۱۱ تیر ۱۴۰۳ |۲۴ ذیحجهٔ ۱۴۴۵ | Jul 1, 2024
मौलाना अत्हर अब्बास कलकत्तवी

हौज़ा / पेशकश: दानिशनामा इस्लाम, इंटरनेशनल नूरमाइक्रो फिल्म सेंटर दिल्ली काविश: मौलाना सैयद गाफ़िर रिज़वी छोलसी और मौलाना सैयद रज़ी ज़ैदी फ़ंदेड़वी

 हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार, मौलाना सय्यद अतहर अब्बास रिज़वी बतारीख़ 16 शव्वाल 1382 हिजरी में सरज़मीने लशकरीपुर ज़िला छपरा सूबा बिहार पर पैदा हुए

आपके वालिद सय्यद अनवर अब्बास रिज़वी का शुमार अपने वक़्त के दीनदार अफ़राद में होता था।

मौलाना ने इबतेदाई तालीम अपने वतन लशकरीपुर में मेहरबान असातेज़ा से हासिल की उसके बाद भारत की रियासत उत्तर प्रदेश में दरयाए गंगा के किनारे पर आबाद दुनिया के मशहूर व मारूफ़ क़दीमी शहर “बनारस” का रुख़ किया और वहाँ “जामे उलउलूम जवादिया अरबी कालिज” में दाख़िल होकर शमीमुल मिल्लत की सरपरस्ती में जय्यद असातेज़ा ए किराम से कस्बे फ़ैज़ किया।

बनारस में चंद साल तालीम हासिल करने के बाद आज़िमे लखनऊ हुए और नाज़मिया में अमीरुल औलमा की ज़ेरे निगरानी बुज़ुर्ग असातेज़ा की ख़िदमत में ज़ानु ए अदब तै किये, सन 1982 ई॰ में लखनऊ को तर्क करके क़ुम ईरान का रुख़ किया वहाँ जय्यद असातेज़ा ए किराम से कस्बे किया और सन 1993 ई॰ में अपने वतन वापस आये।

आपके असातेज़ा में: आयतुल्लाह हरम पनाही, ज़फरुल मिल्लत, अमीरुल औलमा, शमीमुल मिल्लत, आयतुल्लाह विजदानी फख्र, मौलाना सय्यद अहमद हसन बनारसी, मौलाना रसूल अहमद रिज़वी, मौलाना सय्यद मुर्तज़ा नक़वी, मौलाना सय्यद शाकिर हुसैन अमरोहवी, मौलाना शहनशाह हुसैन, मौलाना मुमताज़ अली और मौलाना इबने हैदर वगैरा के नाम सरेफ़ेहरिस्त हैं।

औलमाए ईरान व इराक़ ने उमूरे हिसबिया और नक़्ले रिवायात के इजाज़ात से नवाज़ा जिनमें से : आयतुल्लाह मोहम्मद अली इराक़ी, आयतुल्लाह मोहम्मद फ़ाज़िल, आयतुल्लाह नासिर मकारिम शीराज़ी, आयतुल्लाह शेख़ बशीर हुसैन नजफ़ी, आयतुल्लाह मोहम्मद अली शीराज़ी, आयतल्लाह शेख़ मोहसिन हरम पनाही, आयतुल्लाह मोहम्मद रज़ा मूसवी और आयतुल्लाह मोहम्मद तक़ी के नाम सरेफ़ेहरिस्त हैं।

सन1993 ई॰ में ईरान से वापसी के बाद मग़रिबी बंगाल के शहर कलकत्ता में तबलीगी फ़राइज़ की अंजामदही में मसरूफ़ हो गए,मोसूफ़ कलकत्ता की  “बसरावी मस्जिद” में कई बरस तक इमामे जुमा व जमाअत के ओहदे पर फ़ाइज़ रहे, अपने मेहराबे इबादत के साथ साथ मिंबरे खिताबत को भी तबलीग का ज़रिया क़रार दिया और मुख़तसर अरसे में वो शोहरत हासिल की जो हिंदुस्तान की तारीखे खिताबत में कम नज़ीर है, आपने हिंदुस्तान और बैरूने हिंदुस्तान में अपनी खिताबत के जौहर दिखाए।

