाना सुबहान अली ख़ान सन 1180 हिजरी में शहरे बरेली सूबा उत्तर प्रदेश पर पैदा हुए, मोसूफ़ के वालिद “अली हुसैन कमबोह” के नाम से मारूफ़ थे।
अल्लामा अब्दुल हई के बक़ोल: मौलाना सुबहान अली के ख़ानदानी बुजुर्ग क़ाइन (खुरासान) ईरान से हिंदुस्तान आए थे, नवाब सुबहान अली ख़ान का शुमार अपने दौर के मशहूर व मारूफ़ और बुज़ुर्ग औलमा मे होता है, मोसूफ़ इलमे मनतिक, फ़लसफ़ा, अदब, तफ़सीर, हदीस और फ़िक़ह वगैरा में क़ाबिले रश्क महारत के मालिक थे। मौलाना सुबहान अली ख़ान के अल्लामा शेख़ मोहम्मद हज़ीन लाहेजी और अल्लामा तफ़ज़्जुल हुसैन ख़ान से बहुत गहरे रवाबित थे, गुफ़रानमआब अल्लामा सय्यद दिलदार अली मौलाना सुबहान अली का बहुत एहतराम करते थे, मुफ़्ती मोहम्मद क़ुली, मुफ़्ती मोहम्मद अब्बास शूस्तरी, सुलतानुल औलमा सय्यद मोहम्मद बिन गुफ़रानमआब वगैरा ने जो मौलाना सुबहान अली के नाम जो ख़त लिखे हैं उनसे समझ में आता है कि मौलाना मोसूफ़ कितने बासलाहियत, मुक़द्दस, और अहम शख्सियत के मालिक थे।
किताब “हसीनुल मतीन” में है कि मौलाना सुबहान अली, फ़ाज़िले कामिल, फ़सीह, अदीब, आबिद, नमाज़े शब के पाबंद और कसीरुल बुका थे, इल्मे तिब, रियाज़ी और कलाम में माहिर थे, उनका इल्म व तक़द्दुस इस बात का सबब क़रार पाया कि बादशाह और वोज़रा से गहरे ताल्लुक़ात रहे।
कुल्लियाते नसरे गालिब में मौलाना मोसूफ़ के तीन ख़ुतूत देखने में आए हैं, मुफ़्ती मोहम्मद अब्बास शूश्तरी ने मोसूफ़ की शान में क़सीदा लिखा है, मौलाना मोसूफ़ की तहरीर में अरबी, फ़ारसी के ख़ुतूत भी नज़र आये हैं जिनसे अंदाज़ा होता है कि आप मुखतलिफ़ ज़बानों में माहिर थे, उनमें से अरबी, फ़ारसी, इंगलिश और इबरी का तज़किरा किया जा सकता है।
मौलाना पहले तो ग़ाज़ी उद्दीन हैदर के उस्ताद रहे उसके बाद नसीरुद्दीन हैदर के ज़माने में हुकूमत कि नियाबत, वज़ारत, नज़ारत और सरपरस्ती भी आप ही के ज़िम्मे थी और उस ज़िम्मेदारी की बाबत हुकूमत से पचास हज़ार रुपए मिलते थे, औलमा अरबाबे रियासत आपसे मशवरा करते थे आप अपना हर काम निहायत एहतियात और दूर अंदेशी के साथ अंजाम देते थे।
सन 1243 हिजरी में जब “आगा मीर” पर सियासी ज़वाल आया तो मौलाना सुबहान अली के खिलाफ़ भी साज़िश रची गई जिसके सबब मोसूफ़ को हुकूमती उमूर से माज़ूल कर दिया गया लेकिन जब गलत फ़हमी का इज़ाला हुआ तो मौलाना को उनके मनसब पर दोबारा बहाल कर दिया गया और आप फिर इसी तर्ज़ पर मशवरे देने लगे।
मौलाना सुबहान अली अतबाते आलिया और बैतुल्लाहिल हराम की ज़ियारात से मुशर्रफ़ हुए, आप मुखतलिफ़ उलूम में माहिर थे चुनांचे मुखतलिफ़ मोज़ूआत पर किताबें भी तालीफ़ कीं जिनमें से अक्सर किताबें जंगे आज़ादी की नज़्र हो गईं और किताबें घर तबदील करते वक़्त ज़ाया हो गईं।
