۴ آذر ۱۴۰۳ |۲۲ جمادی‌الاول ۱۴۴۶ | Nov 24, 2024
आयतुल्लाह अबुल हसन मीरन हैदराबादी

हौज़ा / प्रस्तुति: दानिशनामा इस्लाम, इंटरनेशनल नूर माइक्रोफिल्म सेंटर दिल्ली काविश: मौलाना सैयद गाफ़िर रिज़वी छोलसी और मौलाना सैयद रज़ी जैदी फंदेड़वी

हौज़ा न्यूज़ एजेसी की रिपोर्ट अनुसार, आयतुल्लाह अबुल हसन मीरन हैदराबादी सन १२८० हिजरी मुताबिक़ १८६३ई॰ में सरज़मीने “हैदराबाद” पर पैदा हुए, आपके वालिद का नाम “मोलाना सय्यद नियाज़ हसन” था, आप बहुत ज़हीन ओर हाज़िर जवाब थे ओर इशाअते मज़हब का होसला मीरास में मिला था, इब्तेदाई तालीम घर पर ही हासिल की ,सर्फ़ वा नहव ओर मनतिक़ मोलाना “अकाबिर हुसैन ज़ैदपुरी” से पढ़ी, १८८२ई॰­ में हुसूले इल्म के लिए लखनऊ तशरीफ़ ले गये ओर वहाँ रहकर अपने मामू “मोलाना सय्यद मोहम्मद अब्बास” की ख़िदमत में ज़ानु ए अदब तै किये लेकिन आपके वालिदे माजिद ने जल्द ही बुला लिया, हैदराबाद आकर अपने वालिद ओर “मोलाना सय्यद निसार हुसैन” (हुसामुल इस्लाम) की ख़िदमत में रहकर इल्मे माक़ूलात वा मंक़ूलात को मुकम्मल किया।

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तालीम से फ़रागत के बाद आप हुकूमत के “महकमा ए रजिस्ट्रेशन” में सब रजिस्ट्रार मुक़र्रर हुए, १३०९ हिजरी में अपने वालिदे माजिद के इंतेक़ाल के बाद मुलाज़ेमत तर्क करके आला तालीम की ग़रज़ से नजफ़ तशरीफ़ ले गए ओर वहाँ चोदह साल मुक़ीम रहे, आयतुल्लाह सय्यद काज़िम तबातबाई यज़दी (साहिबे उर्वतुल वुसक़ा), आयतुल्लाह शेख मोहम्मद मामक़ानी ओर आयतुल्लाह शेहरिस्तानि के दर्से ख़ारिज के शिरकत करके इजाज़ात हासिल किये, चुनांचे आयतुल्लाह शेख़ मोहम्मद हसन मामक़ानी ने आपके इल्मो फज़्ल का एतराफ़ करते हुए इस तरह तहरीर फ़रमाया के आप साहिबे इल्मो फज़्ल हैं, ओर हाकिमे शरा की इजाज़त के तहत उमूरे शरिया हसबिया यानि सहमे इमाम, ज़कात, यतीमों का माल ओर वो तर्का जिसका कोई वारिस ना हो उन सब में हक़्क़े तसर्रुफ़ रखते हैं ओर ख़र्च करने में साहिबे इजाज़ा हैं ओर अहले इल्म पर लाज़िम है के उनसे इल्मी इसतेफ़ादा करें अवाम पर लाज़िम है के उनकी इक़तेदा करें ओर उनकी हिफाज़त में एहतियाती तदाबीर अंजाम दें।

इसी तरह आयतुल्लाह फ़ाज़िले शहरिस्तानी अपने इजाज़े में तहरीर फ़रमाते हैं: आप एक मुद्दत तक नजफ़े अशराफ़ में आला तालीम हासिल करके उस मक़ाम पर पोंहचे के आपका शुमार जहाने तशय्यो के

बुज़ुर्ग ओलमा में होता है, चूंके अब ये अपने वतन वापस पलट रहे हैं मैं इनको अपना नाइबे ख़ास बना रहा हूँ ओर ये मेरी तरफ़ से मामूर हैं उन उमूर में जिनमें मुजतहिदे जामे उश शराइत की ज़रुरत होती है, मसलन यतीमों पर विलायत, वो तर्का जिसका कोई वारिस ना हो ओर ओक़ाफ़े आम्मा जिसका कोई ख़ास मुतवल्ली ना हो उसमें उनको हक़्क़े तसर्रुफ़ हासिल है ओर सहमे इमाम हासिल करने ओर उसको मुसतहक़्क़ीन पर ख़र्च करने में साहिबे इजाज़ा हैं, उन तमाम ज़िम्मेदारयों को निभाने के एवज़ आप ख़ुदा ओर रसूल की जानिब से अजरो सवाब के मुसतहक़ हैं पस तमाम लोगों पर लाज़िम है उनका एहतराम करें।

