हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार, मौलाना सय्यद तासीर हुसैन जैदी 1291 हिजरी में सरज़मीने फंदेडी सदात ज़िला मुरादाबाद सूबा उत्तरप्रदेश पर पैदा हुए, आपके वालिद सय्यद अशरफ अली निहायत शरीफ़ुन नफ़्स और इल्म दोस्त इंसान थे।
आप बचपन ही से निहायत ज़हीन और ज़हमतकश शख़्सियत के मालिक थे, इबतेदाई तालीम अपने वतन में हासिल की, असरी तालीम के लिये अमरोहा का रुख़ किया और हुसूले तालीम में मशरूफ़ हो गये, आप बहुत लगन और गोरो फ़िक्र के साथ किताबों को पढ़ते थे, स्कूल में सब बच्चों से मुमताज़ थे उसी के पेशे नज़र विज़ारते तालीम से आपको स्कॉलर शिप मिलती थी, सन 1891 ई॰ में मिडल की सनद हासिल की और उसी साल “मदर्सए मनसबया मेरठ” की जानिब आज़िमे सफ़र हुए।
वहाँ रहकर जय्यद असातेज़ा की ख़िदमत में ज़ानु ए अदब तै किए इल्मे नहव, मनतिक़, फलसफ़ा कलाम व तफ़सीर वगैरा में महारत हासिल कर ली थी, 18 अक्टूबर 1899 ई॰ में लखनऊ का रुख़ किया और “मदरसे नाज़मिया” में नजमुल मिल्लत अयतुल्लाह नजमुल हसन के सरपरस्ती में मारूफ़ औलामाए किराम से अदबयात, फ़िक़ह व उसूल की तालीम हासिल की, मोसूफ़ के लिये लखनऊ की फिज़ा साज़गार नही थी इस लिये आपने मुरादाबाद में मौलाना “मुज़फ्फ़र अली ख़ान” की ख़िदमत में रहकर तालीमी सिलसिले को जारी रखा जब इम्तेहान का वक़्त आता तो लखनऊ पोहुंच कर इम्तेहान देते और अच्छे नंबरों से कामयाबी हासिल करते थे और इस तरह तालीम मुकम्मल करके मुमताज़ुल अफ़ाज़िल की सनद हासिल की।
फ़ारेगुत तहसील होने के बाद मौलाना तासीर हुसैन ने तदरीसी सिलसिला क़ायम किया मदरसे अलिया रामपुर और मदरसे नाज़मिया लखनऊ में रहकर सैंकड़ों शागिर्दों की तरबियत की जिनमें से: मौलाना अनसार हुसैन फंदेडवी फ़ाज़िले मशरिक़यात और सदरुल मिल्लत मौलाना सय्यद मुजतबा नोगाँवी के असमा सरे फेहरिस्त हैं।
मोसूफ़ निहायत मुत्तक़ी, परहेज़गार, नेक सीरत मुजस्समा ए अखलाक़ थे दुनयावी खुराफ़ात और बेहूदगियो से बहुत दूर थे, आयतुल्लाह सय्यद नजमुल हसन आपकी परहेज़गारी के क़ायल थे, उन्होंने मदरसे नाज़मिया के किताबखाने, बावर्ची खाने और मदरसे का पूरा हिसाब व किताब आपके ज़िम्मे कर दिया।
इल्मी हलक़े में आपका बहुत एहतराम था, जब आयतुल्लाह नजमुल हसन ने अतबाते आलियात की ज़ियारत का क़स्द किया तो मोसूफ़ को भी साथ ले जाने का इसरार किया लिहाज़ा आप तामीले हुकम में सफ़र के लिये आमादा हुए और इराक़ पहुँच कर ज़ियारात से मुशर्रफ़ हुए, इराक़ से वापसी पर नजमुल मिल्लत के हुक्म पर मदरसे आलिया रामपुर में फ़िक़ह के उस्ताद मुक़र्रर हुए और अपने वज़ीफ़े को बाखूबी अंजाम दिया।
बहुत ज़्यादा मसरूफ़यात के बावजूद तसनीफ़ व तालीफ़ से वाबस्ता रहे, मोसूफ़ के मज़ामीन मजल्लात में नश्र होते रहते थे, आपने अपने वतन में एक किताबखाना भी बनाया था जिसमें क़लमी किताबों के अलावा मतबूआ किताबों का भी बहुत बड़ा ज़ख़ीरा था उसमें आपके क़लमी आसार मोजूद थे, मोसूफ़ की रहलत के बाद किताबों की हिफाज़त ना हो सकी तमाम किताबें दीमक की नज़्र हो गईं इसी लिये आपके पोते ने किताबें कुएं के सुपुर्द कर दीं, आपने अपने वतन के शजरे का एहया किया जिसको उनके बेटे “सय्यद मज़हर हुसैन” ने महफूज़ रखा और उसी नुस्खे से उनके भाई “मौलाना डाक्टर ज़फ़र अब्बास” ने सिलसिला ए नसब को आगे बढ़ाया, अब उसकी कापी बहुत से लोगों के पास मोजूद है।
अल्लाह ने आपको तीन बेटे अता किये जिनको सय्यद मज़हर हुसैन, सय्यद क़ायम हुसैन और मौलाना डाक्टर ज़फ़र अब्बास के नाम से पहचाना गया और उनके बच्चे कराची ओर सांगली महाराष्ट्र में आबाद हैं।
आख़िरकार ये इल्म व अमल का दरख्शा आफ़ताब सन 1351 हिजरी बामुताबिक़ 1932ई॰ में गुरूब हो गया, औलमा, तुल्लाब, दनिशवरान और मोमेनीन की कसीर तादाद ने तशीय्ये जनाज़ा में शिरकत की और फंदेडी में मोजूद आपके अबाई क़ब्रिस्तान में सुपुर्दे ख़ाक कर दिया गया।
माखूज़ अज़: नुजूमुल हिदाया, तहक़ीक़ो तालीफ़: मौलाना सैयद ग़ाफ़िर रिज़वी फ़लक छौलसी व मौलाना सैयद रज़ी ज़ैदी फंदेड़वी जिल्द-1पेज-124 दानिशनामा ए इस्लाम इंटरनेशनल नूर माइक्रो फ़िल्म सेंटर, दिल्ली, 2023 ईस्वी।