सन 1857 ईस्वी की जंग में औलमा को बहुत ज़्यादा नुक़सान उठाना पड़ा, उस दौरान मौलाना सुबहान अली भी नुक़सान से दोचार हुए, लेकिन “हिम्मते मरदाँ मददे ख़ुदा” के तहत उन्होने शिकस्त को क़ुबूल नहीं किया और अपने काम को जारी व सारी रखा, आपने अवामुन्नास के लिये जो कारे ख़ैर अंजाम दिये हैं उनमें से “खैरया ए अवध” का नाम रोज़े रोशन के मानिंद वाज़ेह है।
अगरचे हुकुमते अवध का ज़माना बहुत कम था लेकिन इस मुख़तसर अरसे को गनीमत शुमार करते हुए दीन के ख़िदमत गुज़ारों ने क़ौमी ख़िदमत के हवाले से किसी क़िस्म की कोताही नहीं की बल्कि आपने हत्तल इमकान खिदमात अंजाम दीं, मतब क्लीनिक, हास्पिटल, स्कूल, नश्रो इशाअत के इदारे और तहक़ीक़ी मराकिज़ बनाये, उनकी खिदमात में ज़रुरतमंदों के लिए घर बनवाना, इमामबाड़े, बागात वगैरा भी क़ाबिले ज़िक्र हैं।
18 ज़िलहिज्जा सन 1234 हिजरी की मुबारक तारीख़ में ग़ाज़ीउद्दीन हैदर की रसमे ताजपोशी अंजाम पाई और उनकी बादशाहत का ऐलान हुआ, इस ज़माने में सबसे अहम काम जो मोलाना सुबहान अली ने अंजाम दिया वो ये था की जो अमवाल अंग्रेज़ों के ज़रिये बरतानया पोहुंच रहा था आपने उसका रुख़ ज़रूरतमंदों की तरफ़ मोड दिया और वो रुक़ुमात उन तक पोंहचाई, ये काम मोसूफ़ ने इस लिए अंजाम दिया की सन 1299 हिजरी में बादशाहे यमीनुद्दौला की रहलत हो गई तो उसके माल व मनाल पर फ़िरंगी कारिंदे चील जैसी आंखे गाड़े हुए थे लिहाज़ा मौलाना ने उसके ज़रिये मोहताजों की मदद फ़रमाइ।
मोहम्मद शाह कमबोह का बयान है: मैं सुबहान अली ख़ान का पोता हूँ, एक अरसे से कर्बला में मुक़ीम हूँ, यहाँ पर जमींदार हूँ, उन्होने ये जाएदाद शाह गाज़ी उद्दीन के ज़रिये वक़्फ़ कराई थी।
मौलाना सुबहान अली ख़ान ने काफ़ी तादाद में इल्मी सरमाया छोड़ा जिसमें से : शमशुस ज़ोहा, शरहे हदीसे असर, हदीसे सक़लैन, हदीसे हौज़, लताफ़तुल मक़ाल और जवाबे रिसाला ए मकातीबे हैदर अली वगैरा के नाम लिये जा सकते हैं ।
ख़ुदा ने मौलाना मोसूफ़ को 5 नेमतों से नवाज़ा जिनके असमा कुछ इस तरह हैं: अहसान हुसैन, मुज़फ्फ़र हुसैन, फ़िदा हुसैन, रज़ा हुसैन और पियारे साहब ।
आखिरकार मौलाना सुबहान अली ख़ान सन 1264 हिजरी में जहाने फ़ानी से जहाने बाक़ी की तरफ़ कूच कर गये और आपकी वसीयत के मुताबिक़ नमाज़े जनाज़ा की अदाईगी के बाद करबलाए मोअल्ला इराक़ में सुपुर्दे ख़ाक कर दिया गया।
माखूज़ अज़: नुजूमुल हिदाया, तहक़ीक़ो तालीफ़: मौलाना सैयद ग़ाफ़िर रिज़वी फ़लक छौलसी व मौलाना सैयद रज़ी ज़ैदी फंदेड़वी जिल्द-9पेज-116 दानिश नामा ए इस्लाम इंटरनेशनल नूर माइक्रो फ़िल्म सेंटर, दिल्ली, 2023
ईस्वी।