हौज़ा न्यूज़ एजेंसी, अल्लामा सय्यद अहमद अली इबने हैदर सन १२०६ हिजरी मुताबिक़ १७९२ई॰ मोहम्मदाबाद ज़िला आज़मगढ़ के एक इल्म दोस्त घराने में पैदा हुए , इब्तेदाई तालीम अपने वतन मे हासिल करके १३ साल की उम्र में फ़ैज़ाबाद का सफ़र किया और वहाँ मौलवी सय्यद अहमद अली देवघटवी से सर्फ़ वा नहव हासिल किया, सन १२२५हिजरी में लखनऊ पोंहचे और वहाँ रहकर मुखतलिफ़ उलूम वा फुनून हासिल किये, फलसफ़ा वा मनतिक़ मुफ़्ती ज़हुरुल्लाह से फ़िक़ह, उसूल,हदीस और मंक़ूलात गुफ़रानमआब से पढे और सय्यदुल औलमा सय्यद हुसैन बिन दिलदार अली के हमदर्स क़रार पाये,७ साल की क़लील मुद्दत में ही अपनी ज़हानत वा ज़कावत और कोशिश की बिना पर मंज़िले कमाल तक पहुँच गये।
फ़ाज़िले फैज़ाबादी सय्यद महदी फ़रमाते हैं के मोसूफ़ उम्र के एतबार से गुफ़रानमआब के सबसे कमसिन और रुतबे के एतबार से सबसे बरतर शागिर्द थे मौलाना अब्दुलहई ने अपनी किताब “नुज़हतुल खवातिर” में इस तरह नक्ल किया के मोसूफ़ ने गुफ़रानमआब की ज़िंदगी के आख़िरी अय्याम तक मुखतलिफ़ उलूम जैसे: हदीस, फ़िक़ह, उसूले दीन और उसूले फ़िक़ह हासिल किये और उन तमाम उलूम में दूसरे शागिर्दों से ज़्यादा महारत हासिल की,मुफ़्ती मोहम्मद अब्बास शूश्तरी ने उनके बारे में “ओराकुज़्ज़हब” में इस तरह नक्ल किया है के मोसूफ़ इलमो अमल में अपने उस्ताद गुफ़रानमआब के पैरोकार फ़ाज़िले कामिल,सबसे ज़्यादा फ़सीह वा बलीग, बुर्दबार, बावक़ार, ग़रज़ आप में इतने कमाल पाये जाते थे के क़लम और ज़बान फ़ज़ाइल बयान करने से क़ासिर हैं, गुफ़रानमआब की रहलत के बाद तबलीग, नश्रो इशाअत में गुफ़रानमआब के फ़रज़ंद सय्यदुल औलमा के शाना बा शाना रहे लिहाज़ा सय्यदुल औलमा की निगाह में आप एक बहतरीन दोस्त, इलमे फ़िक़ह में सबसे मोअस्सक़, इरादे में मोहकम,इलमे कलाम में सबसे ज़्यादा आलिम,मुआशरे में सबसे ज़्यादा अदिल और तक़वे में सबसे ज़्यादा परहेजगार क़रार पाये।
मोसूफ़ के असातेज़ा में गुफ़रानमआब के अलावा मुफ़्ती मोहम्मद अब्बास, सय्यद अब्दुल अली और मुफ़्ती ज़हूरुल्लाह के अस्मा सरे फेहरिस्त हैं: अल्लामा अहमद अली लखनऊ के ज़बरदस्त और बासलाहियत उस्ताद माने जाते थे पहले शाही मदरसे में रहे गदर के बाद लोग घर पर आकर मुखतलिफ़ उलूम के दर्स लेते थे, मशहूर है के आपका दर्स किताब का तरजमा नहीं बल्कि अस्ल मसअले की तहक़ीक़ होती थी,अस्ल मसअले के पहलू बयान करने के बाद अपनी राए भी बयान करते थे, 53 साल की उम्र में मदरसे सुलतानया के इफ़्तेताह के बाद उसके दूसरे मुदर्रिसे आला मुंतखब किए गए ओर इस ओहदे पर रहते हुए १४ साल दीने इस्लाम की ख़िदमत अंजाम दी ओर तुल्लाब आपके वुजूदे मुक़द्दस से फ़ैज़याब होते रहे जो रुतबा आपको मिला वो किसी ओर उस्ताद को हासिल ना हो सका।