 मौलाना अतहर की खिताबत में मोज़ूआत का तनव्वो वाज़ेह तौर पर देखने को मिलता था आपको सुनने वाले अफ़राद जानते हैं की मोज़ू की मुनासेबत के उनवान पर पूरी मजलिस तमाम कर देते थे, सामेईन भी आपकी खिताबत को बहुत पसंद करते थे, मोज़ूआत का तनव्वो आपके वसीउल मुतालेआ और वसी उज़्ज़ोक़ होने की दलील है, मोसूफ़ ने अपनी ज़िंदगी का आख़री अशरए मोहर्रम छोलस सादात में ख़िताब किया।

 शहरे कलकत्ता की ज़रूरत को पेशे नज़र रखते हुए सन 1993 ई॰ में आपने लड़कियों के लिए “अज़ ज़हरा एजुकेशन सेंटर” के नाम से एक दर्सगाह क़ायम की इस दर्सगाह की मुदीरियत की ज़िम्मेदारी आपकी अहलिया ने संभाली जिसको आज तक बा हुस्नो ख़ूबी अंजाम दे रही हैं, मौलाना अतहर अब्बास जब तक बाहयात रहे इस दर्सगाह की सरबराही करते रहे और आपकी रहलत के बाद दर्सगाह की सरबराही आपके फ़रज़ंद मौलाना मेहर अब्बास रिज़वी ने अपने ज़िम्मे ले ली और इस ज़िम्मेदारी को अच्छी तरह निभा रहे हैं।

मौलाना अतहर आलिम होने के साथ साथ बर्जस्ता शायर भी थे, अतहर तखल्लुस फ़रमाते थे उनका एक शेर कुछ इस तरह है:

गैरों का क्या गिला करूँ अपनों से जो मिला

नोके ज़बाँ का ज़ख्म कलेजे के पार है

मौलाना मरहूम शायर, ख़तीब और आलिमे दीन होने के साथ साथ बा अखलाक़ ख़ुश मिज़ाज, इंतेहाई मिलनसार और बेबाक शख्सियत के मालिक थे इसी लिये मग़रिबी बंगाल के मोमेनीन मोसूफ़ को खुमेनी ए बंगाल के लक़ब से याद करते थे, अपने बड़ों का एहतराम करना, छोटों से खंदा पेशानी के साथ मिलना और उनकी इसलाह करने की कोशिश करना आपका तुर्रे इम्तियाज़ था, मौसूफ़ मजलिसे औलमाए हिन्द के सिक्रेटरी थे और अपने फ़रीजा को बा हुसनो खूबी अंजाम देते थे।

अल्लाह ने आपको 2 बेटों और बेटयों से नवाज़ा जो मौलाना मेहर अब्बास उर्फ़ जवाद और रज़ा अब्बास के नाम से मारूफ़ हैं, मोसूफ़ ने अपने सारे बच्चों को ज़ेवरे इल्म से आरास्ता किया,

अफ़सोस ये बर्जस्ता खतीब और बेबाक आलिमे दीन बतारीख़ 18 ज़िलहिज्जा सन 1438 हिजरी बरोज़ इतवार हरकते क़ल्ब बन्द होने की वजह से हमेशा हमेशा के लिये मग़रिबी बंगाल के शहर कलकत्ता में ख़ामोशी की नज़्र हो गया चाहने वालों का मजमा शरीअतकदे पर उमड़ पड़ा 20 ज़िलहिज्जा को गुसलों कफ़न के बाद पहली नमाज़े जनाज़ा शमीमुल मिल्लत और दूसरी नमाज़े जनाज़ा आफ़तबे शरीअत मौलाना कलबे जवाद की इक़्तेदा में हुई और मटया बुर्ज कलकत्ता के क़ब्रिस्ताने मोहम्मदी में सुपुर्दे ख़ाक कर दिया गया, आपकी मजलिसे चेहलुम मौलाना अक़ीलुल गरवी और डाक्टर मौलाना कलबे सादिक़ ने ख़िताब फ़रमाई।

माखूज़ अज़: नुजूमुल हिदाया, तहक़ीक़ो तालीफ़: मौलाना सैयद ग़ाफ़िर रिज़वी फ़लक छौलसी व मौलाना सैयद रज़ी ज़ैदी फंदेड़वी जिल्द-2पेज-298

 दानिश नामा ए इस्लाम इंटरनेशनल नूर माइक्रो फ़िल्म सेंटर, दिल्ली, 2020

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