बुधवार 1 अक्तूबर 2025 - 14:20
भारतीय धार्मिक विद्वानों का परिचय | मौलाना डॉक्टर कल्बे सादिक

हौज़ा /पेशकश: दनिश नामा ए इस्लाम, इन्टरनेशनल नूर माइक्रो फ़िल्म सेंटर दिल्ली

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार, डॉक्टर कल्बे सादिक एक बैनुल अक़वामी शोहरत याफ़्ता इस्लामी स्कॉलर, मुफ़क्किर, मुसलेह, माहिर-ए-तालीम और मुबल्लिग थे। वो लखनऊ, उत्तर प्रदेश के एक इंतेहाई मोअज्ज़ज़ शिया खानदाने इजतेहाद में 22 जून 1939 को पैदा हुए। आपके वालिद मौलाना सैयद कल्बे हुसैन अपने वक़्त के शोहरत याफ़्ता इस्लामी स्कॉलर और मुबल्लिग थे।

मौलाना ने इब्तिदाई तालीम अपने घर पर ही अपने वालिद से हासिल की। इस के बाद हिन्दुस्तान की मारूफ़ दरसगाह “जामिआ नाज़िमिया” में दाख़िला लिया जहाँ उस वक़्त के जलीलुलक़द्र उस्ताद मौलाना मुहम्मद सादिक़, मौलाना सैयद रसूल अहमद और सरकार मुफ्ती-ए-आज़म अहमद अली ताबा सराह वग़ैरा से क़सब-ए-फैज़ किया और मदरसे की आख़िरी सनद मुमताज़ुल अफ़ाज़िल अच्छे नंबरों से हासिल की। इस के अलावा लखनऊ का मशहूर मदरसा सुलतानुल मदारिस से भी सदरुल अफ़ाज़िल की सनद हासिल की।

उस के बाद आपने अलीगढ़ का रुख़ किया और वहाँ मुस्लिम यूनिवर्सिटी से अर्बी अदब में पीएचडी की। मौलाना को अ़रबी के अलावा उर्दू, फ़ारसी, अंग्रेज़ी और हिंदी ज़बानों पर भी उरूज हासिल था।

वो अपनी तक़रीरों में अम्न, इत्तेहाद, भाईचारा और इत्तेहाद-ए-बैनुल-मुस्लिमीन पर बहुत ज़ोर देते थे। डॉक्टर कल्बे सादिक की निगाह में वक़्त की बहुत ज़्यादा अहमियत थी। जब कभी उन से तक़रीर या मजलिस के लिए कहा जाता, तो आप वक़्त-ए-मुअय्यन पर हाज़िर हो जाते और बग़ैर किसी का इंतेज़ार किए ख़िताब शुरू कर देते थे, ख़्वाह एक या दो सामेईन ही क्यों न हों।

उन्होंने इस्लामी तालीमात से मुताल्लिक़ तक़रीरें, मजालिस और लेक्चर देने के लिए पूरी दुनिया का सफ़र किया। उनको तमाम मज़ाहिब के लोग पसंद करते थे। अगरचे उनका ताल्लुक़ शिया मस्लक से था लेकिन वो तमाम इस्लामी फ़िरक़ों में यकसां तौर पर क़ाबिल-ए-एहतराम थे और हिन्दुस्तान की सब से बड़ी समाजी व मज़हबी तंज़ीम ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड  के नायब सदर के ओहदे पर फ़ाइज़ थे।


सबके साथ मिल-जुल कर पुरअमन ज़िंदगी गुज़ारना उनकी ज़िंदगी के बुनियादी उसूलों में से एक रहा है।
वो हमेशा इस बात पर अफ़सोस करते थे कि मुसलमान तालीमी, समाजी और मआशी मैदानों में बहुत पीछे रह गए हैं,
और जहालत, ग़ुरबत ने उन्हें घेर रखा है।

उन्होंने बहुत ग़ौर व फ़िक्र के बाद ये नतीजा अख़्ज़ किया कि मुसलमानों की पसमान्द्गी की असल वजह तालीम और इल्म से दूरी है।
उस के बाद डॉक्टर कल्बे सादिक़ ने तालीम और इल्म को जदीद तर्ज़ पर फैलाने का अज़्म किया और जहालत के ख़िलाफ़ एक तवील जंग लड़ी। ये उनकी ज़िंदगी का मक़सद बन गया।

आप ने समाज में तालीमी तहरीक शुरू की और ला-इल्मी के अंधेरों को दूर करने में कोई कसर नहीं छोड़ी।
आप ने 18 अप्रैल 1984 को ज़रूरतमंद तलबा को तालीमी इमदाद और वज़ीफ़े देने के लिए तौहीदुल मुस्लेमीन ट्रस्ट क़ायम किया।
ये ट्रस्ट समाज के इंतिहाई मुस्तहक़ और पसमानदा तलबा को मेयारी तालीम मुफ़्त फ़राहम कराता है।
हिन्दुस्तान के मुख़्तलिफ़ शहरों में तलबा मेयारी तालीम हासिल कर रहे हैं।

इस ट्रस्ट के तहत डॉक्टर कल्बे सादिक़ ने लखनऊ में एक मुकम्मल मुफ़्त तालीमी मरकज़ क़ायम किया है
जो यूनिटी मिशन स्कूल के नाम से जाना जाता है।