मोसूफ़ क़िराअत में यगाना ए रोज़गार थे, तफ़सीर वा हदीस, फ़िक़ह वा उसूल और मंतिक वा फ़लसफ़े में उस्तादाना महारत के अलावा अरबी अदब पर मुकम्मल तसल्लुत रखते थे।
आपने तसनीफ़ वा भी नुमाया किरदार अदा किया, शरहे रिसाला ए इमाम रज़ा, अररद्दों अलल अख़बारया, रहलतुल हिजाज़या सफ़रे बराकात आपकी मशहूर तसानीफ़ हैं इसके अलावा बादशाहे अवध ने हुज़ूरे अकरम स; ओर आइम्मा ताहेरीन अ; की सवानेह हयात लिखने का हुक्म दिया तो सुलतानुल ओलमा ने आप ही को मुंतखब किया आपने इस मोज़ू पर किताब लिखी जिसको तोहफ़तुल मोजेज़ात के नाम से पहचाना जाता है।
सन१२७४ हिजरी में आपने सफ़रे हज फ़रमाया उस सफ़र में मक़ामाते मुक़ददेसा की ज़ियारत से मुशर्रफ़ हुए और शेख़ मुर्तज़ा अंसारी, मिर्ज़ा अली नक़ी तबातबाई हाएरी और मिर्ज़ा लुत्फ़ुल्लाह माज़नदरानी से मुलाक़ात की इसी दरमियान किसी मसअले के बारे में मुबाहेसा हुआ तो मोसूफ़ ऐसी दलीलें लाये के इस नशिस्त के तमाम मुजतहेदीन हैरत में पड़ गए और आपकी इल्मी लियाक़त के मोतरिफ़ हो गये।
आप आलिम होने के साथ साथ साहिबे करामत भी थे चुनांचे मुफ़्ती मोहम्मद अब्बास शूश्तरी ने आपसे रूनुमा होने वाली एक करामत का वाक़ेआ इस तरह नक्ल किया है के गुफ़रानमआब की रहलत को कुछ अरसा गुज़रा था मैंने ख़्वाब में देखा गुफ़रानमआब आदत के मुताबिक़ गाऊ तकया लगाए तशरीफ़ फ़रमा हैं ओर मैं होज़ के पास खड़ा हूँ मेरा नाम लेकर आवाज़ दी मैं क़रीब गया तो फ़रमाया,हमारे फ़रज़ंद सय्यदुल ओलमा से कह देना के सो दीनार जो तुम्हारे पास मैंने रखवाए थे उनपर एक साल गुज़र गया है ज़कात वाजिब हो गयी है मैंने कहा बेहतर, जब बेदार हुआ तो सय्यदुल ओलमा की खिदमत में हाज़िर हुआ और ये ख़्वाब बयान किया तो मोसूफ़ ने फ़रमाया इस रक़म का इल्म मेरे ओर मेरी वालेदा के सिवा किसी को था ही नहीं, मैंने इस रक़म से ज़कात निकालना चाही थी लेकिन भूल गया।
अल्लाह ने आपको ५ नेमतों से नवाज़ा जिनके असमा कुछ इस तरह हैं: हकीम सय्यद मोहम्मद, मौलवी सय्यद अली, सय्यद अब्दुल हुसैन, मोलवी सय्यद जाफ़र हुसैन, मोलवी सय्यद मोहम्म्द सादिक़।
आखिरकार ये इलमो अमल का माहताब सन:१२९५ हिजरी मुताबिक़ १८८७ई॰में सरज़मीने लखनऊ पर गुरूब हो गया नमाज़े जनाज़ा के बाद मजमे की हज़ार आहो बुका के हमराह “कर्बला अमीनुद्दोला” लखनऊ में ज़ेरे क़ुब्बा सुपुर्दे ख़ाक कर दिया गया।
माखूज़ अज़: नुजूमुल हिदाया, तहक़ीक़ो तालीफ़: मौलाना सैयद ग़ाफ़िर रिज़वी फ़लक छौलसी व मौलाना सैयद रज़ी ज़ैदी फंदेड़वी जिल्द-१ पेज-69
दानिशनामा ए इस्लाम इंटरनेशनल नूर माइक्रो फ़िल्म सेंटर, दिल्ली, २०१९ ईस्वी।