۱۵ تیر ۱۴۰۳ |۲۸ ذیحجهٔ ۱۴۴۵ | Jul 5, 2024
मौलाना मोहम्मद ताहिर बिजनौरी

हौज़ा / पेशकश: दानिशनामा इस्लाम, इंटरनेशनल नूरमाइक्रो फिल्म सेंटर दिल्ली काविश: मौलाना सैयद गाफ़िर रिज़वी छोलसी और मौलाना सैयद रज़ी ज़ैदी फ़ंदेड़वी

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार, मौलाना सय्यद मोहम्मद ताहिर जैदी उर्फ़ मुल्ला ताहिर सन 1907ई॰ में सरज़मीने गोयली ज़िला बिजनौर पर पर पैदा हुए, आपके वालिद सय्यद अली अज़हर जैदी गोयली के शरीफ़ुन नफ़्स लोगों में थे, गोयली बिजनौर के इलाकों में से एक इलमी इलाक़ा है,इस इलाक़े के लोग हमेशा तालीम याफ़्ता रहे हैं जिनमें से खतीबे अहलेबैत मौलाना शमसुल हसन जैदी मरहूम, ज़ाकिरे अहलेबैत मौलाना सरकार महदी मरहूम, जस्टिस रईसुल हसन जैदी मरहूम वगैरा के नाम लिये जा सकते हैं।

आपने इबतेदाई तालीम अपने वतन गोयली में हासिल की उसके बाद अमरोहा का रुख किया और सय्यदुल मदारिस के जय्यद औलामा ए किराम से मुस्तफ़ीज़ हुए, अमरोहा को तर्क करने के बाद मेरठ का रुख़ किया, वहाँ पोहुंच कर मदरसे मंसबिया में दाखला लिया और खुद मेराजे इल्मी से सरफराज़ हुए, मंसबिया अरबी कालिज से फ़रागत के बाद लखनऊ की तरफ़ आज़िमे सफ़र हुए और सुलतानुल मदारिस के अज़ीम असातेज़ा की ख़िदमत में रहकर कस्बे फ़ैज़ किया यहाँ तक की सन 1937ई॰ में सदरुल अफ़ाज़िल की सनद दर्याफ्त की।

तालीम से फ़रागत के बाद मदरसे आलिया जाफ़रया नोगाँवा सादात में तदरीस की अंजामदही में मशगूल हो गये और तशनेगाने उलूम को मआरिफ़े अहलेबैत अ; सैराब करने लगे, इसी असना में मोमेनीने सांखनी ज़िला बुलंदशहर की दावत पर मदरसे को तर्क किया और सांखनी चले गये, एक मुद्दत तक इमामे जमाअत की ज़िम्मेदारी निभाने के बाद वापसी का इरादा किया और सिलसिला ए तदरीस को बाक़ी रखने के लिये लखनऊ का रुख़ किया और “जामेअतुत तबलीग लखनऊ” में बहुत से शागिर्दों की तरबियत की।

आपने जामेअतुत तबलीग के अलावा जामेआ जवादया बनारस ,  हामेदुल मदारिस पिहानी, अरियंटल कालिज आगरा और दिगर मदारिस में भी इलमो हुनर के गोहर लुटाकर मदारिस के असातेज़ा व तुल्लाब से अपने इल्म का लोहा मनवाया, आयतुल्लाह महमूदुल हसन ख़ान मरहूम अपनी खुद नविष्त सवानेह हयात में फ़रमाते हैं कि अल्लामा ताहिर गोयली मुत्तक़ी परहेज़गार, अज़ीम और बासलाहियत शख़्सियत के मालिक थे, वो तदरीस के अलावा इल्मी मोज़ूआत पर भी बात करते रहते थे।

जिन औलमा ने उनको क़रीब से देखा है वो बयान करते हैं कि अल्लामा ताहिर औलमा के दरमियान ज़्यादातर इल्मी मबाहिस पर गुफ़्तगू करना पसंद फ़रमाते थे, इसी लिये ज़िंदगी के आख़री वक़्त तक दर्स व तदरीस को नहीँ छोड़ा।

अल्लामा ताहिर जैदी ने अपनी ज़िंदगी के आखिरी अय्याम में अपने वतन का रुख़ किया और वतन के नज़दीक नोगाँवा सादात के मदरसे आलिया जाफ़रया में दोबारा तदरीस के सफ़र को जारी किया, आपने अपने तदरीसी सफ़र में सैंकड़ों शागिर्दों को तरबियत की जिनमें से कुछ असमा इस तरह हैं: मौलाना शेख़ मोहम्मद इब्राहीम, मौलाना सय्यद आबिद मनसूरपुरी, मौलाना गज़ंफर अब्बास चितोड़वी, मौलाना फज़्ले अब्बास फंदेडवी, मौलाना हैदर रज़ा शेरकोटी, मौलाना ज़ीशान हैदर उसमाँपुरी और मौलाना एहतेशाम हैदर इलाहबादी वगैरा।

अल्लामा ताहिर जैदी औलाद की नेमत से महरूम रहे लिहाज़ा उस महरूमी के अहसास को कम करने की गरज़ से अपने हक़ीक़ी भाई सय्यद जैनुल इबाद जैदी के पौते सय्यद गुफ़रान अहमद जैदी उर्फ़ शन्नन को गौद ले लिया जिसने मौलाना को अपने हक़ीक़ी वालिद की मानिंद समझा और आपकी ख़िदमत में कोई कसर नहीँ छोड़ी आपने मुँह बोले फ़रज़ंद की अच्छी तरबियत की और ज़ेवरे इल्म से अरासता किया जिसके नतीजे में सय्यद गुफ़रान मआब जैदी ने भी दर्स व तदरीस को पसंद किया और सन 1994 ई॰ से “कम्पोज़िट स्कूल मेरठ” में सैंकड़ों शागिर्दों को इल्म की दौलत बाँट कर मौलाना की इल्मी तरबियत का सुबूत दे रहे हैं।

आखिरकार ये इल्म व अमल की जीती जागती तस्वीर सन 1990 ई॰ मेरठ शहर में हमेशा के लिये नज़रों से ओझल हो गयी, आपकी रहलत की ख़बर बिजली की मानिंद फैल गयी, चाहने वालों का मजमा शरीअत कदे पर उमड़ पड़ा, शहरे मेरठ और उनके आबाई वतन गोयली में ग़म के बादल छा गये, औलमा, तुल्लाब, दनिशवरान और मोमेनीन के मजमे ने अपने आंसुओं की सोगात के साथ आपके जसदे ख़ाकी को गोयली में सुपुर्दे ख़ाक कर दिया।  

माखूज़ अज़: नुजूमुल हिदाया, तहक़ीक़ो तालीफ़: मौलाना सैयद ग़ाफ़िर रिज़वी फ़लक छौलसी व मौलाना सैयद रज़ी ज़ैदी फंदेड़वी जिल्द-9पेज-399 ईस्वी।

 दानिश नामा ए इस्लाम इंटरनेशनल नूर माइक्रो फ़िल्म सेंटर, दिल्ली, 2023

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