सर सय्यद अहमद ख़ां के बाद किसी भी मुस्लिम रहनुमा ने, मुस्लिम समाज में जदीद तालीम और साइंसी मिज़ाज फैलाने की इतनी कोशिश नहीं की जितनी डॉक्टर कल्बे सादिक ने की है।

आप के तालीमी, रिफाही और तामीरी उमूर की तफ़सील यूं है:
तौहीदुल मुस्लेमीन ट्रस्ट, यूनिटी कॉलेज लखनऊ, यूनिटी मिशन स्कूल लखनऊ, यूनिटी इंडस्ट्रियल ट्रेनिंग सेंटर लखनऊ, यूनिटी पब्लिक स्कूल इलाहाबाद, एम-यू-कॉलेज अलीगढ़, यूनिटी कंप्यूटर सेंटर लखनऊ, इमाम ज़ैनुल आबेदीन चैरिटेबल हॉस्पिटल लखनऊ, यूनिटी फ़्री एजुकेशन लखनऊ, जौनपुर, जलालपुर, इलाहाबाद, बाराबंकी, मुरादाबाद, अलीगढ़ वग़ैरा।

मौलाना कल्बे सादिक़ “ईरा मेडिकल कॉलेज” के अध्यक्ष और ऑल इंडिया शिया कॉन्फ़्रेंस के जनरल सेक्रेटरी थे। इसके अलावा वे अंजुमने वज़ीफ़ा ए सादात मोमिनीन के मिंबर भी थे।
वे अपार गुणों के स्वामी थे। किसी भी व्यक्ति की क्षमता को परखने में उन्हें ज़्यादा समय नहीं लगता था। यदि मौलाना यह समझ लेते थे कि यह व्यक्ति उनके या समाज के लिए उपयोगी हो सकता है, तो वे किसी भी हाल में उसे अपना लेते थे।
मौलाना कल्बे सादिक साहब जीवन भर केवल शिक्षा के विषय पर ही बात करते रहे, इसके अलावा वे किसी भी और विषय पर बात नहीं करते थे।

आपने इन सब व्यस्तताओं के बावजूद अनेक पुस्तकें लिखीं, जिनमें से "ताजशिकन", "न्यूयॉर्क से क़ुम तक", "क़ुरआन और साइंस", "इस्लाम: दीन-ए-हक़", "ख़ुत्बात-ए-नमाज़-ए-जुमा", "इस्लाम में इल्म की अहमियत", "हक़ीक़त-ए-दीन" आदि के नाम विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं।
यह ज्ञान और बुद्धिमत्ता का दीपक एक लंबे समय तक बीमार रहने के बाद 24 नवंबर 2020 को अपने मालिक-ए-हक़ीक़ी से जा मिला और मोमिनीन, तलबा, उलेमा और फाज़िलीन की एक बड़ी संख्या ने तशीया-ए-जनाज़ा में हिस्सा लिया।
नुमाइंदा-ए-वली-ए-फ़क़ीह हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लेमीन आगा मेहदी मेहदवी पूर ने नमाज़-ए-जनाज़ा अदा की और हसीना ग़ुफ़रानमाब, लखनऊ में सुपुर्द-ए-ख़ाक़ किया गया।

यहाँ आपका दिया हुआ متن वही अर्थ रखते हुए हिंदी लिपि में लेकिन उर्दू के लफ़्ज़ों के साथ तैयार किया गया है—

वे अपार फ़ज़ीलतों के मालिक थे। किसी भी शख़्स की सलाहियत को परखने में उन्हें ज़्यादा वक़्त नहीं लगता था। अगर मौलाना यह समझ लेते थे कि यह शख़्स उनके या समाज के लिए मुफ़ीद हो सकता है, तो वे किसी भी हाल में उसे अपना लेते थे।

मौलाना कल्बे सादिक़ साहब उम्र भर सिर्फ़ तालीम के मौज़ू पर ही कलाम करते रहे, इसके अलावा वे किसी और मौज़ू पर गुफ़्तगू नहीं करते थे।

आपने इन तमाम मशग़ूलियतों के बावजूद अनेक किताबें तहरीर फ़रमाईं, जिनमें "ताजशिकन", "न्यूयॉर्क से क़ुम तक", "क़ुरआन और साइंस", "इस्लाम: दीन-ए-हक़", "ख़ुत्बात-ए-नमाज़-ए-जुमा", "इस्लाम में इल्म की अहमियत", "हक़ीक़त-ए-दीन" आदि ख़ास तौर पर क़ाबिल-ए-ज़िक्र हैं।

यह इल्म और हिकमत का चिराग़ एक लंबे अर्से तक बिमार रहने के बाद 24 नवंबर 2020 को अपने मालिक-ए-हक़ीक़ी से जा मिला और मोमिनीन, तलबा, उलेमा और फ़ाज़िलीन की एक बड़ी तादाद ने तशीया-ए-जनाज़ा में शिरकत की।

नुमाइंदा-ए-वली-ए-फ़क़ीह हुज्जतुल इस्लाम वल मुस्लेमीन आगा मेहदी मेहदवी पूर ने नमाज़-ए-जनाज़ा अदा की और हसीन ग़ुफ़रानमाब, लखनऊ में सुपुर्द-ए-ख़ाक़ किया गया।

माखूज़ अज़: मौलाना सैयद रज़ी ज़ैदी फंदेड़वी जिल्द-10 पेज-186 दानिशनामा ए इस्लाम इंटरनेशनल नूर माइक्रो फ़िल्म सेंटर, दिल्ली, 2024ईस्वी।  

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