अल्लामा मीरन “आयतुल्लाह सय्यद अबुल हसन इसफ़हानी” के क़रीबी दोस्त, हमदर्स ओर हम शक्ल भी थे, चुनांचे एक मर्तबा कुछ बद्दू अरबों ने आपको “सरकार इसफ़हानी” समझ कर दस्त बोसी शुरू कर दी, बड़ी मुश्किल से उन लोगों को यक़ीन दिलाया के आप इसफ़हानी नहीं बल्के दयारे हिन्द के मुजतहिद हैं।

इराक़ से वापस आकर अपने वालिदे मजिद के जानशीने बरहक़ क़रार पाये ओर दकन के तमाम मोमेनीन के मरजा बने ओर आपकी ज़ात से मोमेनीन मुस्तफ़ीज़ होते रहे, सिलसिलए तदरीस शुरू किया, जो मस्जिद आपके वालिद ने बनवायी थी वो मुंहदिम हो गयी थी आपने उसको अज़ सरे नो तामीर कराया इस मस्जिद में इमामे जुमा वा जमाअत की हैसियत से रहे, नमाज़े मगरेबैन के  बाद रोज़ाना दर्से फ़िक़ देते ओर नमाज़े जुमे के बाद वाज़ फ़रमाते, ये सिलसिला ता हयात जारी रहा, दर्स में किसी रुकावट को बर्दाश्त नहीं किया , तक़रीर में दिलकशी ओर तासीर भी थी, वाज़ निहायत मुदल्लल बयान फ़रमाते, हक़गोई ओर बेबाकी आपका आईन था, आप इस्लामी अखलाक़ का पैकर थे।

इन तमाम मसरूफ़यात के बावजूद आपने तसनीफ़ो तालीफ में नुमाया किरदार अदा किया, आपके आसार में मखज़ने तहारत, क़वाएदुल मीरास, वरउस्सालेहीन, कलमा ए तय्यबा ओर “तक़्रीबुश शरा माआ इजाज़ात” के नाम सरे फेहरिस्त हैं।

आपके शागिर्दों में नवाब सय्यद अब्दुल्लाह, हकीम मोहम्मद अली फ़ाज़िल, सय्यद हसन करबलाई , आगा मोहसिन, सय्यद गियासुद्दीन शूस्त्री, सआदत अली , डाक्टर शुजाअत अली बेग , सय्यद तक़ी हसन वगैरा के नाम लिये जा सकते हैं।

४० मर्तबा इराक़ का सफ़र किया ओर ज़ियारात से मुशर्रफ़, ७ मर्तबा हज किया ओर १४ मर्तबा मशहदे मुक़द्दस की ज़ियारत की, अल्लाह ने आपको ५ नेमतों से नवाज़ा जिनके असमा कुछ इस तरह हैं: सय्यद सिराजुल हसन मुजतहिद, सय्यद युसुफ़ हुसैन उर्फ़ अली आगा, आगा सय्यद जाफ़र हुसैन उर्फ़ अली आगा, आगा सय्यद जाफ़र उर्फ़ जाफ़र आग़ा, सय्यद ज़ियाउल हसन उर्फ़ ज़िया आगा (मुजताहिद), सय्यद असगर हुसैन।

आख़िरकार ये इल्मो अमल का माहताब १३ जमादियुस्सानी १३४० हिजरी॰ मुताबिक़ १९२२ई॰ शबे मंगल मरज़े यरक़ान में मुबतला होकर गुरूब हो गया, इंतेक़ाल के वक़्त आपके लबो पर या अली अदरिकनी था, नमाज़े जनाज़ा के बाद “क़ब्रिस्ताने दायरा ए मीर मोमिन हैदराबाद” में सुपुर्दे ख़ाक कर दिया गया।  

माखूज़ अज़: नुजूमुल हिदाया, तहक़ीक़ो तालीफ़ : मौलाना सैयद ग़ाफ़िर रिज़वी फ़लक छौलसी व मौलाना सैयद रज़ी ज़ैदी फंदेड़वी जिल्द-४ पेज-११दानिशनामा ए इस्लाम इंटरनेशनल नूर माइक्रो फ़िल्म सेंटर, दिल्ली, २०२० ईस्वी।

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